दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की महत्वपूर्ण टिप्पणी, जानिए क्या है पूरा मामला?
निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। उम्र के निर्धारण का मामला महत्वपूर्ण होता है खासकर उन मामलों में जहां आरोपित किशोर घोषित करने की सीमा रेखा के करीब है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत आरोपित की उम्र के निर्धारण की जांच करते समय निरीक्षण और विश्लेषण जरूरी है। उम्र के निर्धारण का मामला महत्वपूर्ण होता है, खासकर उन मामलों में जहां आरोपित किशोर घोषित करने की सीमा रेखा के करीब है।
पीठ ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां आरोपित के किशोर होने का दावा किया गया, लेकिन मेडिकल जांच कराने पर 30 वर्ष से अधिक उम्र का पाया गया है। यही वजह है कि आरोपित के उम्र के निर्धारण का सवाल होने पर जांच करते समय जांच, निरीक्षण, परीक्षा और विश्लेषण आवश्यक हो जाता है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर विचार करते हुए की। जेजे अधिनियम की धारा 94 के साथ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2000 की धारा-सात ए के तहत विशाल द्वारा दाखिल आवेदन को खारिज कर दिया था।
विशाल को वर्ष 2018 में गिरफ्तार किया गया था और जब उसने 19 साल का होने का दावा किया था। रिमांड के समय मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके जन्म से संबंधित कोई रिकार्ड पेश नहीं किया गया था। बाद में जांच अधिकारी द्वारा कराए गए आसिफिकेशन टेस्ट में पता चला कि गिरफ्तारी के समय विशाल की उम्र करीब 20 साल थी।
हालांकि, बाद में विशाल ने ग्राम पंचायत द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर 17 साल के उम्र होने का दावा किया था। निचली अदालत ने विशाल से स्कूल रिकार्ड मांगा, लेकिन कुछ पता नहीं चला। इस पर अदालत ने विशाल के आवेदन को खारिज कर दिया था। किशोर की उम्र के मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर हाई कोर्ट ने की अहम टिप्पणी