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संकल्प शक्ति के आगे पहाड़-सी बाधाएं भी घुटने टेकने को मजबूर

टीकाकरण प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही आपदा के घने बादल छंटते नजर आ रहे हैं। इसका श्रेय जाता है विज्ञानियों को जिन्होंने अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति की बदौलत इतने कम समय में टीका विकसित कर दिखाया यानी संकल्प शक्ति के आगे बाधाएं घुटने टेकने पर मजबूर हो जाती हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 01:22 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 01:22 PM (IST)
संकल्प शक्ति के आगे पहाड़-सी बाधाएं भी घुटने टेकने को मजबूर
अपने विचारों को सकारात्मक रखने का प्रयास करें

डॉ. चांदनी टग्नैत। 'आप जो आज कर सकते हैं, उसे यदि नहीं कर सके तो आज से बीस साल बाद आज के मुकाबले कहीं अधिक निराशा होगी। इसलिए आप जो करना चाहते हैं, वही करें।’ यह कथन है अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन का। गत वर्ष हुए उलटफेर के बाद यदि आप इस साल नयी शुरुआत कर रहे हैं तो मार्क ट्वेन का यह कथन आपकी राहों को आसान बना सकता है।

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पर यहां आप कहेंगे कि ये उपदेशात्मक बातें सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, उन पर अमल करने की राहें बड़ी टेढ़ी हैं यानी इस पल में भी जहां जिस काम को करने का दिल हो, वहां जान लगाने में शायद आसानी नहीं होगी। बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। शायद कोच की मदद लेनी होगी। आदतें बदलनी होंगी। कोशिश करते रहना होगा। तो क्यों चुनें यह रास्ता? क्योंकि आज से 20 साल बाद आपको दु:ख उन चीजों का नहीं होगा, जिनमें आपने गलती की, बल्कि उन चीजों का होगा, जो आपने चाह कर भी नहीं कीं!

कब तक बस कहते-सोचते रहेंगे: सही वक्त कब है अपने सपनों को जीने का? कल, परसों, अगले साल, शादी के बाद, बच्चों के बाद, कोविड की वैक्सीन लगने के बाद! दरअसल, अच्छा वक्त हमेशा आज होता है। यदि हम बेहतर समय का इंतजार करेंगे तो संभव है वह कभी न आए। आपकी संकल्प शक्ति कमजोर है तो आप एक नया बहाना तलाश ही लेंगे कि फलां वजह से वह काम नहीं कर सके। रिसर्च बताती है कि हार के डर से इंसान अक्सर एक ‘नॉर्मल जिंदगी’ के लालच में रह जाता है और अपने सपनों से मुंह मोड़ लेता है। बचपन में लगभग हर कोई यही कहता है, ‘मैं बड़ा आदमी बनूंगा।’ पर यह एक ऐसी आकांक्षा है, जो प्रयास और दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में मन में दबी ही रह जाती है। आप किसी भी पद पर काम कर रहे हों, किसी भी पेशे में हों, आपके दिल में एक बड़ा सपना जरूर होगा। लेकिन आप केवल सपने ही कब तक देखते रहेंगे। जरा सोचिए, बचपन से लेकर आज तक, आपका समय निकलता जा रहा है। अभी नहीं तो कब? ‘बड़ा आदमी’ बनने की बात हो या अपने मनपसंद क्षेत्र में शिखर पर पहुंचने की, अब इसे महज दबी-छिपी इच्छा मत बनाए रखिए। इसे लक्ष्य बनाइए और जुट जाइए पूरी संकल्प शक्ति से।

क्या हों हमारे संकल्प

  • अच्छी नींद लें
  • कसरत की आदत डालें
  • आप रोजाना अपनी बात डायरी में लिख सकते हैं
  • अपने विचारों को सकारात्मक रखने का प्रयास करें
  • अपनों को गले लगाएं। उनसे अपनी बातें साझा करें
  • भविष्य को खूबसूरत बनाना है तो उस दिशा में रोजाना कोई न कोई एक महत्वपूर्ण कार्य जरूर करें
  • जो आपके पास है, उसके लिए शुक्रगुजार बनें। जो नहीं है, उसके बारे में सोचकर निराश होने की जरूरत नहीं

