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समझें अपनी जिम्मेदारी, पर्यावरण सिर्फ सरकारों की ही नहीं, बल्कि हमारी भी चिंता और पहल में शामिल होना जरूरी

एक तरफ जहां ग्लासगो में तमाम शक्तिशाली नेता दुनिया के पर्यावरण को स्वच्छ रखने पर चिंता जताते हुए जरूरी पहल कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ इसके तुरंत बाद दीपावली पर्व पर उम्मीद के विपरीत दिल्ली-एनसीआर में जिस तरह पटाखे चलाने की प्रतिस्पर्धा दिखी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 06 Nov 2021 10:52 AM (IST)Updated: Sat, 06 Nov 2021 10:52 AM (IST)
समझें अपनी जिम्मेदारी, पर्यावरण सिर्फ सरकारों की ही नहीं, बल्कि हमारी भी चिंता और पहल में शामिल होना जरूरी
पर्यावरण सिर्फ सरकारों की ही नहीं, बल्कि हमारी भी चिंता और पहल में शामिल होना क्यों जरूरी है।

अरुण श्रीवास्तव। शुक्रवार सुबह जब दिल्ली-एनसीआर के लोग सोकर उठे और बाहर देखा तो हर तरह धुआं धुआं नजर आया। एक बारगी लगा कि कहीं यह ठंड से पहले कोहरे का तो नहीं, पर ज्यादातर लोगों को जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी, तब उन्हें लगा यह तो प्रदूषण का धुंध है। इसकी वजह से सांस और एलर्जी की परेशानी वाले लोगों को काफी दिक्कत हुई। हालांकि इसका अंदाजा तो दीपावली की शाम से शुरू होकर देर रात तक चलने वाली धूम धड़ाके वाली आतिशबाजी से लग गया था, जबकि केंद्र और राज्य सरकारें काफी पहले से पटाखों से परहेज करने को लेकर चेता रही थीं। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय तक ने इसमें रियायत देने से मना कर दिया था। ऐसे में उम्मीद तो यही की जा रही है थी कि इस बार की दीपावली कहीं राहत भरी होगी, पर अफसोस ऐसा नहीं हो सका।

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माना जा सकता है कि कोरोना का कहर कम होने के बाद इस बार लोग इस बार अपने उत्साह में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे, लेकिन उमंग में यह भी नहीं भूलना चाहिए था कि उनका उत्साह कहीं उन्माद बनकर दूसरों और खुद उनके लिए भी परेशानी का सबब न बन जाए। यह तो वही बात हुई कि हम जिस डाल पर बैठे हैं, खुद ही उसे काटने पर तुले हैं। जो स्वच्छ पर्यावरण हम सभी के जीवन के बेहद जरूरी और अनमोल है, जिसके न होने या कम होने पर हमारा जीवन ही संकट में पड़ सकता है, उसे हम खुद नुकसान पहुंचाने पर आमादा हैं। इसके लिए सरकारों को ही दोष देना ठीक नहीं। हम सब इसके लिए दोषी और जिम्मेदार हैं, जिन्हें शायद अपने उस पर्यावरण की कतई चिंता नहीं, जो जीने के लिए बेहद जरूरी है। दिल्ली-एनसीआर सहित आसपास के शहरों-इलाकों में इन दिनों प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ाने में पराली को भी जिम्मेदार माना जाता रहा है।

ठीक नहीं दिखावा और प्रतिस्पर्धा: कोरोना की पहली लहर ने पिछले साल मार्च के बाद जिस तरह दुनिया के साथ-साथ हमारे देश में भी कहर बरपाया और फिर इस साल अप्रैल-मई में दूसरी लहर में इसे दोहराया, उसने हर किसी को जीवन को मोल और अच्छी तरह से समझा दिया है। कम से कम अब तो हर किसी को यह समझ लेना चाहिए कि किसी तरह के दिखावे का अब कोई मतलब नहीं। इंसान और इंसानियत सबसे ज्यादा जरूरी है। दीपावली के पहले सरकार, न्यायालय और मीडिया की तरफ से जो माहौल बनता दिख रहा था, उससे तो यही लग रहा था कि लोग इस बार दीप-पर्व को पूरे उत्साह के साथ तो मनाएंगे, पर पटाखों से दूरी बनाए रखेंगे। शासन-प्रशासन की तरफ से भी इसके लिए सजगता बरती जा रही थी। पर विडंबना यह है कि लोगों के अति-उत्साह ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया।

