वैवाहिक दुष्कर्म नहीं हो सकता तलाक की वजह, दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका
वैवाहिक दुष्कर्म को तलाक का आधार मानने को लेकर दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है।
नई दिल्ली, प्रेट्र/ जेएनएन। वैवाहिक दुष्कर्म को तलाक का आधार मानने को लेकर दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट इसके लिए कानून नहीं बना सकती। कानून बनाना विधायिका का काम है।
दरअसल, वैवाहिक दुष्कर्म को तलाक का आधार बनाने की मांग को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में केंद्र सरकार को इस बाबत दिशा निर्देश देने की मांग की गई थी।
पहले यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, लेकिन शीर्ष न्यायलय ने सुनवाई से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में अपील करने को कहा था। याचिकाकर्ता का कहना था कि वैवाहिक दुष्कर्म भी अपराध से कम नहीं है। पुलिस में उलझन रहती है कि आखिर वह किस कानून के तहत दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करे।
दिल्ली सरकार का ये था तर्क
वहीं, जनवरी 2018 में हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार की वकील नंदिता राव ने पीठ के सामने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह धारा पति द्वारा किए ऐसे बुरे व्यवहार के खिलाफ है, जिससे महिला को शारीरिक व मानिसक हानि हुई हो।
नंदिता राव ने कहा था कि पर्सनल लॉ व घरेलू हिंसा अधिनियम वैवाहिक दुष्कर्म को क्रूरता मानते हुए तलाक का आधार मानते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि कोर्ट अब इसमें कोई नई सजा को जोड़ नहीं सकती, क्योंकि यह विधायिका का विशेषाधिकार है। पीठ के समक्ष उन्होंने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन व निजी स्वतंत्रता के अधिकार) के तहत महिला अपने पति को शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार कर सकती है।
इस मामले में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की क्षेणी में रखने का विरोध किया था और कहा था कि अगर ऐसा हुआ तो अधिकांश लोग इसका गलत इस्तेमाल करेंगे।
ऐसे शुरू हुई थी मांग
दिसंबर 2013 में निर्भया कांड के बाद जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी ने वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने की सिफारिश की थी। इसमें कहा गया था कि दुष्कर्म के दौरान शादी या अन्य रिश्ते आरोपी के बचाव का जरिया ना बने इसके लिए कानून होना चाहिए। इसके बाद आरटीआइ फाउंडेशन, ऑल इंडिया ड्रेमोकेटिक वूमेन्स एसोसिएशन समेत अन्य लोगों ने याचिका दाखिल की।