तलाक के आवेदन की तिथि से पत्नी को मिले भरण-पोषण मुआवजा: हाई कोर्ट
पुनर्विचार याचिका पर न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि आमतौर पर तलाक के आवेदन की तारीख से भरण-पोषण का हक मिलना चाहिए।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भरण-पोषण मुआवजा दिए जाने के मामले में पुनर्विचार याचिका पर हाई कोर्ट ने आवेदन दाखिल करने व फैसला सुनाए जाने की तारीख से भरण-पोषण का लाभ मिलने के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है।
आवेदन की तारीख से भरण-पोषण का हक मिलना चाहिए
पुनर्विचार याचिका पर न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि आमतौर पर तलाक के आवेदन की तारीख से भरण-पोषण का हक मिलना चाहिए, लेकिन अदालत यह पाती है कि याचिकाकर्ता कामकाजी है और आवेदन के दौरान उसे भरण-पोषण की जरूरत नहीं है तो आदेश की तारीख से भरण-पोषण मुआवजे का आदेश दे सकती है।
पीठ ने कहा कि जहां तक वर्तमान मामले का सवाल है तो फैमिली कोर्ट के आदेश में ऐसा कुछ नहीं था। पीठ ने आदेश दिया कि भरण-पोषण के संबंध में दिए गए दो मई 2016 के आदेश का लाभ याचिकाकर्ता को अप्रैल 2014 के आवेदन करने की तिथि से दिया जाए।
आवेदन की तारीख से मुआवजे की मांग
याचिकाकर्ता पूनम भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर भरण-पोषण मुआवजा आवेदन की तिथि से दिलाने की मांग की थी। याचिका के तहत साकेत स्थित फैमिली कोर्ट ने 18 मार्च 2016 को याची को 25 हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण मुआवजा देने का आदेश दिया था। इस फैसले को याचिकाकर्ता ने 27 मई 2016 को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और आवेदन की तारीख से मुआवजे की मांग की थी।
पांच अक्टूबर 2016 को हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि आदेश की तिथि से ही भरण-पोषण मुआवजा दिया जाए। अदालत के इस फैसले को याची ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, लेकिन मामले पर पुनर्विचार करने के याची के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
दोबारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की
सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत के तहत याचिकाकर्ता ने दोबारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के वकील जवाहर राजा ने कहा कि याची आवेदन की तिथि से भरण-पोषण मुआवजे की हकदार है। वहीं प्रतिवादी पक्ष के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई दोनों अपील खारिज कर दी गई। ऐसे में पुनर्विचार याचिका का कोई औचित्य नहीं है।