Delhi High Court: एक्ट आफ गाड नहीं साइन बोर्ड गिरना, बैंक को देना होगा मुआवजा
साइन बोर्ड गिरने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी कीl पीड़ित परिवार को बैंक द्वारा 18 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि बैंक यह नहीं बता सका कि साइन बोर्ड लगाने में सुरक्षा के सभी मानकों का पालन किया गया।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। एक्ट आफ गाड के बहाने मुआवजा देने से बच रहे बैंक को हाई कोर्ट से झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने वर्ष 2011 में एक साइन बोर्ड गिरने से हुई मौत के मामले में पीड़ित परिवार को 18 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का आदेश जारी किया है।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू की पीठ ने कहा कि इमारत के आगे लगे साइन बोर्ड का गिरना एक्ट आफ गाड नहीं, पूर्वाभास वाली घटना थी। अदालत ने कहा कि बैंक यह नहीं बता सका कि साइन बोर्ड लगाने में सुरक्षा के सभी मानकों का पालन किया गया था। साइन बोर्ड लगने के छह साल बाद घटना हुई थी।
हो सकता है कि तब तक साइन बोर्ड पर जंग लग गया हो और वह ढीला हो गया हो। पीठ ने कहा कि इस तरह के साइन बोर्ड आदि लगाना, भवन स्वामी अथवा उसका उपयोग करने वाले की जिम्मेदारी है। उन्हें समय-समय पर इसकी जांच और रखरखाव के जरूरी इंतजाम करने चाहिए, ताकि ऐसे हादसे न हों।
बैंक मैनेजर के खिलाफ दर्ज हुई थी रिपोर्ट
मामले की सुनवाई के दौरान बैंक ने अपना बचाव करते हुए तर्क दिया कि दिल्ली में तेज हवा चलने के कारण पीड़ित को चोट लगी। इसके बाद उसकी मृत्यु होना एक्ट आफ गाड है। लिहाजा, बैंक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में बैंक मैनेजर के खिलाफ 2011 में एक आपराधिक मामला भी दर्ज किया गया था। अधिकारी को दिसंबर, 2018 में मामले में बरी कर दिया गया था।
वर्ष 2011 में हुआ था हादसा यह हादसा 22 मई, 2011 को हुआ था। याचिकाकर्ता महेश गुप्ता पैदल ही दर्जी की दुकान पर जा रहे थे। इस दौरान बैंक आफ बड़ौदा का साइन बोर्ड उनके सिर पर गिर गया। उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया, जहां सर्जरी और 38 दिन के इलाज के बाद जून, 2011 में उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके बाद भी परेशानी बनी रही। उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। वर्ष 2013 में उन्होंने मुआवजे के लिए याचिका दायर की और 21 फरवरी को पीड़ित की मृत्यु हो गई।