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वीरों की प्रतिमाएं बनेंगी दिल्ली की पहचान, सिख योद्धाओं के सामने मुगलों ने टेक दिए थे घुटने

सिख योद्धाओं ने लालकिला पर हमला कर वहां निशान साहिब चढ़ाया और दिवान-ए-आम पर कब्जा कर लिया। सिरसा ने कहा कि नई पीढ़ी को अपना समृद्ध इतिहास बताने की जरूरत है।

By Edited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 09:01 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 09:37 PM (IST)
वीरों की प्रतिमाएं बनेंगी दिल्ली की पहचान, सिख योद्धाओं के सामने मुगलों ने टेक दिए थे घुटने
वीरों की प्रतिमाएं बनेंगी दिल्ली की पहचान, सिख योद्धाओं के सामने मुगलों ने टेक दिए थे घुटने

नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। सिख योद्धा बाबा बंदा सिंह बहादुर के बाद अब मुगलों को हराकर लालकिला फतह करने वाले सिख योद्धाओं की प्रतिमाएं दिल्ली की पहचान बनेंगी। अगले महीने सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के पास सिख योद्धा बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया की प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। ग्वालियर स्थित प्रभात मूर्ति कला केंद्र में इनकी प्रतिमाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

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दिल्ली फतह समारोह का आयोजन
दिल्ली फतह का इतिहास नई पीढ़ी जान सके, इसके लिए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) पिछले चार वर्षों से लाल किले पर दिल्ली फतह समारोह का आयोजन कर रही है। अब इसी कड़ी में तीनों योद्धाओं की प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं।

प्रतिमाओं को दिया जा रहा है अंतिम रूप 
कमेटी के महासचिव और राजौरी गार्डन के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि प्रसिद्ध मूर्तिकार प्रभात राय प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं। अगले महीने इन्हें सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के पास डेढ़ एकड़ में फैले पार्क में लगाया जाना है। प्रत्येक प्रतिमा 12 फीट ऊंची हैं और इनमें से प्रत्येक का वजन 12 सौ किलोग्राम से ज्यादा है। इनके निर्माण पर कुल 60 लाख रुपये खर्च हुए हैं। कमेटी ने वर्ष 2016 में मंडी हाउस रेलवे स्टेशन के पास बाबा बंदा सिंह बहादुर की भी प्रतिमा स्थापित की है।

समृद्ध इतिहास बताने की जरूरत
सिरसा ने कहा कि नई पीढ़ी को अपना समृद्ध इतिहास बताने की जरूरत है। इसके लिए कमेटी लगातार प्रयास कर रही है। लालकिला पर दिल्ली फतह दिवस की जानकारी देने के लिए लाइट एंड साउंड कार्यक्रम किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री कार्यालय में पत्र भी भेजा है।

दिल्ली फतह दिवस का इतिहास
दिल्ली के आसपास के इलाके जीतने के बाद सिख योद्धा बघेल सिंह ने सेना के साथ जनवरी, 1774 में दिल्ली पहुंचकर शाहदरा, पहाड़गंज एवं जय सिंहपुरा पर कब्जा किया था। 1783 की शुरुआत में सिखों ने लालकिला पर कब्जे की रणनीति बनाई थी। इसे अमल में लाने के लिए 60 हजार सैनिकों के साथ बघेल सिंह और जस्सा सिंह आहलूवालिया की गाजियाबाद में मुलाकात हुई थी। उसी वर्ष 8 व 9 मार्च को उनकी सेना ने मल्कागंज, अजमेरी गेट सहित दिल्ली के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था।

लालकिला फतह करने आगे बढ़े जस्सा सिंह 
जस्सा सिंह रामगढ़िया भी अपने दस हजार सैनिकों के साथ इस मुहिम में शामिल होकर लालकिला फतह करने को आगे बढ़े थे। सिख योद्धाओं ने 11 मार्च को लालकिला पर हमला कर वहां निशान साहिब चढ़ाया और दिवान-ए-आम पर कब्जा कर लिया। इसके बाद मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने उनके साथ समझौता कर लिया और उन्हें तीन लाख रुपये नजराना पेश किया। कोतवाली क्षेत्र को सिखों की संपत्ति रहने दिया गया तथा बघेल सिंह को सिख इतिहास से संबंधित स्थानों पर गुरुद्वारा बनाने की अनुमति दी गई।


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