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पृथ्वी को समझ नहीं पाए, बात कर रहे मंगल ग्रह की, भयावह होगी स्थिति: अनिल प्रकाश

विकास की रफ्तार में हमने प्रकृति को हो रहे नुकसान को नजरअंदाज किया है, जिसका परिणाम दिन-प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण के रूप में सामने आ रहा है।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 08:34 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 08:34 PM (IST)
पृथ्वी को समझ नहीं पाए, बात कर रहे मंगल ग्रह की, भयावह होगी स्थिति: अनिल प्रकाश
पृथ्वी को समझ नहीं पाए, बात कर रहे मंगल ग्रह की, भयावह होगी स्थिति: अनिल प्रकाश

नई दिल्ली, जेएनएन। 'आज हर ओर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का शोर सुनाई देता है। लोग मंगल ग्रह पर जाने की बात करते हैं। हैरानी होती है ये बातें सुनकर। हम तो पृथ्वी को ही समझ नहीं पाए हैं, ऐसे में मंगल की बात करना कितना सही है, यह सोचा जा सकता है। प्रकृति विज्ञान को समझना बहुत जरूरी है। प्रकृति की रक्षा करने के लिए बड़े कदम उठाने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में देश की और भयावह स्थिति होगी।' ये बातें पूसा में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के स्थापना दिवस पर आयोजित व्याख्यान में हिमालयन पर्यावरण अध्ययन संरक्षण संगठन (हेस्को) के संस्थापक व माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहीं।

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परिणाम भयावह होगा
डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि विकास की रफ्तार में हमने प्रकृति को हो रहे नुकसान को नजरअंदाज किया है, जिसका परिणाम दिन-प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण के रूप में सामने आ रहा है। हालत यह है कि मिट्टी बिना यूरिया के कुछ नहीं उपजाती। पेड़-पौधे बिना कीटनाशक के छिड़काव के नहीं रह सकते। यह सब हमारी लापरवाही का परिणाम है। प्रति वर्ष देश में एक लाख तीस हजार स्क्वायर किलोमीटर जंगल कट रहे हैं। अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो जंगल धीरे-धीरे सिमटते चले जाएंगे, जिसका परिणाम कितना भयावह होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

नदी सूखने की चिंता नहीं
डॉ. जोशी ने कहा कि नीतियां बनाने वाले वे लोग हैं, जिनका शहरों से नाता रहा है। अगर इनके नल में पानी नहीं आए तो ये झगड़े पर उतारू हो जाते हैं, लेकिन नदी सूखने की चिंता इन्हें नहीं है। जब हवा प्रदूषित होती है तो लोग मास्क खरीदने के लिए दौड़ते हैं। एयर प्यूरीफायर खरीदने के लिए दौड़ते हैं, लेकिन वातावरण को साफ करने के लिए कोई नहीं दौड़ता।

किसानों को दें सुविधाएं 
डॉ. जोशी ने कहा कि किसान की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। एक सर्वे में सामने आया कि 60 प्रतिशत किसान यह नहीं चाहते हैं कि उनका बेटा खेती करे। ऐसा क्यों हो रहा है। बाजार पर महज कुछ लोगों का कब्जा है। क्यों न हम किसानों को ऐसी सुविधाएं दें जिससे कि वे अपने गेहूं को पीसकर उसका आटा बाजार में बेच सकें। जो लाभ कंपनियां कमाती हैं, वह किसान कमाएंगे।

किसान बनना होगा
माउंटेन मैन ने कहा कि सरकार जीडीपी के बढ़ने की बात तो हर समय करती है लेकिन आज तक पर्यावरण, मिट्टी व पानी के सुधार को लेकर बात नहीं की गईं। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से कहा कि अगर कृषि के क्षेत्र में सुधार करना है तो पहले किसान बनना होगा। इस मौके पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. आरबी सिंह, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष डॉ. केवी प्रभु, डॉ. आरसी अग्रवाल समेत काफी संख्या में लोग मौजूद थे।


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