फिल्ममेकर सुधीर मिश्रा ने किया इशारा, आ सकता है ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ का सीक्वल
सुधीर मिश्रा ने कहा कि राजू हिरानी व विशाल भारद्वाज सरीखे कुछ फिल्म निर्देशक अब भी अच्छी फिल्मों का वजूद बचाए हुए हैं।
नई दिल्ली (प्रियंका दुबे मेहता)। सुधीर मिश्रा का नाम उन चंद फिल्म लेखकों व निर्देशकों में शुमार किया जाता है जो लीक से हटकर विषयों पर फिल्में बनाते हैं। जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) की प्री-लॉन्च पार्टी में पहुंचे सुधीर मिश्रा ने बताया कि किस तरह क्षेत्रीय फिल्मों से लेकर अंतरराष्ट्रीय फिल्मों के लिए जेएफएफ एक बेहतरीन मंच साबित हो रहा है। इससे क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की संस्कृति व उनका फ्लेवर समझ में आता है। उन्होंने कहा कि अधिकांश फिल्में हकीकत व मौलिकता से कोसों दूर हैं। फिल्मों को इस स्तर पर पोषण की जरूरत है। कुछ नवोदित निर्देशक कुछ हद तक इसे पूरा भी कर रहे हैं, लेकिन मेनस्ट्रीम सिनेमा में बदलाव की काफी जरूरत है। राजू हिरानी व विशाल भारद्वाज सरीखे कुछ फिल्म निर्देशक अब भी अच्छी फिल्मों का वजूद बचाए हुए हैं।
सुधीर कहते हैं कि वह किसी फिल्म की कहानी गढ़ते नहीं हैं, बल्कि जीवन के अनुभवों व असली किरदारों के आधार पर पटकथा व पात्रों का चयन करते हैं। जेएफएफ के डायरेक्टर मयंक शेखर ने सुधीर मिश्रा से फिल्म फेस्टिवल पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस बार ईरान कंट्री पार्टनर है। इसमें ईरानी फिल्म दिखाई जाएगी। सुधीर ने कहा कि वह इस फिल्म फेस्टिवल को पसंद करते हैं, क्योंकि यह आयोजन उन शहरों में होता है जहां से फिल्मों की कहानियां निकलती हैं। जो अलग तरह की कहानियां बनती हैं वह दुर्भाग्य से उन शहरों तक नहीं पहुंच पातीं जहां से उनका ताल्लुक होता है। ऐसे में जेएफएफ एक सेतु का काम कर रहा है। वह अलग-अलग शहरों में इस तरह का आयोजन कर इन फिल्मों को वहां के दर्शकों तक पहुंचा रहा है।
वह कहते हैं कि फिल्मों में जो रस होता था, जो कविता होती थी, समृद्ध भाषा की प्रधानता होती थी, वह सब अब बॉलीवुड के प्रभाव में खत्म होती जा रही है। मैं भी बॉलीवुड का हिस्सा हूं, ऐसा नहीं है कि पूरा बॉलीवुड खराब है, लेकिन जो रिदम, जो सांस्कृतिक समृद्धि चाहिए वह फिल्मों में नहीं मिल रही है।
दादी-नानी को सबकुछ सहते-सुनते देखा
सुधीर मिश्रा की फिल्मों में महिला किरदारों का खासा प्रभाव होता है। उन्होंने कहा कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि वह वंचित व समाज के हाशिये पर रखे जाने वाले वर्ग से विशेष लगाव रखते हैं और दूसरा कारण यह है कि उनके जीवन में महिलाओं का प्रभाव रहा है। उन्होंने अपनी दादी और नानी को अकेले बच्चे पालते, सबकुछ सहते-सुनते देखा है। उन्होंने बताया कि अभी फिल्म की कहानी पर काम चल रहा है और बेहतर स्क्रिप्ट तैयार हो गई तो ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ फिल्म का सीक्वल बनाएंगे। अपनी फिल्मों में वह अवध का विशेष ध्यान रख रहे हैं। फिल्म ‘काकोरी’ बना रहे हैं, जिसमें क्षेत्र विशेष की कहानी व वहां की संस्कृति की झलक मिलेगी।
इंटरनेट ट्रोलिंग पर चिंता
सुधीर इंटरनेंट ट्रोलिंग को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि किसी से मतभेद रखना अलग बात है, लेकिन उसके चलते उस पर अश्लील कमेंट करना बहुत गलत है। फिल्में समाज का आईना होती हैं और अर्थपूर्ण फिल्मों से समाज को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।