मौसम बदलने के साथ ही बीमारियों से बचने के लिए बरतें सतर्कता
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे को ऐसे मौसम में सांस लेने में समस्या ज्यादा हो सकती है। ऐसे में हमें सावधानी बरतने की जरूरत है। वातावरण में प्रदूषण होने पर सुबह व शाम बाहर जाने से बचें।
नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना संकट के बीच बढ़ रहे प्रदूषण ने लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालना शुरू कर दिया है। इस मौसम में निमोनिया, सर्दी, बुखार के मरीज अचानक अस्पताल में बढ़ गए हैं। ऐसे में सावधानी हमें जरूर बरतनी चाहिए। इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर, इंटरनल रेस्पिरेटरी मेडिसीन डॉ (कर्नल) विजय दत्ता ने बताया कि निमोनिया एक या दोनों फेफड़ों में होने वाला इन्फेक्शन है। इन्फेक्शन से फेफड़ों में हवा की थैली में सूजन आ जाती है, जिसे एल्वियोली कहा जाता है।
एल्वियोली द्रव या मवाद से भर जाती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। जिन मरीजों को अस्थमा होता है, उन्हें निमोनिया होने का खतरा ज्यादा होता है। इस समय खांसी, पीला, हरा बलगम, बुखार, सांस फूलना, भूख न लगना और शरीर में कमजोरी जैसे लक्षण लोगों में दिख रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे को ऐसे मौसम में सांस लेने में समस्या ज्यादा हो सकती है। ऐसे में हमें सावधानी बरतने की जरूरत है। वातावरण में प्रदूषण होने पर सुबह व शाम बाहर जाने से बचें। यदि मरीज 10 दिनों से ज्यादा समय तक बुखार और खांसी से पीड़ित हो तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पिछले 15 दिनों से मरीजों में सांस लेने की समस्याओं में बढ़ोतरी हुई है। अचानक मौसम बदलने से अक्सर थकान, सर्दी लगना और वायरल बुखार होता है। आमतौर पर वायरल बुखार 3 से 7 दिनों तक रहता है। वायरल बुखार खुद से ही ठीक हो जाता है और आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती है। फ्लू से बचने के लिए छींकते या खांसते समय मुंह को ढंके रहना चाहिए। दरवाजा छूने, वॉशरूम में फ्लश करने या सार्वजनिक कंप्यूटर और डेस्क छूने के बाद अपने हाथ धोएं। असुरक्षित स्रोतों से पानी न पीएं, टाइफाइड, पीलिया, हैजा और दस्त जैसे पानी से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए केवल साफ पानी पीयें। बैक्टीरिया से बचने के लिए अलग से एक तौलिये का इस्तेमाल करें और नियमित रूप से सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल करें।
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