Delhi MCD Merger News: केंद्र और राज्य सरकारों की मदद से इस तरह से सुधरेगी दिल्ली नगर निगम की आर्थिक स्थिति
तीनों निगम का अस्तित्व अब नहीं है। ऐसे में दिल्ली नगर निगम होने से निगम आय और व्यय की खाई कैसे पूरी होगी। इसका कोई विशेष प्रविधान नहीं है। पूर्व में दक्षिणी निगम एक माह के वेतन की देरी के साथ दिल्ली नगर निगम का हिस्सा बना।
नई दिल्ली। दिल्ली के तीनों नगर निगम खराब आर्थिक संकट से जूझे तो केंद्र सरकार ने इसका हवाला देकर दिल्ली नगर निगम का गठन कर दिया। निगमों में सत्तारूढ़ भाजपा यह आरोप लगाती रही कि दिल्ली सरकार ने निगमों को फंड नहीं दिया। जिसकी वजह से आर्थिक स्थिति खराब हुई। निगमों के राजस्व बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए उसकी तह में नहीं जाऊंगा। यह तो अब पुरानी बात हो गई है।
अब हमारे सामने दिल्ली नगर निगम है। तीनों निगम का अस्तित्व अब नहीं है। ऐसे में दिल्ली नगर निगम होने से निगम आय और व्यय की खाई कैसे पूरी होगी। इसका कोई विशेष प्रविधान नहीं है। पूर्व में दक्षिणी निगम एक माह के वेतन की देरी के साथ दिल्ली नगर निगम का हिस्सा बना, जबकि पूर्वी निगम पांच और उत्तरी निगम छह माह के वेतन का बकाया लेकर एमसीडी का हिस्सा बना है।
यानी जो तीनों निगमों की आर्थिक स्थिति थी आज वही आर्थिक स्थिति दिल्ली नगर निगम की है। इसमें सुधार तब होने की संभावना थी कि केंद्र सरकार इसके लिए विशेष पैकेज की घोषणा करती। या फिर दिल्ली सरकार निगम को सहयोग करती। केंद्र सरकार ने विशेष पैकेज की घोषणा अब तक नहीं की और दिल्ली सरकार से जो पैसा निगमों को मिलना चाहिए था वह भी नहीं मिल रहा है। ऐसे में यह आर्थिक चुनौती बड़ी समस्या है।
दोनों सरकार को करना होगा सहयोग
इसके स्थायी समाधान के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार दोनों को सहयोग करना चाहिए। दिल्ली नगर निगम में 10 अस्पताल हैं जिनका सालाना खर्चा 1500 करोड़ है। यानी इन कर्मचारियों के वेतन और अस्पतालों पर यह खर्चा हो रहा है। अगर, राज्य और केंद्र में से कोई एक सरकार इन अस्पतालों को अपने अधीन कर लें तो निगम का प्रत्येक वर्ष 1500 करोड़ बचेगा। जिसका लाभ यह होगा कि जो निगम की राजस्व और व्यय के बीच खाई है वह कुछ हद तक भर जाएगी।
फिलहाल एमसीडी का 7200 करोड़ रुपये का राजस्व है और 9000 करोड़ का सालाना का खर्चा है। ऐसे में 2800 करोड़ की इस खाई में 1500 करोड़ कम कर दिए जाएं तो निगम की परेशानी काफी हद तक कम हो जाएगी। 1300 करोड़ रुपये का राजस्व तो निगम अपने स्नोतों से बढ़ा सकते हैं। जिससे सीधे तौर पर निगम में वेतन की समस्या खत्म हो जाएगी। अब बात की जाए विकास कार्यों की तो यह दिल्ली सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वह निगम को सहयोग करे और निगम की भी जिम्मेदारी है कि वह दिल्ली सरकार से सहयोग लेकर विकास को गति दे।
दिल्ली सरकार को राजनीति से ऊपर उठकर निगमों की मदद करनी चाहिए। अब तो प्रशासनिक व्यवस्था है। ऐसे में दिल्ली सरकार अगर निगम को सहयोग करेगी तो उसकी ही प्रशंसा होगी। अगर, दिल्ली का विकास कार्य दोनों के साथ आने से गति पकड़ता है तो फिर इससे अच्छी बात क्या होगी। उपराज्यपाल दोनों अधिकारियों को साथ बिठाकर इसमें मध्यस्ता कर सकते हैं। हालांकि उपराज्यपाल के पास सीमित अधिकार हैं। जिसमें वह वित्तीय मामलों पर वह केवल सुझाव दे सकते हैं। केंद्र सरकार निगम के पूरे मामले को देख रही है ऐसे में जो कर्मचारी कई वर्ष पहले सेवानिवृत्त हो गए हैं तो उनको अपने फंड का पैसा मिलना चाहिए।
उन बुजुर्गों के लिए कम से कम यह फैसला लिया जा सकता है। नहीं, तो एक निगम हो जाने के बाद भी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा। यह चुनौती की तरह रहेगा। शुरुआत के तीन चार साल वेतन और पेंशन के फंड पर केंद्र और राज्य मदद करें तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। दिल्ली सरकार को भी चाहिए कि नियमों अनुसार 12.5 प्रतिशत जो ग्लोबल शेयर उनका बनता है उन्हें बिना किसी भेदभाव के जारी करे। समय से अगर, फंड जारी होगा तभी निगम कर्मियों को लाभ होगा।
--अभिषेक दत्त (पूर्व नेता, कांग्रेस दल, दक्षिणी निगम) से निहाल सिंह की बातचीत पर आधारित।