दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- जरूरी नहीं कि नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता कोर्ट में घटना दोहराए
Delhi High Court News दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्यवाही के दौरान आरोपित के साथ उपस्थित रहने से पीड़िता पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। हाई कोर्ट ने कहा कि जरूरी नहीं कि नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता कोर्ट में घटना दोहराए।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि यौन अपराध से पीड़ित नाबालिग पर अदालती कार्यवाही के दौरान उपस्थित होने और घटना को दोहराने से गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यह बेहतर है कि घटना दोबारा शब्दों में भी न दोहराई जाए।
कोर्ट ने इस पर दिल्ली सरकार से पक्ष मांगा
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि अपील में पीड़िता की ईमानदारी और चरित्र पर संदेह करने वाले दावे शामिल हैं, जबकि आरोपित के साथ ऐसा नहीं होता है। कोर्ट पाक्सो एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से भी इस पर पक्ष मांगा है।
पीड़िता पर पड़ता है मनोवैज्ञानिक प्रभाव
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग पीड़िता पर अदालत में उपस्थित होने पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव बेहद गंभीर है। आरोपित के साथ अदालत में उपस्थित होने के लिए मजबूर किया जाता है। यह पीड़िता के हित में है कि उस घटना को अदालत में फिर से जीवंत न किया जाए।
इस मामले में सुझाए गए निर्देश दिल्ली हाई कोर्ट कानूनी सेवा समिति को उनके सुझाव के लिए भेजे गए हैं। मामले में अपीलकर्ता ने 10 साल के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा को निलंबित करने की मांग की है।
दुष्कर्म के दोषी को 20 साल कैद, साढ़े तीन माह में मिला न्याय
उधर, गाजियाबाद के विजयनगर थानाक्षेत्र में एक किशोरी से दुष्कर्म के मामले में दोषी को 20 साल कैद की सजा विशेष न्यायाधीश हर्षवर्धन ने बृहस्पतिवार को सुनाई है। पुलिस ने तत्परता के साथ कार्रवाई की और साक्ष्य संकलन किए। महज साढ़े तीन माह में ही दोषी को अदालत ने उसके किए की सजा सुनाई है।
22 अप्रैल 2022 को विजयनगर थाने में दर्ज कराई गई एफआइआर में महिला ने बताया था कि उसके फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में बिहार के खगड़िया जिला का दिलशाद अपने रिश्तेदार के घर रहने आया था, उसने महिला के बेटे को पकड़ लिया था, जिसे छुड़ाने गई महिला की बेटी के साथ दिलशाद ने दुष्कर्म किया था। पीड़िता ने मामले की जानकारी अपनी मां को दी तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कराई।
इस मामले की विवेचना तत्कालीन सीओ प्रथम स्वतंत्र कुमार सिंह को मिली। उन्होंने 24 घंटे के भीतर दिलशाद को गिरफ्तार किया था। घटनास्थल से महत्वपूर्ण साक्ष्यों को संकलित कर पीड़िता और अभियुक्त का डीएनए प्रोफाइल तैयार कर जांच के लिए भेजा। परीक्षण जल्द कराने के लिए प्रयोगशाला के डायरेक्टर से अनुरोध किया तो परिणाम मिला।