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दिल्ली मेरी यादें: झांकी और मेले थे दिल्ली की संस्कृति, पूर्व प्रोफेसर ने शेयर की पुरानी यादें

वर्ष 1949 में जन्मे डा. उमेश चंद वर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र व प्रोफेसर रह चुके हैं। किरोड़ीमल कालेज से हिंदी आनर्स की पढ़ाई की। अपर डिविजन क्लर्क की नौकरी करते हुए दिल्ली विवि से एमए की पढ़ाई की।

By Mangal YadavEdited By: Published: Fri, 24 Sep 2021 03:56 PM (IST)Updated: Sat, 25 Sep 2021 08:42 AM (IST)
दिल्ली मेरी यादें: झांकी और मेले थे दिल्ली की संस्कृति, पूर्व प्रोफेसर ने शेयर की पुरानी यादें
हिंदू शिक्षा समिति दिल्ली के संरक्षक डा. उमेश चंद वर्मा

नई दिल्ली [रितु राणा]। दिल्ली न सिर्फ मेरी जन्मभूमि, बल्कि कर्मभूमि भी है। यहां दोस्तों के साथ खूब घूमना, खाना पीना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आनंद लिया है। सवेरे से ही घर से निकल जाते और रात को पहुंचते थे। बचपन से कालेज के दिनों में राजधानी की सड़कों पर खूब घुमक्कड़ी जीवन जिया है, क्योंकि उन दिनों न घर से कोई रोक टोक होती थी, न बस में कोई पास या टिकट के लिए पूछता था। कभी लाल किला चले गए तो कभी चिडिय़ाघर...मुझे याद है 1970 के आसपास कालेज के दिनों यूं ही घूमते हुए दोस्तों के साथ पुराना किला पहुंच गए थे। तब पुराना किला को पांडवों का किला भी कहते थे।

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वहां पुरातत्व विभाग द्वारा खोदाई का कार्य चल रहा था, लोग बड़े आराम से उसे देख रहे थे, किसी को मनाही नहीं थी काफी भीड़ लगी थी। वहां खोदाई में मिट्टी के बर्तन और काफी सारे सिक्के निकले थे, वो पूरी प्रक्रिया हमने अपने सामने ही देखी थी।

माडर्न स्कूल में मनाई गई थी आजादी की सिल्वर जुबली

जैसे आज देशभर में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है, ऐसे ही इंदिरा गांधी ने आजादी की सिल्वर जुबली मनाई थी। उसके लिए मंडी हाउस स्थित माडर्न स्कूल में सारी रात संगीतमय कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। बिस्मिल्लाह खां, भीमसेन जोशी, हरि प्रसाद चौरसिया, परवीना सुल्ताना सब आए थे। उस समय ऐसे कार्यक्रम में कोई टिकट नहीं होता था। आम से लेकर खास लोग एक हाल में साथ बैठते थे।

दिल्ली की सबसे बड़ी सांस्कृतिक गतिविधि होते थे झांकी और मेले

दिल्ली में तब गणेश उत्सव व दुर्गा मूर्ति विसर्जन का प्रचलन नहीं था, सिर्फ रामलीला की रौनक होती थी। बचपन में रामलीला और बैसाखी मेले का बहुत इंतजार होता था। झांकी और मेले दिल्ली की सबसे बड़ी सांस्कृतिक गतिविधि माने जाते थे। जिसे भी अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलना होता था तो वह यहां मिल लेते थे।

रामलीला मैदान वाली रामलीला शुरू होने से पहले और खत्म होने के बाद भव्य झांकी निकलती थी, उसे हम सवारी कहते थे। लोग रात दो बजे तक झांकी का इंतजार करते थे। शाम को झांकी लाल किले से रामलीला मैदान आती थी और रात को रामलीला मैदान से वापस लाल किला जाती थी। मुझे याद है सब्जी मंडी वाले इलाके में सिंधियों के झूले लाल साईं की झांकी निकलती थी। उसके पीछे मैं अपने दोस्तों के साथ घूमता था। हर वर्ष यमुना किनारे बैसाखी के दिन भव्य मेला लगता था। कश्मीरी गेट से लेकर मजनूं का टीला तक यमुना किनारे खूब रौनक लगती थी। लोग यमुना में डुबकी लगाते, झूला झूलते थे। जब से टीवी आया तब से दिल्ली में मेले लगने बंद ही हो गए।

कौन हैं डा. उमेश चंद वर्मा

वर्ष 1949 में जन्मे डा. उमेश चंद वर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र व प्रोफेसर रह चुके हैं। किरोड़ीमल कालेज से हिंदी आनर्स की पढ़ाई की। अपर डिविजन क्लर्क की नौकरी करते हुए दिल्ली विवि से एमए की पढ़ाई की। इसके बाद राजधानी कालेज, सोनीपत के हिंदू इंजीनियरिंग कालेज और पीजीडएवी में भी पढ़ा चुके हैं। 2014 में पीजीडीएवी सांध्य कालेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृति हुए। वर्तमान में हिंदू शिक्षा समिति दिल्ली के संरक्षक का कार्यभार संभाल रहे हैं। 


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