2015 में इन दिग्गज नेताओं ने दिया था केजरीवाल का साथ, 2020 में होगी मुश्किल
वर्ष-2015 में दिल्ली की 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतने वाली AAP के पास फिलहाल 60 विधायक के आसपास हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 (Delhi Assembly Election) में छह महीने से भी कम का समय बचा है, लेकिन दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (Aam aadmi Party) का कुनबा लगातार कम होता जा रहा है। वर्ष-2015 में दिल्ली की 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतने वाली AAP के पास फिलहाल 60 विधायक के आसपास हैं। पिछले छह महीन के दौरान ही आधा दर्जन विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़ा है। इनमें अलका लांबा (चांदनी चौक सीट) और कपिल मिश्रा (वजीराबाद सीट) बड़ा नाम है। एक नजर डालें तो नेता और विधायकों में अलका लांबा के अलावा आशीष खेतान,आशुतोष, कपिल मिश्रा, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, शाजिया इल्मी जैसे जाने-माने चेहरे पार्टी से अलग हो चुके हैं। इनमें कई नेता तो दिल्ली में सरकार बनने के बाद अलग हुए हैं। वहीं, विधायक पंकज पुष्कर और AAP के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास बागी रुख अपनाए हुए हैं। कुलमिलाकर 2015 के विधानसभा चुनाव में जो चेहरे मुखर थे वे आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 में नदारद रहेंगे।
कोई भाजपा में गया तो किसी ने थामा कांग्रेस का 'हाथ'
आम आदमी पार्टी से अलग होने वाले नेताओं और विधायकों में से ज्यादातर ने आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने में समझदारी दिखाई है तो कुछ ने कांग्रेस का हाथ भी थामा है। मसलन, हाल ही में AAP की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने वाली अलका लांबा ने कांग्रेस ज्वाइन की है।
चार साल पहले महिला चेहरा शाजिया ने कहा था पार्टी को अलविदा
चार साल पहले शाजिया इल्मी ने AAP में आंतरिक लोकतंत्र की कमी का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़ी। साल 2014 में वो AAP के टिकट पर गाजियाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ी थीं, लेकिन इसके बाद उन्होंने आप छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया।
योगेंद्र-प्रशांत को निकाया गया था पार्टी
2015 में दिल्ली में ही विधानसभा चुनाव जीतने के बाद AAP दो बड़े चेहरों योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकाल दिया गया था। दोनों ने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र मुद्दा उठाया था। खैर, सार्वजनिक बयानबाजी के बाद दोनों को पार्टी से बाहर निकाल फेंका गया।
कुछ ने राजनीति का बाय-बाय कहा तो एक ने बनाई अलग पार्टी
कभी आम आदमी पार्टी का चाणक्य कहे जाने वाले योगेंद्र यादव को तो दिल्ली में सरकार बनने के कुछ महीनों के बाद ही पार्टी निकाल दिया गया था, वहीं आनंद कुमार जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी से अलग होने के बाद राजनीति को ही अलविदा कह दिया। उधर, अरविंद केजरीवाल से अलग होने के बाद योगेंद्र यादव ने स्वराज इंडिया नाम से राजनीति पार्टी बना ली।
किरण बेदी का भी छूटा साथ
अन्ना आंदोलन के दौरान से ही किरण बेदी कभी अरविंद केजरीवाल की सहयोगी हुआ करती थीं, लेकिन 2015 के चुनाव से काफी पहले उनका ऐसा मतभेद हुआ कि उन्होंने अन्ना के साथ रहने का ऐलान किया। फिर उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली।
प्रशांत भूषण के पिता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने AAP की स्थापना के समय एक करोड़ की राशि चंदे के रूप में दी थी। उनका जल्द ही उनका पार्टी से मोहभंग हो गया था और वह आम आदमी पार्टी से अलग हो गए थे।
बड़े चेहरे गायब
बेशक आम आदमी पार्टी के बड़े नेता इस सच को स्वीकार नहीं करें, लेकिन सच तो यही है कि 2015 की AAP और 2019 की AAP में बड़ा अंतर आ गया है। बड़े चेहरों की बात करें तो अगर मनीष सिसोदिया को अपवाह रूप से छोड़ दें तो अरविंद केजरीवाल पार्टी में करीब-करीब अकेले पड़ गए हैं।