दिल्ली HC की अहम टिप्पणी, केवल सगाई होने से नहीं मिल जाती मंगेतर का यौन उत्पीड़न करने की अनुमति
पीड़िता ने आरोप लगाया था कि अक्टूबर 2020 से वह आरोपित की दोस्त थी और एक साल साथ रहने के बाद उन्होंने 11 अक्टूबर 2021 में परिवार की सहमति से सगाई की थी। इस बीच शादी का झांसा देकर मंगेतर संग युवक ने कई बार शारीरिक संबंध बनाए।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। शादी के बहाने मंगेतर से कई बार दुष्कर्म करने के आरोपित को जमानत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि केवल सगाई होने का मतलब यह नहीं है कि आरोपित को यौन उत्पीड़न, मारपीट या धमकी देने की अनुमति मिल जाती है।
दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने आरोपित के उस तर्क को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि उन दोनों की सगाई हुई थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि शादी का झूठा वादा किया गया था।
एक-दूसरे को जानने के बाद की थी सगाई
अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान के अनुसार पहली बार स्थापित यौन संबंध भी शादी के बहाने बनाया गया था। 16 जुलाई को दुष्कर्म समेत अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामले में दिल्ली पुलिस ने 16 सितंबर को आरोप पत्र दायर किया था।
शादी का झांसा देकर बनाए शारीरिक संबंध
पीड़िता ने शिकायत में आरोप लगाया कि सगाई के चार दिन बाद आरोपित यह कहते हुए उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित किए कि वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और जल्द ही शादी कर लेंगे। पीड़िता ने इसके साथ ही नशे की हालत में पीड़िता को बेरहमी से पीटने का आरोप भी लगाया।
परिवार ने आरोप लगा किया था शादी से इनकार
पीड़िता ने कहा कि आरोपित ने कई मौकों पर उनके साथ गैर-सहमति से शारीरिक संबंध बनाए और परिणामस्वरूप वह गर्भवती भी हुई। इस पर आरोपित ने फरवरी 2022 में उन्हें गर्भपात की गोलियां दी थीं।प्राथमिकी में पीड़िता ने आरोप लगाया कि नौ जुलाई को जब पीड़िता आरोपित के घर गई तो उसने और उसके परिवार के सदस्यों ने शादी करने से इनकार कर दिया और यही वजह है कि उन्हें शिकायत दर्ज कराई गई। गोलियों के माध्यम से गर्भपात कराने के आरोप को बेहद गंभीर बताते हुए पीठ ने कहा कि एक महिला जो अविवाहित थी, उसने अपने सम्मान को बचाने के लिए इसका सबूत नहीं रखा होगा।
तर्कों के आधार पर खारिज हुई जमानत याचिका
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज किए गए पीड़िता के बयान और आरोप पत्र पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि अभियोक्ता द्वारा लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। पीड़िता के साथ शादी का झांसा देकर यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म किया गया। अब तक मामले में आरोप तय नहीं हुए हैं, ऐसे में आरोपित की जमानत याचिका खारिज की जाती है।