Delhi Drainage System: अनियोजित विकास की भेंट चढ़ा ड्रेनेज सिस्टम, दिल्ली में गायब हो गए कई नाले
Delhi Drainage System दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम 44 साल पुरानी व्यवस्था पर टिका हुआ है। मास्टर प्लान 1976 में तैयार किया गया था तब दिल्ली की आबादी 60 लाख थी। अब 2 करोड़ के पास है।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। Delhi Drainage System: देश के लगभग 50 फीसद हिस्से में सीवर लाइन है ही नहीं। हल्की सी बारिश में भी सड़कें तालाब बन जाती हैं। नालियों का गंदा पानी घरों व फैक्ट्रियों में घुसने लगता है। साथ ही भूजल को भी दूषित करता है। हाल में हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में चौथी बार शीर्ष पर रहने वाले इंदौर में भी पिछले दिनों बारिश ने आफत मचा दी थी। सड़कों पर नावें चलने लगीं। ये समस्या सिर्फ इंदौर तक सीमित नहीं है, कमोबेश यही हाल आपके शहर का भी है। 'ड्रेनेज का दम' नालों की समस्या और निदान के लिए दैनिक जागरण का राष्ट्रव्यापी अभियान है। इस कड़ी में पेश है दिल्ली के ड्रेनेज का हाल। मानसून ठीक से आया तो इस बार भी दिल्ली डूबेगी, यह घोषणा बहुत बड़े विशेषज्ञ नहीं, बल्कि दिल्ली का आम आदमी हर साल बारिश से पहले करता है। उसे मालूम है कि एक बार भी तेज बारिश आई तो दिल्ली में जलभराव होना तय है। इसका कारण यहां का ड्रेनेज सिस्टम ठीक न होना है। दिल्ली में ड्रेनेज व्यवस्था में अलग-अलग एजेंसियां शामिल हैं, जिनपर मानसून से पहले नाले साफ कराने की जिम्मेदारी है। तेज बरसात होने पर जब सड़कें डूबती हैं तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होता है। मुख्य रूप से दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) आरोप लगाते हैं कि दिल्ली सरकार के नाले साफ नहीं हुए हैं और दिल्ली सरकार की ओर से आरोप लगता है कि एमसीडी के नाले साफ नहीं हुए हैं। बरसाती नालों के साफ न होने से भी जलभराव की समस्या हो सकती है, लेकिन दिल्ली में इस समस्या की मूल वजह ड्रेनेज की उचित व्यवस्था न होना है।
अनियमित कॉलोनियों में ड्रेनेज सिस्टम नहीं
दिल्ली एक ऐसा शहर है जो 65 फीसद तक अनियोजित तरीके से बसा है। जहां सुनियोजित तरीके से ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया है। यहां 1700 अनियमित कॉलोनियां हैं, जहां ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं है। गलियों में नालियां अवश्य हैं, लेकिन ये भी आगे जाकर सीवरेज सिस्टम में मिल जाती हैं। चांदनी चौक, नई सड़क, सदर, दयाबस्ती, सब्जी मंडी, शकूरबस्ती जैसे तमाम इलाके ऐसे हैं, जहां सौ साल पुराना ड्रेनेज सिस्टम काम कर रहा है। यही नहीं, अनियोजित कॉलोनी और अतिक्रमण के कारण दिल्ली के 44 नाले लापता भी हो चुके हैं।
मानसून में हर साल होता है सड़कों पर जलभराव
राजधानी दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम 44 साल पुरानी व्यवस्था पर टिका हुआ है। मास्टर प्लान 1976 में तैयार किया गया था, तब दिल्ली की आबादी 60 लाख थी। वर्तमान में दिल्ली की आबादी करीब 1.87 करोड़ है। 44 वर्षों में दिल्ली की आबादी करीब तीन गुना बढ़ी है और सीवरेज सिस्टम भी ठीक से नहीं बन पाया है, जिसके कारण सीवरेज वाटर का फ्लो भी ड्रेनेज सिस्टम के नालों में पहले की तुलना में अधिक हो गया है। यही कारण है कि मानसून के दौरान हर साल दिल्ली में जलभराव की समस्या बनी रहती है। दूसरा यह कि नालों में ही लोग मलबा और पॉलीथिन डाल देते हैं, जिससे नाले जाम हो जाते हैं और बरसाती पानी की निकासी न होने से जलभराव की समस्या खड़ी हो जाती है।
तीन मुख्य नालों से मिलते हैं 201 नाले
दिल्ली में बरसाती पानी की निकासी के लिए तीन मुख्य नाले हैं। इनमें एक ट्रांस यमुना, दूसरा बारापुला और तीसरा नजफगढ़ ड्रेन है। इन मुख्य नालों से कुल 201 बड़े नाले मिलते हैं। ट्रांस यमुना से 34 नाले, बारापुला से 44 और नजफगढ़ ड्रेन से 123 नाले जुड़े हुए हैं। तीनों मुख्य नालों से ही यमुना में बरसाती पानी की निकासी होती है।
सबसे ज्यादा छोटे नाले एमसीडी के पास
