नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति-2015 को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस संबंध में कागजों पर प्रयास चल रहा है, लेकिन यह जमीनी हकीकत पर वांछनीय जरूरत से कोसों दूर है।
केशव सन्यासी गावो शेवाश्रम नाम ट्रस्ट की याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि उक्त परिसर अधिसूचित क्लस्टर के पास होने की दलील पुनर्वास के उद्देश्य से की डूसिब नीति-2015 को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता ट्रस्ट ने इस स्थिति का खंडन करने के लिए रिकार्ड में कुछ भी नहीं रखा है कि 01 जनवरी 2006 से पहले परिसर में झुग्गियां मौजूद नहीं थीं। ट्रस्ट ने एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें कहा गया था कि विवादित परिसर पुनर्वास नीति-2015 के तहत अधिसूचित झुग्गी क्लस्टर के भीतर नहीं आता है और रहने वाले ध्वस्तीकरण पर सुरक्षा पाने के हकदार नहीं हैं।
अदालत ने अधिकारियों को गाय आश्रय के लिए एक वैकल्पिक आवास आवंटित करने का भी निर्देश दिया, जिसे बेदखली नोटिस के अनुसार तीन महीने की अधिकतम रहने की अवधि से छूट दी जाएगी।
वहीं, ट्रस्ट ने तर्क दिया कि जिस क्षेत्र में गौ आश्रय स्थित है वह एक अधिसूचित क्लस्टर क्षेत्र के पास है और इस प्रकार उन्हें पुनर्वास नीति- 2015 के तहत संरक्षण पाने का हक है।वहीं, दिल्ली सरकार ने एकल पीठ के निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि उक्त परिसर अधिसूचित क्लस्टर के भीतर नहीं आता है और इस लिए परिसर के ध्वस्तीकरण पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।