Delhi Politics: 2022 में होंगे नगर निगम चुनाव, अभी से बिछने लगी दिल्ली में राजनीतिक बिसात
आम आदमी पार्टी (आप) और निगम पर काबिज भाजपा के बीच अभी से ही खींचतान शुरू हो गई है। सरकार ने 13 हजार करोड़ का बकाया नहीं दिया इसलिए हम काम नहीं कर पाए। दिल्ली सरकार का नगर निगमों पर 8 हजार 596 करोड़ रुपये का बकाया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली नगर निगम चुनाव भले 2022 में है, लेकिन उसके लिए राजनीतिक बिसात अभी से बिछने लगी है। आम आदमी पार्टी (आप) और निगम पर काबिज भाजपा के बीच अभी से ही खींचतान शुरू हो गई है। दावेदारी जनहित कार्यो की गिनती या जनता से वादों का पिटारा खोलकर नहीं की जा रही है। अभी तो सिर्फ जनता को यह दिखाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है कि आखिर हमें सरकार ने 13 हजार करोड़ का बकाया नहीं दिया इसलिए हम काम नहीं कर पाए। वहीं पार्टी भी निगम के भ्रष्टाचारों का चिट्ठा खोल रही है।
बीते दिनों तीनों महापौरों ने दिल्ली सरकार पर 13 हजार करोड़ रुपये का बकाया बताकर करीब एक पखवाड़े तक मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना भी दिया। नतीजा सिफर ही रहना था, चूंकि यह सिर्फ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति और जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने का कदम भर लगता है। इनके आपसी झगड़े में दिल्ली का विकास प्रभावित होता है।
फंड की कमी की दलील देकर निगम कर्मियों के वेतन रोक दिया जाता है। ऐसे में सवाल यही है कि जब दोनों ही जनता की सेवा के लिए बैठे हैं तो राजनीति छोड़ अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं करते? दिल्ली के विकास के लिए निगमों को तीन हिस्सों में बांटा गया लेकिन अब इनके एजेंडे से विकास क्यों गायब है? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :
सही-गलत: ‘आप’ जाने या नगर निगम
नगर निगमों में सत्तासीन भाजपा 13 हजार करोड़ रुपये की दिल्ली सरकार से गलत मांग कर रही है। भाजपा यह झूठ फैला रही है। हम उनसे पूछ रहे हैं कि कौन सा पैसा बकाया है बताओ, आकर बैठक कर लो तो भाजपा के लोग नहीं आते। दरअसल इन्होंने 15 साल से निगमों में सत्ता चलाई है। इस दौरान निगमों को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया गया।
आम आदमी पार्टी की सरकार ने पूर्व की सरकारों से अधिक पैसा नगर निगमों को दिया है, मगर ये लोग सब पैसे खा गए। कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे रहे हैं। नगर निगम का दिल्ली सरकार पर एक भी पैसा बकाया नहीं है। इसके उलट दिल्ली सरकार का नगर निगमों पर 8 हजार 596 करोड़ रुपये का बकाया है। हम दस्तावेजों के आधार पर यह बात कह रहे हैं। (गोपाल राय, कैबिनेट मंत्री व आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक)
दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है कि वह निगमों को चलाने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराए। चाहे कचरा उठाना हो, अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में लोगों का इलाज करना हो या फिर बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देनी हो। इनसे निगमों को कोई आय नहीं होती। दिल्ली सरकार द्वारा दिए जाने वाले फंड से ही निगमों को चलाया जाता रहा है, लेकिन दिल्ली सरकार ने निगमों को पंगु बनाने का षड्यंत्र किया।
राज्य वित्त आयोग की तीन सिफारिशों को नजर अंदाज कर निगमों के फंड में कटौती की गई। आज कर्मचारियों के वेतन का संकट आ गया है, जबकि निगमों के विभाजन के समय यह बात कही गई थी जिस निगम को फंड का अभाव होगा उसे दिल्ली सरकार फंड उपलब्ध कराएगी। दिल्ली सरकार वादे से मुकर रही है।
(जय प्रकाश, महापौर, उत्तरी दिल्ली)
दक्षिणी नगर निगम
- संपत्तिकर व ट्रांसफर ड्यूटी से आय
- शुल्क और किराये से आय
- अन्य स्रोतों से आय
उत्तरी निगम में खर्च का ब्योरा
- 150 करोड़ उद्यान विभाग का पार्को के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन में होता है खर्च
- 1023 करोड़ रुपये प्राथमिक शिक्षा मद में हर वर्ष किए जाते हैं खर्च
- 869 करोड़ रुपये प्राथमिक चिकित्सा मद में होते हैं खर्च
पूर्वी निगम में शिक्षा पर खर्च
- 64 करोड़ उद्यान विभाग का पार्को के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन का खर्चा है
- 567 करोड़ प्राथमिक शिक्षा मद में हर वर्ष किए जाते हैं खर्च
- 397 करोड़ रुपये प्राथमिक चिकित्सा मद में होते हैं खर्च
दक्षिणी निगम में वेतन पर खर्च
- 270 करोड़ उद्यान विभाग का पार्को के रखरखाव, कर्मचारियों के वेतन का खर्चा है
- 996 करोड़ रुपये प्राथमिक शिक्षा मद में हर वर्ष खर्च किए जाते हैं
- 353 करोड़ रुपये प्राथमिक चिकित्सा मद में हर वर्ष खर्च किए जाते हैं
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