अब भी चेत जाएं आगे के लिए: अभी जो घुटन हो रही है और सांसों व एलर्जी के मरीज जिस परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं, उसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। बमुश्किल हम सब कोरोना से उबरने की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि हमारी जरा सी लापरवाही बनता काम भी बिगाड़ सकती है। त्योहारों के दौरान बाजारों में भीड़ का उमड़ना इस लापरवाही का ही संकेत है। जैसे हम सबने इतना सब्र किया, थोड़ा संयम और रख लें। हमारे प्रधानमंत्री ने देशवासियों को सुरक्षित करने की दिशा में जल्द से जल्द देश में सौ प्रतिशत टीकाकरण का जो संकल्प जताया है, उससे पूरी उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भारत कोरोना से पूरी तरह मुक्त हो सकेगा।

समझें अपना कर्त्तव्य: हम अक्सर दूसरों से साफ-सफाई सहित तमाम नियमों का पालन करने की उम्मीद तो करते हैं, पर खुद उसका उल्लंघन करने में पीछे नहीं रहते। मुझे लगता है कि इस दीपावली पर भी कुछ ऐसा ही हुआ है। हम यह मानकर चल रहे थे कि हमारे थोड़े से पटाखे चलाने से क्या हो जाएगा, बाकी लोग तो इसका ध्यान रख ही रहे होंगे। दरअसल, सबने ऐसा ही सोचा होगा। इसका खामियाजा यह हुआ कि सबने बढ़-चढ़कर पटाखे चलाए और पर्यावरण की ऐसी-तैसी कर दी।

‘पंचामृत’ के साथ स्वावलंबन की राह

हाल में ग्लासगो (स्काटलैंड) में आयोजित ‘काप-26’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के लिए एक खास रणनीति की घोषणा की थी, जिसे उन्होंने भारत की परंपरा के अनुरूप ‘पंचामृत’ कहा। स्वावलंबन के साथ इस राह पर चलकर देश के पर्यावरण को सुरक्षित रखने में पूरी तरह से मदद मिलने की उम्मीद है। इस ‘पंचामृत’ के पांच संकल्प हैं :

1.भारत 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट तक पहुंचा देगा।

2. 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्कताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा।

3. अब से 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा।

4.2030 तक भारत अपनी अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से भी कम कर देगा।

5.वर्ष 2070 तक भारत ‘नेट जीरो इमिशन’ राष्ट्र बनने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा।

प्रधानमंत्री के संकल्प से बढ़ी उम्मीद: पिछले महीने की शुरुआत में कथित कोयला संकट के कारण देश के अधिकांश ताप बिजलीघरों के बंद होने को खूब प्रचारित किया गया। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।सरकार द्वारा उठाये गए त्वरित कदमों के कारण में इस तात्कालिक संकट का निवारण हो गया। उल्लेखनीय है कि भारत में ज्यादातर बिजली उत्पादन कोयले पर आधारित ताप बिजलीघरों से होता है। कोयले का उपयोग देश के ज्यादातर उद्योगों में भी होता है। यह भी एक तथ्य है कि भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार है, जिसके एक बड़े हिस्से का अभी तक इस्तेमाल नहीं किया जा सका है।

ग्लासगो (स्काटलैंड) में हाल में आयोजित काप-26 में हमारे प्रधानमंत्री ने देश में कोयले की खपत को कम करने की बात कही। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वर्ष 2030 तक देश में कुछ ऊर्जा खपत का 50 प्रतिशत रिनीवेबल एनर्जी से पूरा किया जाएगा। दरअसल, प्रधानमंत्री भी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि प्रदूषण बढ़ाने में कोयले की अहम भूमिका है, ऐसे में नुकसान सहकर भी इसके इस्तेमाल को घटाना और पर्यावरण उपयुक्त ऊर्जा को बढ़ावा देने पर सक्रियता से काम करना होगा। हम देशवासियों को भी प्रधानमंत्री के संकल्प को देखते हुए देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए हर तरह से इसमें सहयोग करने की पहल के लिए तत्पर रहना होगा।


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