वोट बैंक की राजनीति और इंजीनियरिंग की खामियों में उलझी जल निकासी : गुप्ता
Delhi News जलभराव का मसला नया नहीं दशकों से चला आ रहा है लेकिन न कभी किसी अधिकारी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हुई न ही ठेकेदारों को कली सूची में डाला गया। सख्त कार्रवाई ना होने से किसी के मन में कोई भय भी नहीं रहता।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पर्यावरणविद ओर जन सरोकार से जुडे एक्टिविस्ट अभिषेक गुप्ता का कहना है कि जलभराव की समस्या अब नासूर बनती जा रही है और इसकी जड़ में है वोट बैंक की राजनीति। इसी की वजह से जल निकासी की सामान्य व्यवस्था धराशायी हो गई है। स्लोप, कालोनी की नालियां, नालें और जालीदार सीवर के ढक्कन... सब कुछ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं।
वर्षा का पानी निकलेगा कैसे, वह तो एकत्र ही होगा। वोट बैंक के चलते न कहीं से अतिक्रमण हट पाता है और सामान्य व्यवस्था ही कायम ही रह पाती है। अब तो आलम यह है कि यमुना खादर में हुए अतिक्रमण और अवैध निर्माण को भी नियमित करने की तैयारी की जा रही है।
दिल्ली में आयोजित एक समूह चर्चा में उनहोंने कहा कि समस्या की जड़ में जवाबदेही का न होना, नगर निगम एवं दिल्ली सरकार के बीच आपसी समन्वय नहीं होना भी है। जलभराव का मसला नया नहीं, दशकों से चला आ रहा है, लेकिन न कभी किसी अधिकारी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हुई, न ही ठेकेदारों को कली सूची में डाला गया। सख्त कार्रवाई ना होने से किसी के मन में कोई भय भी नहीं रहता। इसी तरह नगर निगम और लोक निर्माण विभाग के बीच कोई सामंजस्य होना तो दूर की बात, सीमा विवाद व अधिकार क्षेत्र का मुददा ही सुर्खियों में बना रहता है।
उनहोंने यह भी कहा कि बेशक दिल्ली में मानसून की दस्तक जून के आखिर या जुलाई की शुरुआत में होती है, लेकिन जलभराव से निपटने की तैयारी मार्च अप्रैल में ही शुरू हो जानी चाहिए। हर क्षेत्र के लिए एक- एक अधिकारी को नोडल अफसर भी बनाया जाना चाहिए।
हर सप्ताह इनसे प्रगति रिपोर्ट ली जाए और बीच-बीच में समीक्षा बैठक भी हो। नगर निगम या लोक निर्माण विभाग में से जिसके पास अच्छी तकनीक हो, दूसरे को भी उसका अनुसरण करने में कोई हिचक नहीं रखनी चाहिए। अगर किसी एक विभाग को कहीं कोई अच्छा या बुरा अनुभव पेश आए तो दूसरे को भी उससे सबक लेना चाहिए।
जिला अधिकारी, उपायुक्त, अतिरिक्त आयुक्त, महापौर और मंत्री तक की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। सभी अपने अपने क्षेत्राधिकार में न केवल मौका मुआयना करें बल्कि समीक्षा भी करते रहें। सिर्फ नालों की सफाई होना ही पर्याप्त नहीं है, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि नालों से निकाली गई गाद बारिश शुरू होने से पहले उठा ली जाए। बहुत बार यह गाद उठ नहीं पाने के वापस नालों में पहुंच जाती है। होता क्या है कि पहले तो यह कहकर इस गाद को छोड़ दिया जाता है कि सूखने पर उठाया जाएगा जबकि बाद में लापरवाही के चलते कोई उसे उठाता ही नहीं।