नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पर्यावरण पर खतरों से आगाह करने के लिए राजधानी में दो दिवसीय पर्यावरण फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश- विदेश की 26 फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा। गैर सरकारी संगठन टाक्सिक लिंक की ओर से यह फिल्म फेस्टिवल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बृहस्पतिवार और शुक्रवार को आयोजन किया जाएगा। इस फेस्टिवल के जरिए देश में मौजूद पर्यावरणीय चिंताओं को लोगों के सामने रखा जाएगा। "कोट्स फ्राम द अर्थ" का मकसद महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाना है। इसमें प्रवेश मुफ्त होगा।
यह फेस्टिवल चार साल के अंतराल पर
गौरतलब है कि टाक्सिक लिंक 2004 से हर दो साल के अंतराल पर पर्यावरण फिल्म फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है। यह फेस्टिवल फिल्मों के माध्यम से पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करता है, जिसे, एक संवाद स्थापित करने के सबसे आकर्षक और प्रभावशाली माध्यमों में से एक माना जाता है। कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार यह फेस्टिवल चार साल के अंतराल पर हो रहा है।
निर्देशक के साथ होगा सवाल- जवाब का सत्र
इस साल 26 फिल्में दिखाई जाएंगी, जिनमें अमित वी. मसुरकर की शेरनी और एंड्रिया जेम्मा की द लास्ट सीड जैसी समीक्षकों द्वारा सराही गई फिल्में शामिल हैं। हर फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद उसके निर्देशक के साथ सवाल- जवाब का सत्र होगा, जहां लोगों के सवालों का जवाब देते हुए व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, दर्शकों को फिल्म के विषयों और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन की क्षमता के बारे में अतिरिक्त जानकारी प्रदान करने के लिए, एक पैनल चर्चा फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बनेगी।
भारतीय पर्यावरण फिल्म निर्माताओं की फिल्में भी होगी प्रदर्शित
इस फेस्टिवल में रूस, यूक्रेन, ग्रीस, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, तुर्की, वेनेजुएला, इंडोनेशिया, नेपाल और व्यापक रूप से कई अन्य देशों से महत्वपूर्ण फिल्मों के साथ-साथ, जाने माने भारतीय पर्यावरण फिल्म निर्माताओं की फिल्में भी प्रदर्शित की जाएंगी। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से और स्वीडिश सोसाइटी फार नेचर कंजर्वेशन एंड फ्रेंड्स फाउंडेशन इंटरनेशनल द्वारा समर्थित यह फेस्टिवल बेहतर कल की कल्पना करने के लिए आज दुनिया को प्रभावित करने वाली पर्यावरणीय चिंताओं के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करता है।
जलवायु संकट के प्रति किया जाएगा जागरूक
टाक्सिक लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश बताती हैं कि यह फिल्में जैव-संस्कृतिवाद और दैनिक चुनौतियों पर एक साथ प्रकाश डालते हुए पर्यावरण से संबंधित मानव जीवन का चित्रण करती हैं। फिल्म "द क्लाक्स", समय की परिकल्पना के माध्यम से जलवायु संकट को संबोधित करती है। साथ ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामना किए जाने वाली ऐसी पारिस्थितिक चिंताओं- चुनौतियों के साथ-साथ, किसान के जीवन में महामारी और जलवायु परिवर्तन के दोहरे प्रभाव, प्लास्टिक कचरे की समस्याएं, विशेष रूप से महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक्स तथा इसके विकल्प एवं संभावित समाधान को, एक काव्यात्मक चेतावनी के रूप में दर्शाती है।
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