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Air Pollution: अपने वोट बैंक के स्वास्थ्य की भी चिंता करें सरकारेंः डॉ. भूरेलाल

उत्तर भारत की खराब वायु गुणवत्ता को अगर ठीक नहीं किया जा सकता है तो उसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। केंद्रीय एजेंसियां सिर्फ प्लान बना सकती हैं दिशानिर्देश दे सकती हैं लागू करना तो राज्यों का काम है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 04:04 PM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2020 04:04 PM (IST)
Air Pollution: अपने वोट बैंक के स्वास्थ्य की भी चिंता करें सरकारेंः डॉ. भूरेलाल
पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) के अध्यक्ष डॉ. भूरेलाल-ANI

नई दिल्ली। उत्तर भारत के शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण से सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन टिब्यूनल) के साथ-साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय भी खासा चिंतित है। दरअसल ईपीसीए या सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) प्लान बना सकते हैं, दिशानिर्देश दे सकते हैं, उन पर अमल कराना राज्य सरकारों का काम है। राजनेता निहित स्वार्थो के लिए सख्त कदम नहीं उठाते। इसी ढ़िलाई के चलते स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

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ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रेप को सख्ती से लागू कराने के मामले में भी वही समस्या आ रही है। जिन-जिन राज्यों में इसे लागू किया गया है, वहां की सरकारों और प्रदूषण बोर्ड को इसके क्रियान्वयन और कार्रवाई का पैमाना स्वयं निर्धारित करना है। अगर ग्रेप को सख्ती से लागू किया गया तो निश्चित तौर पर सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। मेरा सुझाव रहा है कि सभी स्तरों पर जिम्मेदारी तय कर दी जाए, लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और राज्यों पर भी सख्त एक्शन हो।

हालांकि यह भी विडंबना ही है कि राज्य सरकारें अस्थायी व्यवस्था तो करती हैं, लेकिन स्थायी उपाय करने में ढीली पड़ जाती हैं। मसलन, दिल्ली में लागू हुई ऑड-इवेन एक अस्थायी व्यवस्था थी। ऐसी व्यवस्था सिर्फ तभी के लिए प्रासंगिक हैं जब स्थिति आपातकालीन हो। उस स्थिति में तो स्कूल-कॉलेज भी बंद किए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ दिन के लिए ही संभव है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार में से कोई भी एनसीआर की बिगड़ती हवा को लेकर गंभीर नहीं है।

दिल्ली की स्थिति भी बहुत संतोषजनक नहीं है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि नवंबर 2016 से लेकर अब तक ईपीसीए अनगिनत बैठकें कर चुका है, लेकिन दिल्ली को छोड़ कोई राज्य अपने यहां की आबोहवा में कुछ सुधार नहीं कर पाया है। बेहतर ढंग से वायु प्रदूषण की निगरानी तक नहीं हो पा रही है। सीपीसीबी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अलावा किसी राज्य प्रदूषण बोर्ड ने ठीक से पेट्रोलिंग टीमों का गठन तक नहीं किया है।

दूसरी तरफ पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले में भी राज्य सरकारों की भूमिका काफी मायने रखती है। सरकारों को चाहिए कि वोट बैंक के साथ-साथ अपने मतदाताओं के स्वास्थ्य की भी चिंता करें। इसके अतिरिक्त जनसहयोग भी बहुत महत्वपूर्ण है। जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। दिल्ली सरकार ने अब इस दिशा में कुछ गंभीरता दिखाई है।

जिंदगी की जरूरत हैं सांसें

शुद्ध आबोहवा में रहने वाले किसी व्यक्ति का हर अंग-उपांग दूषित वातावरण के व्यक्ति से कहीं ज्यादा स्वस्थ होता है। इसलिए जिंदगी से प्यार है तो अपनी आबोहवा को शुद्ध बनाकर सांस लेना शुरू कर दें।

पीएम 2.5

ऐसे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रो-मीटर या इससे कम होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है।

पीएम 10

ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 से लेकर 10 माइक्रोमीटर तक होता है।

दुष्परिणाम- 10 माइक्रोमीटर से कम के सूक्ष्म कण से हृदय और फेफड़ों की बीमारी से मौत तक हो सकती है।

सल्फर डाइआक्साइड

रंगहीन क्रियाशील गैस है। सल्फर युक्त कोयले या ईंधन के जलने पर पैदा होती है।

दुष्परिणाम: जलन पैदा करती है। अस्थमा पीड़ित इससे प्रभावित होने पर परेशानी में आ सकता है।

कार्बन मोनोक्साइड

यह एक गंधरहित, रंगरहित गैस है। यह तब पैदा होती है जब ईंधन में मौजूद कार्बन पूरी तरह से जल नहीं पाता है। वाहनों से निकलने वाले धुएं इस गैस के कुल उत्सर्जन में करीब 75 फीसद भागीदारी निभाते हैं। शहरों में तो यह भागीदारी बढ़कर 95 फीसद हो जाती है।

दुष्परिणाम: फेफड़ों के माध्यम से यह गैस रक्त परिसंचरण तंत्र में मिल जाती है। हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है। ऑक्सीजन की मात्र को बेहद कम कर देती है। लिहाजा काíडयोवैस्कुलर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित होती है।

ओजोन

फेफड़ों के रोगों के लिए ओजोन संवेदनशील हो सकती है। इनके लिए ओजोन प्रदूषण भी गंभीर हो सकता है। अधिक समय तक बाहर रहने वाले बच्चे, किशोर, अधिक आयु वाले वयस्क और सक्रिय लोगों समेत स्वस्थ व्यक्ति को भी नुकसान पहुंच सकता है।

सूक्ष्म कणों का प्रदूषण (पार्टिकल पॉल्यूशन)

ये ठोस और तरल बूंदों के मिश्रण होते हैं। आकार के लिहाज से इनके दो प्रकार होते हैं।

(पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) के अध्यक्ष डॉ. भूरेलाल की संवाददाता संजीव गुप्ता से बातचीत पर आधारित)

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