10 साल तक घट रही है दिल्ली-NCR के 4 करोड़ से अधिक लोगों की उम्र, यह है बड़ी वजह
पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (IITM) की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण से एक आम भारतीय की जिंदगी के औसत 3.4 साल कम हो रहे हैं।
नई दिल्ली जेएनएन। World Enviroment Day 2019: एक तरफ ग्लोबल वॉर्मिंग तो दूसरी तरफ मनुष्यों की प्रकृति के खिलाफ की जा रहीं 'करतूतों' के चलते पर्यावरण असंतुलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि वैश्विक तापमान बढ़ने के चलते पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है, जिसका सीधा असर धरती पर रह रहे जीवों पर पड़ने लगा है, जिसमें मनुष्यों के साथ जानवर भी शामिल हैं। ऐसे में पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसे ही हालात रहे और धरती और पूरे पर्यावरण पर मनुष्यों का जुल्म इसी तरह बढ़ता रहा, तो भविष्य में सूखा तो पड़ेगा ही, साथ ही बाढ़ जैसी घटनाएं तेजी से घटित होंगी। इससे धरती पर रह रहे जीवों के अस्तित्व पर भी संकट आ जाएगा।
सच बात तो यह है कि ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) की वजह से धरती का तापमान बढ़ने, पेड़ों की संख्या कम होने और खासकर वायु प्रदूषण में इजाफा होने से देश दुनिया के करोड़ों लोगों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है।
पिछले साल हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि दिल्ली-एनसीआर (National Capital Region) में रहने वालों की जिंदगी के औसतन 10 साल कम हो रहे हैं। वहीं, तकरीबन तीन साल पहले हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 6.3 साल कम हो रहे हैं। इस हालात के लिए हम मनुष्य ही जिम्मेदार हैं, खासकर शहरी करण के साथ औद्योगिकीकरण।
दिल्ली की हवा में सालभर घुला रहता है जहर!
तकरीबन दो दशक पहले दिल्ली-एनसीआर की हवा साफ थी और यदाकदा ही वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होती थी, लेकिन अब तक आलम यह है कि साल भर प्रदूषण के हालात खराब रहते हैं। इतना ही नहीं, अक्टूबर से लेकर मार्च तक दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण खतरनाक रूप धारण कर लेता है।
दिल्ली में हर साल 10 हजार मौतें प्रदूषण
बता दें कि दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और पूरे देश में होने वाली कुल मौतों का यह पांचवां बड़ा कारक है। दो साल पहले एक अध्ययन में भी सामने आया था कि दिल्ली में जिंदगी के औसतन 6.3 साल कम हो जाते हैं।
दिल्ली की हवा में हो सुधार तो बढ़ जाएगी 10 साल जिंदगी
वर्ष-2018 में अमेरिका के चर्चित विश्वविद्यालय ने दिल्ली में लगातार बद से बदतर हो रही जहरीली हवा पर अध्ययन किया था। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई थी कि प्रदूषण ने न केवल कई गंभीर बीमारियों को जन्म दिया है, बल्कि मनुष्यों की जिंदगी भी लील रहा है। जहां तक दिल्ली की बात है तो अध्ययनकर्ताओं ने नतीजा निकाला है कि दिल्ली को सांस लेने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के आधार पर हवा मिले तो उनकी जिंदगी 10 साल ज्यादा हो सकती है। ऐसे में अध्ययन साफ बता रहा है कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 10 साल कम हो रहे हैं। इस अध्ययन को एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) के साथ मिलकर किया गया था।
दो दशक में तीन गुना दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण
जानकारी के मुताबिक, शिकागो स्थित चर्चित विश्वविद्यालय 'मिल्टन फ्राइडमैन प्रफेसर इन इकॉनमिक्स' से जुड़े मिशेल ग्रीनस्टोन ने अपने सहयोगियों के साथ एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) को लेकर यह अध्ययन किया था। इस अध्ययन में उनकी टीम ने दिल्ली एनसीआर में खराब हुई हवा का जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया था। वर्ष 1998 में दिल्ली समेत उत्तर भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार पहले से ही हवा में घुले हुए इन छोटे-छोटे कणों से जूझ रहे थे। WHO के आधार पर उस समय इन राज्यों में रहने वाले लोगों की आयु पर 2 से 5 साल का प्रभाव पड़ रहा था। अब दो दशक बाद प्रदूषण के ताजा हालात पर नजर डालें तो यहां तब की अपेक्षा प्रदूषण में 10 गुना की बढ़ोतरी हुई है।
यह पहलू भी सामने आया है कि 1998 में जहां प्रदूषण के चलते नागरिकों की जिंदगी में 2.2 साल की कटौती हो रही थी। 2 दशक बाद वह कटौती बढ़कर 4.3 साल हो गई है। इन दो दशकों में हवा में आए ये छोटे-छोटे कण 69 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। तीन साल पहले पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (IITM) के खुलासे ने कई और राज्यों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर रोशनी डाली थी। इनमें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र भी शामिल थे। IITM के अध्ययन में जहां प्रदूषण के चलते दिल्ली के हालात चिंताजनक थी वहीं, इससे सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई थीं। इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान आता है।
यह अध्ययन IITM के वैज्ञानिकों ने नेशनल सेंटर फॉर एटमोस्फोरिक रिसर्च (NCAR) के सहयोग से किया था। अध्ययन में खुलासा हुआ था कि लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से दिल्ली बदतर स्थिति में थी। हालांकि, यह अध्ययन 2011 की जनगणना के आधार पर था। अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषण के चलते असमय मौतों को सिलसिला बढ़ा है।
3.4 साल कम हो रही है भारतीयों की जिंदगी
पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (IITM) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण से एक आम भारतीय की जिंदगी के औसत 3.4 साल कम हो रहे हैं।
वायु प्रदूषण वैसे तो पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है, लेकिन भारत और चीन में स्थिति ज्यादा जानलेवा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2017 के दौरान वायु प्रदूषण से पूरी दुनिया में 50 लाख लोगों की मौत हुई। इनमें 12 लाख भारत के और इतनी ही संख्या में चीन के थे।
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार, घर के भीतर या लंबे समय तक बाहर वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से वर्ष 2017 में स्ट्रोक, मधुमेह, दिल का दौरा, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों के कारण दुनिया भर में करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई। भारत व चीन में 12-12 लाख लोग असमय मौत का शिकार हुए। रिपोर्ट में बताया गया है कि तीस लाख मौतें सीधे तौर पर पीएम 2.5 से जुड़ी हैं। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं। इन देशों में 15 लाख लोगों की मौत हुई। यह बात भी सामने आई कि दुनिया भर के करीब 3.6 अरब लोग घरों में रहते हुए वायु प्रदूषण की चपेट में आए।
दिल्ली प्रवास से छह घंटे कम हो चुकी है ओबामा की जिंदगी
2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरे के समय US मीडिया ने दावा किया था कि भारत आने से बराक ओबामा की जिंदगी के छह घंटे कम हो गए।
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