Delhi Riots: एक साल पहले बिगड़ा था माहौल, अब दर्द को दफन कर बढ़ रही जिंदगी
ठीक एक साल पहले डर और दहशत की चिंगारी शेरपुर चौक करावल नगर में फूटी थी। इसके बाद उत्तर पूर्वी जिला दंगों की चपेट में आ गया था। कई लोगों की मौतें हुईं। कई घायल भी हुए। मकानों और दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई।
स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली। ठीक एक साल पहले डर और दहशत की चिंगारी शेरपुर चौक, करावल नगर में फूटी थी। इसके बाद उत्तर पूर्वी जिला दंगों की चपेट में आ गया था। कई लोगों की मौतें हुईं। कई घायल भी हुए। मकानों और दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई।
स्कूल और पेट्रोल पंप भी इससे अछूते नहीं रहे। लेकिन एक साल में परिस्थितियां काफी हद तक बदल चुकी हैं। कोरोना महामारी को झेलते हुए दंगे के दर्द को दफन कर लोगों की जिंदगी अब रफ्तार पकड़ने लगी है। जिन लोगों की मौतें हुईं, वे तो वापस नहीं आ सकते हैं। लेकिन टूटे व जले प्रतिष्ठान फिर से शुरू हो चुके हैं।
ब्रजपुरी स्थित अरुण सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल हो या शिव विहार तिराहा स्थित डीआरपी पब्लिक स्कूल। दोनों फिर से बच्चों के लिए खुल गए हैं। हालांकि, अभी नौवीं से बारहवीं कक्षा के बच्चे ही स्कूल आ रहे हैं। अरुण पब्लिक स्कूल के निदेशक भीष्म शर्मा कहते हैं कि मुआवजा तो पांच लाख मिला था। लेकिन नुकसान करीब सवा करोड़ रुपये का हुआ था। दीवारों को तोड़ना पड़ा।
प्रिंसिपल और शिक्षकों के कार्यालय को फिर से बनाना पड़ा। सभी फर्नीचर फिर से लगाए गए। 32 साल पुराने स्कूल को कभी बंद करने पर विचार नहीं किया। डीआरपी स्कूल के निदेशक धर्मेश शर्मा भी कहते हैं कि दस लाख रुपये का मुआवजा मिला था। लेकिन स्कूल के पुनर्निर्माण में कई गुना अधिक खर्च हो चुका है।
भजनपुरा में जलकर तबाह हुआ पेट्रोल पंप भी हादसे को पीछे छोड़कर फिर अपनी गति में आ चुका है। लोग यहां प्रतिदिन डीजल-पेट्रोल के लिए आने लगे हैं। शेरपुर चौक पर जिस चिकन प्वाइंट से दंगे की चिंगारी भड़की थी, अब वह भी गुलजार हो गया है। जाफराबाद, यमुना विहार और करावल नगर में जिन सड़कों पर उपद्रव हुआ था। वहां नई दुकानें भी खुलने लगी हैं।
मुआवजे के पैसे से किसी ने घर खरीदा, तो कोई कर रहा बच्चों का पालन: दंगे में जान गंवाने वाले पेशे से आटो मैकेनिक अकिल की पत्नी जायरा ने बताया कि जिस वक्त दंगे हुए तब वह परिवार के साथ गाजियाबाद के लोनी में अपनी मां के घर गई हुई थीं।
दंगे थमने की सूचना के बाद अकिल 26 फरवरी को अकेले लोनी से मुस्तफाबाद घर जा रहे थे। जब वह गोकलपुरी पहुंचे तभी उन्हें दंगाइयों ने घेर लिया और मारकर नाले में फेंक दिया। परिवार ने कई दिन तक उन्हें ढूंढा लेकिन वह नहीं मिले। एक मार्च को उनका शव जीटीबी अस्पताल में मिला।
सरकार ने मुआवजे के दस लाख रुपये दिए, उससे उन्होंने लोनी में एक घर खरीदा, अब वह अपने चारों बच्चों को लेकर वहीं रह रही हैं। शिव विहार में रहने वाली सुनीता ने बताया कि दंगे के दौरान वह गर्भवती थीं, उनके पति प्रेम सिंह रिक्शा चालक थे। 25 फरवरी को दंगे हो रहे थे, घर में छोटे बच्चे थे जो दूध के लिए रो रहे थे। पति दूध लेने दुकान पर गए, पर वापस नहीं लौटे। 26 को उनका शव कर्दमपुरी में मिला था।
सरकार ने उन्हें दस लाख का मुआवजा दिया, वह उस रकम से अपनी चार बेटियों की परवरिश कर रही हैं। घरों में कामकाज भी कर रही हैं। वह अशिक्षित हैं, उसी का फायदा उठाकर एक पड़ोसी ने भी मुआवजे का कुछ हिस्सा हड़प लिया था। उन्हें मालूम नहीं उनके पति के हत्यारे कौन थे और उनके पति का क्या कसूर था।
पहले थी पार्किंग, अब बजती है शहनाई
शिव विहार तिराहे पर ही पार्किंग थी जिसमें खड़ी 54 कारों को जला दिया गया था। हादसे के बाद यहां लोगों ने वाहन खड़े करने बंद कर दिए। संचालक ठाकुर ब्रह्म सिंह परिहार इसे बैंक्वेट हाल में तब्दील कर दिया है। अब यहां शादियां होती हैं जिनमें शहनाई बजती है। परिहार कहते हैं कि एक रास्ता बंद हो जाए तो दूसरा ढूंढना पड़ता है और हमने भी ऐसा ही किया।