Delhi Cleanliness: स्वच्छता के मामले में क्यों पिछड़ी दिल्ली, एक्टिविस्ट एमसी मेहता ने बताई वजह
साफ-सफाई को लेकर दिल्ली में कई एजेंसियां बनी हुई हैं और ये सब आपस में ही उलझती रहती हैं। मुझे तो मल्टी एजेंसी का फार्मूला भी खटकता है।
नई दिल्ली। साफ-सफाई की लड़ाई लड़ते हुए मुझे करीब-करीब 40 साल हो गए हैं। कितनी ही बार मैंने अदालत से दिशा-निर्देश जारी करवाए, लेकिन अफसरशाही है कि अपना रवैया बदलने को तैयार ही नहीं। जब-जब दिल्ली के लिए योजनाएं बनीं वे कागजों में ही धूल फांकती रहीं। धरातल पर कभी कोई काम हुआ ही नहीं, उसी का परिणाम है कि शहर गंदा होता चला गया।
दिल्ली के बाद जब एनसीआर को मिलाकर योजनाएं बनने लगीं तो उनके साथ भी वही हश्र हुआ। किसी भी देश की राजधानी उसका आइना होती है, लेकिन हमारे देश का आइना ही धुंधला है। देश और राजधानी में सरकार बदलती रहीं, लेकिन किसी ने दूर की सोचकर काम नहीं किया, जबकि दिल्ली को तो हमें एक ऐसे स्वच्छ मॉडल के रूप में तैयार करना चाहिए था कि देश के अन्य शहर उससे प्ररेणा ले, लेकिन हो इसके एकदम विपरित रहा है।
अधिकारियों से हो जवाब तलब
स्वच्छता के पायदान पर आज हम जहां खड़े हैं उसमें सुधार के लिए हमारे पास कोई नजरिया नहीं है। हम कचरा निपटान की ठोस योजना बनाने के बजाए उसे जमा करते रहे और आज इतना कचरा जमा कर लिया कि उसके पहाड़ बन गए। ठोस योजना न होने के कारण ही दिल्ली-एनसीआर स्वच्छता सर्वेक्षण में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। जब तक स्वच्छता के लिए जिम्मेदार एजेंसियां अपनी नाकामी को स्वीकारते हुए उसमें सुधार के लिए काम नहीं करेंगी तब तक हालात नहीं बदलेंगे। अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय होनी चाहिए, जो अधिकारी अपनी सेवाएं पूरी कर चुके हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने ऐसी क्या गलतियां कीं, जिनके कारण राजधानी स्वच्छ नहीं बन पाई। जब उन्हें अपनी गलतियों का पता होगा तभी तो भविष्य में उनके दोहराव से बचेंगे।
साफ-सफाई को लेकर दिल्ली में कई एजेंसियां बनी हुई हैं और ये सब आपस में ही उलझती रहती हैं। मुझे तो मल्टी एजेंसी का फार्मूला भी खटकता है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने के कारण आम जनता का भला नहीं हो पा रहा है। सभी अपनी जिम्मेदारियों से विमुख हैं, लेकिन जवाब मांगने वाला कोई नहीं है। इससे शर्मनाक बात और क्या होगी कि दिल्ली के जिस क्षेत्र से पूरा देश चलता है, उस लुटियन दिल्ली को भी नंबर एक का खिताब नसीब नहीं हो पा रहा है। वो भी तब, जब दिल्ली की अफसरशाही पूरी दिल्ली की अनदेखी कर लुटियंस क्षेत्र को संवारने पर खूब पैसा खर्च करती है। अफसरशाही में लगता है कि किसी का डर-भय ही नहीं है।
बदलनी होगी सोच
दिल्ली में कचरा निपटान की व्यवस्था पर बात करें तो उस पर भी काम तब शुरू हुआ जब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने कमान अपने हाथ में लिया। वरना तो इतने सालों में किसी ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया। सब ठीक है कि सोच जब तक नहीं बदलेंगे तब तक ऐसे ही गंदगी पनपती रहेगी। अफसरशाही का ढुलमुल रवैया, दूर की सोच में कमी, भ्रष्टाचार और सरकार द्वारा योजनाएं बनाकर उसे ठंडे बस्ते में डालने की प्रवृति सबसे बड़े गतिरोध हैं। समझ सकते हैं इस तरह स्वच्छता की गाड़ी कितने समय में अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी। अभी भी समय है। अगर जल्द ही हमने सारे गतिरोध हटाकर स्वच्छता की रफ्तार को नहीं बढ़ाया तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली-एनसीआर के शहरों में हर तरफ गंदगी फैली होगी।
(वरिष्ठ अधिवक्ता एवं एक्टिविस्ट एमसी मेहता से वरिष्ठ संवाददाता सुशील गंभीर से बातचीत पर आधारित)
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