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Delhi LG Defamation Suit: दिल्ली हाई कोर्ट ने AAP नेताओं की दलील को ठुकराया, आरोपों पर की अहम टिप्पणी

Delhi LG Defamation Suit वीके सक्सेना ने AAP और इसके पांच नेताओं पर 2.5 करोड़ रुपये के हर्जाने और मुआवजे की भी मांग की है। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

By Vineet TripathiEdited By: JP YadavPublished: Tue, 27 Sep 2022 02:34 PM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2022 02:34 PM (IST)
Delhi LG Defamation Suit: दिल्ली हाई कोर्ट ने AAP नेताओं की दलील को ठुकराया, आरोपों पर की अहम टिप्पणी
राजधानी स्थित दिल्ली हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। मानहानि मुकदमे में उपराज्यपाल एलजी विनय कुमार सक्सेना को दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए अंतरिम निषेधाज्ञा दे दी कि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) व इसके वरिष्ठ नेताओं ने न सिर्फ एलजी के विरुद्ध लापरवाह तरीके से बयान दिया बल्कि भ्रष्टाचार से जुड़े उनके आरोप अफवाहों पर आधारित थे।

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AAP नेताओं ने लापरवाह अंदाज में दिया था साक्षात्कार

एलजी के विरुद्ध भविष्य में ऐसी पोस्ट करने पर रोक लगाते हुए न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि इतना ही नहीं प्रथम दृष्टया एलजी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए मानहानिकारक ट्वीट व बयान दिया था।आप नेताओं ने एलजी के विरुद्ध तथ्यों का सत्यापन के बिना लापरवाही तरीके से साक्षात्कार दिया और इंटरनेट मीडिया में किए गए ट्वीट, री-ट्वीट/हैशटैग व पोस्ट किया। इन नेताओं में सांसद संजय सिंह, विधायक आतिशी, सौरभ भारद्वाज, दुर्गेश पाठक और जैस्मीन शाह शामिल हैं।

वर्षों से हासिल प्रतिष्ठा को धूमिल करना ठीक नहीं

AAP व इसके नेताओं को एलजी व उनके परिवार के खिलाफ किए गए ट्वीट, री-ट्वीट, हैशटैग, साक्षात्कार के वीडियो को 48 घंटे में हटाने का निर्देश देते हुए पीठ ने सुनवाई छह फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि वर्षाें में हासिल की जाने वाली प्रतिष्ठा को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आकस्मिक तरीके से खराब नहीं किया जा सकता है। इंटरनेट पर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को होने वाली क्षति तत्काल और दूरगामी होती है। ऐसे में जब तक विवादित सामग्री प्रचलन में बनी रहेगी तब तक वादी की प्रतिष्ठा और छवि को लगातार नुकसान होने की संभावना रहेगी।

दिल्ली हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में वादी एक संवैधानिक प्राधिकरण होने के नाते मीडिया प्लेटफार्म का सहारा लेकर प्रतिवादियों द्वारा उसके खिलाफ किए जा रहे व्यक्तिगत हमलों का जवाब नहीं दे सकता है। प्रतिवादियों ने एलजी की तरफ से पांच सितंबर को भेजे गए कानूनी नोटिस का जवाब देने की भी जहमत नहीं उठाई। यही वजह है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने और उसी के क्षरण को रोकने के लिए वादी को निषेधाज्ञा हासिल करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

AAP नेताओं की दलील को भी ठुकराया

पीठ ने बचाव पक्ष द्वारा दी गई उस दलील पर असहमति व्यक्त की, जिसमें उन्होंने कहा था कि सार्वजनिक जीवन में होने के कारण एलजी एक सामान्य व्यक्ति की तरह निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।पीठ ने आर राजागोपाल बनाम तमिलनाडु व अन्य के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला दिया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 द्वारा इस देश के नागरिकों को गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है।

निजता के अधिकार का उल्लंघन ठीक नहीं

इसके तहत अपने साथ ही परिवार, विवाह, संतानोत्पत्ति, मातृत्व, बच्चे पैदा करने और अन्य मामलों में शिक्षा की गोपनीयता की रक्षा करने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उपरोक्त मामलों से संबंधित कोई भी उसकी सहमति के बिना कुछ भी प्रकाशित नहीं कर सकता है फिर चाहे वह सत्य हो या अन्यथा और चाहे वह प्रशंसनीय हो या आलोचनात्मक। यदि वह ऐसा करता है तो वह संबंधित व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और क्षति के लिए कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।

एलजी की बेटी पर लगाए निराधार आरोप

AAP नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह समेत अन्य आरोपितों ने केवीआइसी चेयरमैन होने के दौरान बेटी को 80 करोड़ रुपये का अनुबंध देने का एलजी पर आरोप लगाया था। प्रतिवादियों ने निराधार आरोप लगाया है कि बेटी को 80 करोड़ रुपये की एक काल्पनिक राशि का भुगतान किया गया है, जबकि इसे प्रमाणित करने के लिए अभिलेख में कोई सामग्री नहीं है।

आरोपों को बताया निराधार

वहीं, केवीआइसी ने दो सितंबर 2022 के अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि वादी की बेटी को उसके द्वारा प्रदान की गई पेशेवर सेवाओं के लिए कोई पैसा नहीं दिया गया था। पीठ ने कहा कि विमुद्रीकरण के दौरान भ्रष्टाचार में शामिल होने के संबंध में प्रतिवादियों का वादी पर लगाया गया आरोप भी पूरी तरह से निराधार है।

यह है मामला

AAP व इसके नेताओं के खिलाफ मानहानि मुकदमा दायर कर उपराज्यपाल ने दिल्ली हाई कोर्ट से उनके खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने से AAP और इसके नेताओं को रोकने का अनुरोध किया था। उन्होंने वाद में तर्क दिया था कि बिना किसी आधार के एक उच्च संवैधानिक प्राधिकरण के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। इसके साथ ही उनके विरुद्ध ट्विटर पर किए गए ट्वीट, री-ट्वीट, हैशटैग और साक्षात्कार से जुड़े वीडियो को हटाने का निर्देश देने की मांग की थी। 

AAP नेताओं का तर्क

वहीं, दूसरी तरफ AAP व इसके नेताओं ने तर्क दिया था कि एक बयान यह दिया गया था कि सक्सेना के केवीआइसी अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी को खादी का ठेका दिया गया था जो नियमों के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि यह बयान सही था और किसी ने भी इससे इन्कार नहीं किया है। उन्होंने यह भी कहा था कि सार्वजनिक जीवन में होने के कारण एलजी एक सामान्य व्यक्ति की तरह निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।


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