दिल्ली-हरियाणा समेत कई राज्यों के पूर्व CM के साथ एक पूर्व PM भी हारे चुनाव
उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को नैनीताल संसदीय सीट से हार का मुंह देखना पड़ा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी गया संसदीय सीट से चुनाव हार गए हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। नरेंद्र मोदी की सुनामी में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित देशभर के एक दर्जन से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनाव मैदान में खेत रहे। चुनाव हारने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों में देश के उत्तरी राज्यों के साथ दक्षिणी राज्यों में मुख्यमंत्री रहे नेता भी शामिल हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी से चुनाव हारी हैं।
हरियाणा की जाट बहुल सोनीपत सीट से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बुरी तरह से हारे हैं। उनके बेटे भी रोहतक सीट से चुनाव हार गए। उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को नैनीताल संसदीय सीट से हार का मुंह देखना पड़ा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी गया संसदीय सीट से चुनाव हार गए हैं, वह वहां क्षेत्रीय दलों के महागठबंधन में शामिल थे।
झारखंड की कोडरमा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी चुनाव हार गए हैं। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी दुमका संसदीय क्षेत्र से हार गए हैं। सोरेन को संथाल परगना का सबसे मजबूत नेता माना जाता रहा है। एचडी देवेगौड़ा कर्नाटक के तुमकुर सीट से और वीरप्पा मोइली चिकबल्लापुर से, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण नांदेड से और सुशील कुमार शिंदे कोल्हापुर से, मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भोपाल संसदीय सीट से चुनाव हार गए हैं।
इनमें कई नेता तो ऐसे थे, जिनका यह अंतिम चुनाव था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजिय सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का नाम शामिल है। इनकी उम्र को देखते हुए लगता नहीं, ये वर्ष 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव लड़ पाएंगे।
यहां पर बता दें कि मौजूदा लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा ने अकेले दम पर 303 सीटों पर जीत दर्ज की है। अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक, एनडीए को कुल 346 सीटें गई हैं। इस चुनाव में सियासी रणनीति के मामले में नरेंद्र मोदी ने बाकी विपक्षी नेताओं को धराशाई कर दिया। यही वजह है कि भाजपा के 'मोदी है तो मुमकिन' नारे की आंधी में कांग्रेस का 'चौकीदार चोर है' का नारा उड़ गया। विपक्ष ने अलग-अलग नारे गढ़ने की कोशिश की। लेकिन भाजपा का 'हम सब चौकीदार' का सकारात्मक नारा विपक्ष के तमाम नकारात्मक नारों पर भारी पड़ा। भाजपा ने शुरू से ही अपने चुनावी अभियान को विकास और राष्ट्रवाद पर केंद्रित रखा और इसी हिसाब से उसके रणनीतिकारों ने नारों की रचना की। भाजपा 'हम सब चौकीदार', 'मोदी है तो मुमकिन है' और 'काम रुके ना, देश झुके ना' जैसे प्रमुख नारों के साथ जनता के बीच में थी। जहां 'हम सब चौकीदार' का नारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक था। वहीं 'मोदी है तो मुमकिन है' के पीछे राष्ट्रवाद की प्रेरणा थी।
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