संकल्प को कौन करता है नियंत्रित?: हमारे कुछ सपने होते हैं और कुछ जिम्मेदारियों का भार, जो अक्सर संकल्पों को नियंत्रित करते हैं। ज्यादातर जिम्मेदारियों का पलड़ा भारी हो जाता है। इसके अलावा समाज का डर, लोग क्या कहेंगे की चिंता, असफलता का डर, अपनों का साथ न मिलना, परिवार का दबाव, भेड़चाल का हिस्सा बनने की पुरानी आदत, मेहनत से डर आदि बाधक बनते हैं। कभी तो यह भी नहीं पता होता कि हम चाहते क्या हैं!

कोरा खयाल नहीं, विज्ञान है यह: जब हम युवा होते हैं, तब हममें जज्बा और जुनून होता है वह सब करने का, जो हम करना चाहते हैं। यह सिर्फ एक खयाल नहीं, बल्कि विज्ञान है। समय और उम्र के साथ हमारे ‘न्यूरोपाथवेज’ हमारी आदतों के अनुसार ढल चुके होते हैं। इसलिए आपने महसूस किया होगा कि बचपन और जवानी में जो काम हम आसानी से सीख और कर पाते हैं, वह बढ़ती उम्र के साथ कम हो जाता है-हिम्मत और हौसला भी।

करें दिमाग को प्रशिक्षित: हमारे दिमाग में ‘प्रिफ्रंटल कोर्टेक्स’ हमारे व्यक्तित्व, अभिव्यक्ति, निर्णय लेने की क्षमता और सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करता है। उसकी मदद से हम कोई लक्ष्य हासिल कर पाते हैं। यदि आप हौसला और जज्बा रखते हैं तो इसके लिए आपको दिमाग के इस हिस्से (प्रिफ्रंटल कोर्टेक्स) को तेज और प्रभावी बनाए रखना होगा। आपको रोजाना प्रयास करना होगा। जीत हो या हार, आपकी तैयारी हो तो आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा हमेशा रहती है आपके पास।

आत्मनियंत्रण और इच्छाशक्ति की ताकत : अमेरिकी मनोवैज्ञानिक वॉल्टर मिशेल ने साल 1982 में एक महत्वपूर्ण शोध किया। दशकों पहले किया गया यह शोध आज भी उतना ही प्रासंगिक है। अपने शोध के दौरान वाल्टर मिशेल ने चार साल के बच्चों को एकत्रित किया। उनके सामने कुछ टॉफियां रख दीं। कहा गया यदि कुछ बच्चे टॉफी लेना चाहते हैं तो तुरंत लें और यदि दूसरी टॉफी लेनी है तो उन्हें 15 मिनट इंतजार करना होगा। इसके बाद 15 मिनट का अलार्म लगा दिया गया। जो बच्चे इतना इंतजार नहीं कर सके उन्होंने तुरंत दूसरी टॉफी उठा ली। जिन्होंने इंतजार किया उन्हें 15 मिनट बाद दूसरी टॉफी दे दी गई।

वॉल्टर ने उक्त दोनों प्रकार के बच्चों पर 40 साल तक रिसर्च किया। इसके परिणाम जब सामने आए तो देखा गया कि इंतजार करने वाले बच्चों के जीवन में हर कामयाबी थी और खुशियां भी। वहीं कुछ समय भी इंतजार न कर सकने वाले और आत्मनियंत्रण नहीं रखने वालों के जीवन में रोजाना कोई न कोई परेशानी होती थी। कुल मिलाकर, वॉल्टर का यह रिसर्च साबित करता है कि इच्छाशक्ति और आत्मनियंत्रण जीवन में खुश और कामयाब होने की अनिवार्य शतेर्ं हैं। इसी तरह, बहुत सालों बाद, स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता वरानिका जॉब ने 2010 में एक और अध्ययन किया। इसमें उन्होंने पाया कि हमारी सोच और संकल्प का हमारी इच्छाशक्ति पर सीधा असर होता है। जो लोग यह मानते हैं कि इच्छाशक्ति कमजोर है और सीमित है, वे लोग जीवन में ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाते।

[साइकोथेरेपिस्ट एवं लाइफ कोच]

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