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Kisan Andolan: डूटा अध्यक्ष की अपील, 'प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाया, अब हठ छोड़ें किसान प्रदर्शनकारी'

Kisan Andolan दयाल सिंह कालेज में प्रोफेसर डा. भागी कहते हैं- शिक्षक संगठन भी अपनी मांग मनवाने या समस्याओं का निदान करने के लिए धरना-प्रदर्शन करते हैं। अपनी बात रखते हैं दूसरे पक्ष की सुनते हैं और जब बात मान ली जाती है तो प्रदर्शन छोड़ देते हैं।

By Jp YadavEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 08:49 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 08:49 AM (IST)
Kisan Andolan: डूटा अध्यक्ष की अपील, 'प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाया, अब हठ छोड़ें किसान प्रदर्शनकारी'
Kisan Andolan: डूटा अध्यक्ष की अपील, 'प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाया, अब हठ छोड़ें किसान प्रदर्शनकारी'

नई दिल्ली/नोएडा [सुशील गंभीर]। अगर प्रदर्शन करने का हक है तो फिर उसके साथ कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। ऐसा भी न हो कि जिस मांग को लेकर आप विरोध जता रहे थे, वह पूरी होने के बाद भी अड़ियल बने रहें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन भावनाओं को देखते हुए तीनों नए केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेकर बड़ा दिल दिखाया है, इसलिए अब प्रदर्शनकारियों को भी हठ छोड़ देनी चाहिए। दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श में दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) के अध्यक्ष डा. एके भागी ने अपनी इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कोई भी संगठन प्रदर्शन करे तो नागरिक सुरक्षा को नहीं भूलना चाहिए।

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इस कदर जिद भी ठीक नहीं

दयाल सिंह कालेज में प्रोफेसर डा. भागी कहते हैं- 'शिक्षक संगठन भी अपनी मांग मनवाने या समस्याओं का निदान करने के लिए धरना-प्रदर्शन करते हैं। अपनी बात रखते हैं, दूसरे पक्ष की सुनते हैं और जब बात मान ली जाती है तो प्रदर्शन छोड़ देते हैं। कृषि कानून वापस लिए जा चुके हैं, सरकार ने साथ बैठकर बात करने को कहा है, लेकिन फिर भी जिद करना तो ठीक नहीं है। ऐसा करने से खुद के ही वजूद पर सवाल उठते हैं।'

इसमें किसी की हार या जीत नहीं

विमर्श के दौरान उठे एक सवाल पर डा. एके भागी ने कहा- 'प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापस लिया तो इसे किसी भी पक्ष को हार या जीत के नजरिये से नहीं देखना चाहिए। यह हार या जीत का विषय ही नहीं है, यह तो विश्वास का और भावनाओं का विषय है।'

अवसर को गंवाना समझदारी नहीं

डा. एके भागी कहते हैं 'जो संगठन कृषि कानूनों की खिलाफत में थे, उन्हें पहले भी बातचीत के लिए बुलाया जाता रहा है और अब फिर सरकार उनके साथ बैठकर कृषि सुधारों पर काम करना चाहती है। यह तो संगठनों के लिए अच्छा मौका है और इस पर समझदारी दिखाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। अगर उन्हें लगता है कि ज्यादा अच्छे प्रविधान उनके पास हैं, तो सरकार के पास लेकर जाएं।'

खास बातें

  • संगठनों का काम सिर्फ आंदोलन करना नहीं है, जन भावनाओं को भी उतना ही महत्व देना चाहिए, जितना खुद को देते हैं
  • इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शनों में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप रहा है
  • संगठन प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन आम जन को नहीं होना चाहिए नुकसान, अड़ियल रवैया छोड़कर बातचीत के लिए आगे बढ़ें।

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