कंक्रीट के अपार जंगल को देखते हुए चौंकन्नी हुई दिल्ली, बढ़ेगी और निगरानी
दिल्ली पहले से भूकंप के लिहाज से सर्वाधिक खतरनाक सिस्मिक जोन 4 में शामिल है। यहां हर तरफ खतरनाक स्थिति बनी हुई है।
नई दिल्ली [ संजीव गुप्ता ] । दिल्ली में तेजी से बढ़ती आबादी एवं निरंतर घने होते जा रहे कंक्रीट के जंगल को देखते हुए यहां आने वाले छोटे-छोटे भूकंपों पर भी अब सूक्ष्म नजर रखी जाएगी। इसके लिए दिल्ली में भूकंप बेधशालाओं की मौजूदा संख्या बढ़ाने की तैयारी कर ली गई है। इस निगरानी के आधार पर ही बचाव के उपायों पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
जानकारी के मुताबिक भूकंप की निगरानी के लिए फिलहाल दिल्ली में तीन बेधशालाएं लगी हैं। आया नगर, लोधी रोड और रिज एरिया में। लेकिन जिस तेजी से यहां आबादी बढ़ रही है और इस आबादी की बसावट के लिए भवन निर्माण हो रहे हैं, उससे कहीं न कहीं ढांचागत और पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ रहा है।
दूसरी तरफ दिल्ली पहले से भूकंप के लिहाज से सर्वाधिक खतरनाक सिस्मिक जोन 4 में शामिल है। यहां हर तरफ खतरनाक स्थिति बनी हुई है। पूर्वी, उत्तर पूर्वी, पुरानी और नई दिल्ली के क्षेत्र तो तीव्रता वाला भूकंप आने पर सबसे अधिक प्रभावित होंगे। ऐसे में विशेष निगरानी और बचाव के उपाय भी आवश्यक हो गए हैं।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इसी स्थिति को देखते हुए पूसा क्षेत्र में एक नई भूकंप बेधशाला लगाई जाएगी। इस बेधशाला से पश्चिमी दिल्ली में जमीन के भीतर की गतिविधियों पर भी नजर रखी जा सकेगी। एक और बेधशाला स्थापित होने से दिल्ली में भूकंप की संभावनाओं पर अधिक निगरानी हो सकेगी।
साथ ही यह रिपोर्ट भी तैयार हो सकेगी कि दिल्ली बर्बादी के किस मुहाने की तरफ बढ़ रही है और इस बर्बादी से बचने के लिए वैकल्पिक उपाय क्या हो सकते हैं।
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक जेल गौतम (ऑपरेशन) दिल्ली में भूकंप बेधशालाओं की संख्या चार करने की दिशा में केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है। जल्द ही इस बाबत काम भी शुरू हो जाएगा। इससे दिल्ली की स्थिति पर निगरानी भी बेहतर ढंग से हो सकेगी और भूकंप से होने वाले नुकसान से बचाव के उपायों पर भी कुछ कारगर योजनाएं बनाई जा सकेंगी। वैसे पूरे देश भर में भूकंप बेधशालाओं की संख्या 82 से बढ़ाकर 122 करने की योजना पर काम चल रहा है।
खतरनाक हैं दिल्ली की 70-80 फीसद इमारतें
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी खतरा है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की 70-80 फीसद इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज़ से डिज़ाइन ही नहीं की गई हैं।
बताया गया है कि पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें चिंता का विषय है। इसकी वजह यह है कि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जांच नहीं हुई है।
भूकंप आए तो क्या करें?
भूकंप का एहसास होते ही घबराएं नहीं चाहिए, बल्कि घर से बाहर किसी खाली जगह पर खड़े हो जाना चाहिए। बच्चों व बुजुर्गों को पहले घर से बाहर निकालें, किनारे में खड़े रहें। घर में भारी सामान सिर के ऊपर नहीं होना चाहिए। टेबल के नीचे जाना चाहिए।