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कोरोना संक्रमण को मात दे चुकी महिलाओं का अनुभव और उनकी सकारात्मक सोच काबिलेतारीफ

जब एक गृहस्वामिनी जिसके बिना घर का कोई काम संभव नहीं हो पाता कोरोना से संक्रमित हो जाती है और आइसोलेशन में चली जाती है तो क्या होती होगी उसकी मनोस्थिति और परिवार का हाल? एक तरफ बीमारी का तनाव और दूसरी तरफ घर के सदस्यों की चिंता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 11:40 AM (IST)
कोरोना संक्रमण को मात दे चुकी महिलाओं का अनुभव और उनकी सकारात्मक सोच काबिलेतारीफ
कोरोना को मात दे चुकी महिलाओं के अनुभव बयां करते हैं उनकी कठिनाइयों और सकारात्मक सोच को...

यशा माथुर। कोरोना संक्रमण को बहुत सी महिलाओं ने झेला है और झेल रही हैं, लेकिन यहां भी उनकी हिम्मत और सहनशक्ति के साथ घर का मैनेजमेंट काबिलेतारीफ है। वे कोरोना को सकारात्मक रूप से लेकर कई उदाहरण पेश कर रही हैं।

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तनाव लेना जिंदगी का अनादर

सुरभि कटारिया मलिक ने जब पंजाबी गीत गाते और डांस के एक्शन करते वीडियो को शेयर किया तो पता चला कि यह खुशी कोरोना से जीत जाने की थी। उन्होंने कोरोना संक्रमण होने का तनाव नहीं लिया, बल्कि इसे हराने के बाद अपने गाने और एक्शन का वीडियो शेयर किया। वह पहले एचडीएफसी बैंक में काम करती थीं, लेकिन अब होममेकर हैं। वह कहती हैं, मैं बहुत पैशनेट और क्रिएटिव हूं।

मुझे ऐसा लगा कि कोरोना ही हुआ है न, कोई लाइलाज बीमारी थोड़े हुई है। मुझे ऐसा लगता है जिंदगी अनिश्चित है, लेकिन मृत्यु निश्चित है। वह तो आनी ही आनी है। अगर मुझे जिंदगी मिली है तो क्यों न मैं उसका आदर करूं और उसे मजे से जिऊं। जब जाना होगा तब जाएंगे, एक न एक दिन सभी को जाना है। अगर इसका तनाव लेंगे तो यह जिंदगी का अनादर होगा। मुझे लगा कि मेरा जो मन करेगा मैं करूंगी। मेरा नाचने का मन कर रहा है तो नाचूंगी, गाने का मन कर रहा है तो गाऊंगी और ड्रेसअप होकर वीडियो बनाऊंंगी। हां, मैं कमरे अंदर थी तो घरवालों को इतना लग रहा था कि मैं अकेली हूं तो ठीक रहूं, लेकिन मुझे कोई डर नहीं था।

आशावान रहती हूं

अगर घर में माता-पिता कोरोना पॉजिटिव हो जाएं और ग्यारह साल की बच्ची निगेटिव तो उस मां का क्या हाल होगा, जो आइसोलेशन में चली जाए और बच्चे के पास तक न आ सके, लेकिन क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रश्मि पांडे ने इस स्थिति को हिम्मत से संभाला और अपनी व पति की तबियत का भी पूरा ख्याल रखा। वह कहती हैं, मुझे और मेरे पति को कोरोना हुआ और मेरी 11 साल की बेटी निगेटिव थी। मुझे कोरोना का बिल्कुल डर नहीं था, लेकिन बेटी की चिंता थी। जब टेस्ट पॉजिटिव आया तो मुझे घबराहट नहीं हुई। सबसे पहले मैंने सोचा कि मुझे सही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। मैं आशावान रहती हूं। इसलिए पांच दिन बाद रिकवर होने लगी थी। मुझे चिंता सिर्फ इतनी थी कि कि अगर अस्पताल जाना पड़ा तो बिटिया कैसे मैनेज कर पाएगी। होम आइसोलेशन में मुझे परेशानी नहीं थी। सोच यही थी कि कोरोना हो गया है तो हो गया। अब इसका सामना करना है।

कोरोना को हराया

मुंबई की 62 वर्षीया मेहनाज लोखंडवाला 172 किलो की हैं। उन्हेंं मोटापे के साथ-साथ कैंसर, डायबिटीज और अस्थमा जैसी कई गंभीर बीमारियां भी हैं। उन्हेंं जब कोरोना हुआ तो वह अस्पताल जाने को तैयार नहीं थींं, लेकिन जब ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा तो उन्हेंं भर्ती करवाया गया। मेहनाज ने कहा कि दुनिया की मोहब्बत, प्यार और दुआएं, ये सब हमें जिताती हैं। दिमाग मजबूत रखो कि कोरोना हमको हराने वाला नहीं है। मैं कोरोना को हराऊंगी। कोरोना मुझसे किसी भी सूरत में नहीं जीतेगा। हालत खराब होने पर भी उनका जज्बा मजबूत था। उन्होंने उन लोगों को भी संदेश दिया जो अस्पताल जाने और टेस्ट कराने से डरते हैं और कहा कि यह गलती मत करना। मैंने गलती की, दो दिन नहीं गई हॉस्पिटल। अगर दो दिन पहले जाती तो और पहले रिकवर होती। अगर डॉक्टर कहते हैं जाओ तो जाओ। ऑक्सीजन की बहुत जरूरत पड़ती है। इसलिए डॉक्टर की जरूर सुनिए।