दिल्ली में बरसाती पानी की निकासी के लिए मुख्यतया सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग, एमसीडी और पीडब्ल्यूडी के नाले हैं। छोटे नाले एमसीडी व पीडब्ल्यूडी के पास, जबकि बड़े नाले सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के पास हैं। एमसीडी के पास सबसे अधिक करीब तीन हजार छोटे नाले हैं। इन छोटे नालों का पानी सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के बड़े नालों में गिरता है, जहां से यमुना में चला जाता है। यहां अधिक समस्या सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को लेकर नहीं है। यह विभाग पूरे साल नालों की सफाई के ठेके देता है और कई बड़े नालों पर सफाई के लिए बड़ी मशीनें लगी हैं। जहां पर मशीनों से काम नहीं हो सकता है, वहां पर मानसून से पहले सफाई कराता है, मगर इन नालों की संख्या कम है। एमसीडी और पीडब्ल्यूडी मानसून से पहले नालों की सफाई कराते हैं।
एक एजेंसी बनाने की जरूरत
दिल्ली का सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, जल बोर्ड, एमसीडी, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली छावनी बोर्ड, दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास निगम और लोक निर्माण कार्य विभाग जैसे कई विभागों के अधिकार क्षेत्र में ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था का दायित्व है। इनमें से सभी के लिए एक नई एजेंसी को तैयार करके उसी को इस प्रणाली की जिम्मेदारी सौंपने का भी सुझाव दिया गया था। यह एक एजेंसी सभी विभागों के साथ समन्वय स्थापित करेगी, तभी सुधार भव होगा। इसके लिए एकजुट होकर काम करना होगा। दिल्ली की सभी एजेंसियां हैं हमेशा बारिश के दौरान जलभराव होने पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती हैं। ऐसी परिस्थिति न आए इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
दिल्ली नगर निगम
नगर निगम के कुल नालों की संख्या 20159 है। चार फुट से अधिक गहराई वाले नालों
की संख्या 721 है, जबकि चार फुट से कम गहराई वाले नालों की संख्या 19438 है।
लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी)
पीडब्ल्यूडी के अधिकार क्षेत्र में सड़कों की कुली लंबाई 1259 किलोमीटर है, जिसमें विभाग के उत्तरी जोन में 484 किलोमीटर सड़कें हैं, पूर्वी जोन में 377 किलोमीटर सड़कें और दक्षिणी जोन में 393 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं। विभाग के अधिकार क्षेत्र की सड़कों के दोनों ओर नाले हैं।
हाईपावर कमेटी करे ड्रेनेज पर काम
सर्वज्ञ श्रीवास्तव (पूर्व सचिव, लोक निर्माण विभाग) के मुताबिक, ड्रेनेज सिस्टम के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि शहर के कई नाले भर चुके हैं। शहरीकरण हुआ, अनियमित कॉलोनियां बनाई गईं और इस कारण भी नाले बर्बाद हो गए। ड्रेनेज में जो कचरा जा रहा है, उसको साफ नहीं किया जा रहा है। यमुना नदी में वजीराबाद और नोएडा का नाला गिरता है, लेकिन उसके आसपास 30 फीसद इलाके में निर्माण हो चुका है, कई कॉलोनियां बन चुकी हैं। चाहे अक्षरधाम हो, मिलेनियम डिपो हो या दिल्ली सचिवालय, अचानक हुए इस निर्माण से यमुना नदी में नाले गिरने की क्षमता कम हो गई है। ड्रेनेज व्यवस्था में सुधार के लिए योजनाएं बनाई गईं, लेकिन काम नहीं हुआ। दिल्ली सरकार को हाईपावर कमेटी बनानी चाहिए, जो ड्रेनेज सिस्टम पर काम करे।
अनियोजित विकास से पैदा हुई समस्या
एके जैन (पूर्व योजना आयुक्त, डीडीए) का कहना है कि ड्रेनेज मास्टर प्लान पर कभी गंभीरता से काम ही नहीं हुआ। दिल्ली का पहला ड्रेनेज मास्टर प्लान एक सदी से भी पहले 1911 में बना था। उस समय दिल्ली की आबादी 2.30 लाख थी, जबकि आज यह करीब दो करोड़ पहुंच गई है। बड़े पैमाने पर अनियोजित विकास हुआ है, जिसके कारण स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। 1968 में इस प्लान की समीक्षा हुई और 1976 में नया ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाया गया, लेकिन उसपर भी ज्यादा काम नहीं हुआ। इसकी बड़ी वजह दिल्ली में आबादी का बढ़ता दबाव औैर बहुनिकाय व्यवस्था भी है। यहां 1200 किमी की लंबाई में बड़े नाले हैं और करीब 3000 किमी लंबे छोटे नाले हैं। सभी जगह अवैध निर्माण और कचरा इन्हें जाम कर रहा है। जिम्मेदारी भी कहीं बाढ़ एवं सिंचाई विभाग, कहीं एमसीडी और कहीं पीडब्ल्यूडी की है, लेकिन इनमें आपसी सामंजस्य नहीं रहता। आर्थिक मुद्दे पर भी कमोबेश यही समस्या है। ड्रेनेज सिस्टम के लिए कुछ बजट केंद्र सरकार देती है, कुछ राज्य सरकार, कुछ एमसीडी और कुछ अन्य विभाग। मास्टर प्लान में भी ड्रेनेज का केवल एक ही चैप्टर रहता है, इससे अधिक नहीं।
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