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किडनी प्रत्यारोपण को लेकर पहले भी सुर्खियों में रहा है फरीदाबाद, जानें कैसे चलता है यह खेल

एसपी क्राइम राजेश यादव के अनुसार जांच में तीरथ पाल और अरुण कुमार नाम से किडनी ट्रांसप्लांट की फाइलें मिली थी। दोनों फाइलें फोर्टिस अस्पताल की थीं और पता अलीगढ़ का था।

By Edited By: Published: Wed, 12 Jun 2019 08:08 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jun 2019 06:25 PM (IST)
किडनी प्रत्यारोपण को लेकर पहले भी सुर्खियों में रहा है फरीदाबाद, जानें कैसे चलता है यह खेल
किडनी प्रत्यारोपण को लेकर पहले भी सुर्खियों में रहा है फरीदाबाद, जानें कैसे चलता है यह खेल

फरीदाबाद, जेएनएन। किडनी प्रत्यारोपण को लेकर फरीदाबाद वर्ष 2006 में भी सुर्खियों में रहा है। अब शहर के बड़े अस्पताल फोर्टिस का नाम जुड़ने के कारण समूचे चिकित्सा क्षेत्र में फिर से हलचल शुरू हो गई है। जिला स्वास्थ्य विभाग ने भी अपना रिकार्ड खंगालना शुरू कर दिया, ताकि पुलिस को विभाग से कोई जानकारी लेनी हो, तो आसानी से उपलब्ध कराई जा सके। कानपुर पुलिस ने शहर के जिस निजी बड़े अस्पताल की कोऑर्डिनेटर सोनिका डबास को गिरफ्तार किया है, वो अस्पताल से दस वर्षों से ज्यादा समय से जुड़ी थी।

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उठ रहे हैं सवाल
कानपुर के एसपी क्राइम राजेश यादव के अनुसार जांच में तीरथ पाल और अरुण कुमार नाम से किडनी ट्रांसप्लांट की फाइलें मिली थी। दोनों फाइलें फोर्टिस अस्पताल की थीं और इन पर पता अलीगढ़ का दर्शाया गया था, पर जब दस्तावेजों का सत्यापन कराया गया, तो पता चला कि दोनों नाम फर्जी हैं।

इसके लिए जो डोनर तैयार किए गए वो भी फर्जी हैं और इस फर्जीवाड़े के आरोपों के घेरे में सोनिका डबास हैं। अब ऐसे में फोर्टिस अस्पताल का नाम आने के बाद जिले की अंग प्रत्यारोपण समिति भी सवालों के घेरे में है। इस समिति के मुखिया सिविल सर्जन होते हैं। अन्य में जिला उपायुक्त का एक प्रतिनिधि, उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सर्जन, सामाजिक कार्यकर्ता सदस्य होते हैं। किसी भी मामले में किडनी डोनेट करने से पहले अंग प्रत्यारोपण समिति बैठक करती है।

लेनदेन की होती है
समिति के सामने किडनी डोनेट करने वाला और प्राप्त करने वाले के परिचय के ब्यौरे की जांच की जाती है। यह समिति ही किसी अस्पताल को किडनी ट्रांसप्लांट को स्वीकृति देती है। समिति को ही अधिकार है कि वह जांच करे कि किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में कोई लेनदेन तो नहीं हुआ है।

कोऑर्डिनेटर के दम पर चलता है सारा खेल
अस्पताल की कोऑर्डिनेटर की गिरफ्तारी के बाद यह सवाल भी उठने लगे हैं कि कहीं इस मामले से अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट से तो तार नहीं जुड़े हैं। इस काम में नेफ्रोलोजिस्ट ट्रांसप्लांट फिजीशियन और कोऑर्डिनेटर का आपस में तालमेल होता है। किडनी प्रत्यारोपण अगर अवैध रूप से किया जाता है, तो उसमें सारा खेल कॉर्डिनेटर के दम पर चलता है।

चिकित्सा क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय बाजार को देखने वाले कई मार्केट प्रमुख भी खास भूमिका निभाते हैं। सरकार के नियमों के अनुसार अगर किडनी प्रत्यारोपण किया जाता है, तो निजी संस्थान में चार से पांच लाख रुपये खर्च आता है। जबकि एम्स तथा पीजीआइ, चंडीगढ़ में एक से डेढ़ लाख रुपये खर्च होते हैं। अवैध रूप से अगर किडनी प्रत्यारोपण करते हैं, तो मनमाने दाम वसूल किए जाते हैं। जानकारों की मानें तो अवैध रूप से की जाने वाले किडनी ट्रांसप्लांट में 40 से 50 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं। आमतौर पर इतनी बड़ी रकम के खेल में विदेशी नागिरकों को ही फंसाया जाता है।

किडनी प्रत्यारोपण मामले में 11 सदस्यीय कमेटी बनी हुई है। हम सभी दस्तावेजों की बारीकी से जांच के बाद ही किडनी प्रत्यारोपण की अनुमति देते हैं। अगर कहीं गड़बड़ होती है, तो वे फर्जी तरीके से करते होंगे। किडनी डोनर और प्राप्त करने वालों का पूरा ब्यौरा रखा जाता है। वैसे अब जो मामला सामने आया है, उसमें संबंधित अस्पताल के बारे में अभी तक किसी भी एजेंसी ने हमसे कोई जानकारी नहीं मांगी है। पुलिस अपना काम कर रही है। हमसे सहयोग मांगा जाएगा, तो हम पूरी तरह से तैयार हैं।
डॉ.गुलशन अरोड़ा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी।

जनवरी-2008 में भी आया था ऐसा मामला
पूर्व में किडनी रैकेट का सरगना डॉॅ.अमित जब पुलिस की गिरफ्त में आया तो उसने पुलिस को जानकारी दी थी कि तीन तुर्की नागरिक की मौत उसके गुरुग्राम स्थित अस्पताल में हुई थी, लेकिन डॉ.उपेंद्र के बल्लभगढ़ स्थित श्रीराम अस्पताल के माध्यम से इन तीनों का मृत्यु प्रमाण-पत्र बल्लभगढ़ से बनाया गया था। बल्लभगढ़ में तुर्की नागरिकों की मौत का मामला प्रकाश में आने के कारण विदेश मंत्रालय से मामला जुड़ा होने के कारण सरकार ने इसकी जांच भी करवाई थी। 

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