वीडियो कॉल के जरिए मैनेजमेंट

कोरोना से जंग में तकनीक बहुत काम आ रही है। महिलाएं घर का सारा सामान ऑनलाइन मंगा लेती हैं और आइसोलेशन में रहते हुए वीडियो कॉल के जरिए अपने प्रियजनों से संपर्क कर पा रही हैं। डॉ. तन्वी सूद के मम्मी-पापा, भाई और पति को पहले कोरोना हुआ और उनकी देखभाल करने में वह भी संक्रमित हो गईं। तन्वी कहती हैं, काफी बंदिशें हो गईं। हमारे परिवार के लोग और दोस्तों के परिवार के लोग खाना तैयार कर घर के बाहर छोड़कर जाते। सब अलग-अलग कमरों में थे। बाद में मम्मी-पापा की तबियत ज्यादा खराब हुई तो उन्हेंं अस्पताल में रहना पड़ा। हम लोग अपने कमरों से ही वीडियो कॉल के जरिए कोर्आिडनेट करते थे। फोन पर ही डाक्टर से बात करते।

कोरोना से डर नहीं लगा

होम मेकर सुरभि कटारिया मलिक ने बताया कि मुझे जरा भी डर नहीं लगा। मैं बुद्धिज्म को मानती हूं और अपनी जिंदगी में किसी चीज से नहीं डरती। मुझे ऐसा लगता है कि ब्रह्मांड ने मुझे कोरोना इसलिए दिया ताकि इस बात का परीक्षण हो जाए कि मैं डर में नहीं जीती। यह मेरी प्रार्थनाओं का असर है कि मुझे डर नहीं लगा। मुझे आइसोलेशन में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। घर में भी कोई पैनिक नहीं हुआ। हम सभी को विश्वास था कि सब कुछ सामान्य हो जाएगा। स्वाद व गंध का अहसास खत्म हो गया था, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। मैंने भाप ली, गरारे किए और आयुर्वेदिक दवाएं लीं। इस दौरान किताबें पढ़ीं, फिल्में देखीं और उन सबके लिए प्रार्थना की जिनको कोरोना हुआ था। मैं बहुत जल्द रिकवर कर गई।

सकारात्मक हो सही फैसले लिए

बंगलुरू के अपोलो अस्पताल की एसोसिएट कंसलटेंट डॉ. तन्वी सूद ने बताया कि हम प्रोफेशनल्स हैं। कोई समस्या आती है तो उसका हल ढूंढ़ते हैं। हमारा फोकस मम्मी-पापा की तबियत पर था। हमने यह सोचा नहीं कि ये क्या हो गया? हम यह सोचते थे कि इससे बाहर कैसे निकलना है। दो सप्ताह तक मम्मी-पापा अस्पताल में रहे। मुझे भी सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। मेरी बहन निगेटिव थी। उसने ही हम सभी को संभाला। एक घर में रहने के बाद भी हम सब तभी मिले जब सब निगेटिव हुए। हमारे लिए तो यह एक आशीर्वाद की तरह था कि सब ठीक हो गए। इसलिए इसके आगे कुछ सोचा नहीं। सब कुछ ठीक होने में लगभग एक महीना लग गया। हम सकारात्मक थे। इसलिए सही फैसले लेते रहे।

अकेले ही सब मैनेज किया

लखनऊ के ठाकुरगंज टीबी हॉस्पिटल की नर्सिंग ऑफिसर बबीता कुशवाहा ने बताया कि मैं लखनऊ में रहती हूं। जब कोरोना पॉजिटिव हुई तो अकेली ही रही। घर में मेरी दादी हैं और पापा का र्कािडयक ऑपरेशन हुआ था। उसी दौरान मुझे कोरोना संक्रमण हो गया। जब पापा डिस्चार्ज हुए तो उनको घर भेज दिया और मैं अपने फ्लैट पर आ गई। जॉब में होने के कारण पहले से ही सिंगल रहती हूं। एक पालतू कुत्ता है उसके साथ समय बिताया। खाना-पीना, एक्सरसाइज सब खुद ही मैनेज किया। र्नंिसग ऑफिसर हूं तो मुझे काफी जानकारी है। इसलिए सब मैनेज कर पाई। मैंने निगेटिव खबरें बिल्कुल नहीं देखीं। ऑनलाइन सामान मंगवाया या पड़ोसी मंगवाकर दरवाजे पर रखवा देते। गूगल और यूट्यूब से सकारात्मक जानकारी लेती रही।

भावनाओं को हावी नहीं होने दिया

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रश्मि पांडे ने बताया कि किसी भी परेशानी में समस्या का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करती हूं। भावनाओं को हावी नहीं होने देती। जब हमें कोरोना हुआ तब पति की भी तबियत ठीक नहीं थी। उनको बुखार आ रहा था। उनकी दवाइयों का भी मैं ही ध्यान रख रही थी। कोलकाता में रहने वाले मेरे भाई हमेशा मेरे साथ फोन पर जुड़े रहे। उन्होंने ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल चेक करते रहने के लिए कहा था। पति और मैंने घर पर ऑक्सीजन रखने की जरूरत समझी और ऑक्सीजन सिलेंडर मंगवाकर रखे। मैं पैनिक नहीं होती और यह सोचती हूं कि जो चीज सामने आई है उसका सामना करना है। खतरे को भांप लेना हमारे काम आया। मैं तनाव में थी, लेकिन जानती थी कि कोरोना का सामना करना है।

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