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The Emergency of 1975: दिल्ली के मारिस नगर का नजारा देखकर लगा अब सत्ता पलटने वाली है, डीयू के पूर्व प्रोफेसर ने शेयर की पुरानी यादें

मारिस नगर में उनको देखने के लिए इतनी भीड़ उमड़ी कि पैर रखने तक की जगह नहीं थी। तब लगा कि अब सत्ता पलटने वाली है। एकदम से राजनीति की हवा बदल गई और दिल्ली में कांग्रेस सातों सीट हार गई।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 02:40 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 02:44 PM (IST)
The Emergency of 1975: दिल्ली के मारिस नगर का नजारा देखकर लगा अब सत्ता पलटने वाली है, डीयू के पूर्व प्रोफेसर ने शेयर की पुरानी यादें
आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई मैंने राजनिवास मार्ग के पास दिल्ली यूनाइटेड क्रिश्चयन स्कूल से की

नई दिल्ली [रितु राणा]। दिल्ली की बहुत सी यादें हैं जो कभी भुलाई नहीं जा सकतीं, उन्हीं में से एक है 1975 में लगे आपातकाल की यादें। आज भी आपातकाल का नाम सुनते ही आंखों के सामने वही पुराने दृश्य आने लगते हैं। मैं तब एमएससी कर रहा था। मुझे याद है जैसे ही आपातकाल की घोषणा हुई हमारे साथी जीएस पालीवाल को माडल टाउन स्थित उनके निवास से गिरफ्तार कर लिया गया। वह किराए के घर में रहते थे। मेरे कई जानकारों को तब जेल में डाला दिया गया था, जिनमें अरुण जेटली और विजय प्रताप भी थे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल हटाया, तब एक अखबार के पहले पन्ने पर एक कार्टून छपा था, जिसमें विपक्ष को पुराना हथियार निकालते दिखाया गया और सत्ताधारी पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार नजर आ रही थी। तब सभी को यही लग रहा था कि विपक्ष कुछ कर नहीं पाएगा। लेकिन जब जय प्रकाश नारायण दिल्ली विश्वविद्यालय में आए तब पूरा नजारा ही बदल गया।

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मारिस नगर में उनको देखने के लिए इतनी भीड़ उमड़ी कि पैर रखने तक की जगह नहीं थी। तब लगा कि अब सत्ता पलटने वाली है। एकदम से राजनीति की हवा बदल गई और दिल्ली में कांग्रेस सातों सीट हार गई।

मैडेंस होटल को व्हाइट हाउस बुलाते थे

आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई मैंने राजनिवास मार्ग के पास दिल्ली यूनाइटेड क्रिश्चयन स्कूल से की। उसके बाद उसी के सामने गवर्मेंट माडल स्कूल में दाखिला ले लिया था। स्कूल के पास ही सिविल लाइंस में द मैडेंस होटल था। पूरा सफेद जिसे हम बच्चे व्हाइट हाउस कहते थे। जब भी दिल्ली में टेस्ट मैच होता तो सारी क्रिकेट टीम उसी होटल में ठहरती थी। एक बार वेस्टइंडिज की पूरी टीम वहां आई थी। हम उन्हेंं देखने पहुंच गए। तब क्रिकेटर क्लाइव लायड ने हम सबसे खूब बातें कीं।

जब पहली बार डीयू कैंपस में आई पुलिस

1972 में पहली बार डीयू कैंपस के अंदर पुलिस आई। इससे पहले वहां पुलिस को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। तब डा. स्वरूप सिंह कुलपति थे और श्रीराम खन्ना डूसू अध्यक्ष। कैंपस में एबीवीपी का पूरा दबदबा था। छात्र संघ के चुनाव में शायद मारपीट हुई थी इसलिए पुलिस को कैंपस में आना पड़ा। कैंपस में पुलिस को देख सभी दंग रह गए। हम जैसे लोग जो राजनीति से दूर थे उनके लिए तो यह एकदम नया अनुभव था। पुलिस के आने से हम सब डर गए थे। मेरे सामने श्रीराम खन्ना, अरुण जेटली, भगवान सिंह, अजीत सिंह चड्ढा दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ यानी डूसू के अध्यक्ष बने। चुनाव में सक्रिय रहने के साथ कालेज के टापर्स में भी यही थे। उन दिनों छात्रों की खासियत थी, भले ही वे राजनीति करते, लेकिन पढ़ाई से कभी समझौता नहीं किया।

स्टीफंस का अंग्रेजी कल्चर

हमारे समय में कैंपस में चार-पांच काफी हाउस थे। हमारे विभाग में ग्रेट काफी हाउस था, जिसका नाम पहले यूनाइटेड काफी हाउस हुआ करता था। वहां तीस पैसे की इडली, 25 पैसे के वड़े, 25 पैसे की काफी और 70 पैसे का मटन डोसा मिलता था। स्टीफंस कालेज का पूरा कल्चर अंग्रेजी था इसलिए कैंटीन को वहां कैफे कहते थे। वहां सभी छात्र फर्राटेदार अंग्रेजी में बातें करते। उस माहौल को देखकर ऐसा लगता था जैसे हम विदेश में हों। कालेज के बाहर रोहतास के खोखे का नींबू पानी, छोटा समोसा और छोटा सा गुलाब जामुन बहुत प्रसिद्ध था।

मोनेस्ट्री से लगा चाइनीज खाने का चस्का 

पहले दिल्ली में चाइनीज खाने का इतना प्रचलन नहीं था। छठे दशक में जब तिब्बती शरणार्थी बनकर दिल्ली आए तब से यहां चाइनीज खाने का स्वाद लोग लेने लगे। तिब्बती लोग पहले सड़क पर ऊनी कपड़े बेचा करते थे, लेकिन दिल्ली के लोग ऊनी कपड़े ज्यादा खरीदते नहीं थे तो उन्होंने मोनेस्ट्री में खाने के स्टाल लगाए। वहीं से हमने चाइनीज खाना सीखा। वहां चाउमीन, थुक्पा, स्प्रिंग रोल खाने को मिलते थे।

परिचय

दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रभारी डा. एबी बब्बर का जन्म 19 अप्रैल, 1956 को झांसी में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी, एमएससी व पीएचडी की पढ़ाई करने के बाद कुछ समय अमेरिका एंबेसी में नौकरी की। उसके बाद तीन माह किरोड़ीमल कालेज में पढ़ाया। एक साल वनस्पति विज्ञान विभाग में रिसर्च साइंटिस्ट रहे। 1985 में डीयू के वनस्पति विज्ञान विभाग में स्थायी नियुक्ति मिली। 25 वर्ष सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए।


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