सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका पर बंद कमरे में होगी सुनवाई
केंद्र सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए पीठ ने कोर्ट मास्टर को निर्देश दिया कि मामले से जुड़े अधिवक्ताओं के अलावा सभी को वेब-लिंक से हटा दिया जाए।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। फेसबुक-इंस्टाग्राम जैसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म को सैन्य बलों के लिए प्रतिबंधित करने के खिलाफ चुनौती देने वाले जम्मू-कश्मीर में तैनात लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी की याचिका पर हाई कोर्ट ने बंद कमरे में सुनवाई करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ व न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने यह आदेश तब दिया जब केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि यह सेना द्वारा लिया गया संवेदनशील फैसला है और इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए।
केंद्र सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए पीठ ने कोर्ट मास्टर को निर्देश दिया कि मामले से जुड़े अधिवक्ताओं के अलावा सभी को वेब-लिंक से हटा दिया जाए। इसके साथ ही याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर पक्षकारों से अदालत ने जानकारी ली और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। केंद्र सरकार की तरफ से मौजूद स्टैंडिंग काउंसल अजय दिग्पॉल ने कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इसकी बंद कमरे में सुनवाई होनी चाहिए। इस पर लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि उन्होंने यह कहा कि इसमें कोई गोपनीयता नहीं है, क्योंकि इससे जुड़ा पत्र सेना ने खुद ही जारी किया और मीडिया को भी इसकी जानकारी दी। इससे पहले 14 जुलाई को हाई कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि अगर फेसबुक से इतना ही प्यार है तो वह इस्तीफा दे दें। एकल पीठ ने कहा था कि विशेष तौर पर जब मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हो तब ऐसी याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं बनता। पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा था कि प्रतिबंध की नीति के तहत वह अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट करें। पीठ ने कहा कि वह दोबारा अपना फेसबुक एकाउंट बना सकते हैं।
सुनवाई के दौरान चौधरी के वकील ने दलील दी थी कि एक बार फेसबुक एकाउंट डिलीट करने पर उनका पूरा डाटा, संपर्क और फेसबुक पर दोस्तों का एकाउंट खो जाएगा, जोकि कभी वापस नहीं आएगा। पीठ ने इस पर कहा कि बिल्कुल नहीं आप इसे डिलीट करें। केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा था कि फेसबुक को दोषपूर्ण पाते हुए यह नीतिगत फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि दोस्तों व स्वजनों से संपर्क करने के लिए वाट्सएप, ट्विटर और स्काइप जैसे एप उपलब्ध हैं। पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद केंद्र सरकार को इससे जुड़े नीतिगत दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में पेश करने और इस फैसले को लेने का कारण बताने का निर्देश दिया था।
87 एप डिलीट करने का दिया था निर्देश
मिलिट्री इंटेलिजेंस महानिदेशक ने 6 जून को आदेश जारी कर सभी सैन्य अफसरों एवं सैनिकों को फेसबुक-इंस्टाग्राम समेत 87 एप डिलीट करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह सोशल मीडिया के सक्रिय यूजर हैं। उन्होंने दावा किया था कि यह नीति अभिव्यक्ति की आजादी, निजता का उल्लंघन जैसे मौलिक अधिकार का हनन है।
याचिका में कहा, सोशल मीडिया ही परिवार से जुड़ने का सहारा
याचिका के अनुसार लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी को इस संबंध में नौ जुलाई को अखबार के माध्यम से सूचना मिली और फिर 10 जुलाई को उन्हें इस संबंध में एक आधिकारिक पत्र भी मिला। चौधरी ने कहा कि ज्यादातर सैनिकों की तैनाती रिमोट एरिया में होती है और हर समय उन्हें दुश्मन से खतरा होता है, ऐसे में सोशल मीडिया ही उन्हें उनके परिवार से जुड़े रहने का सहारा होता है। घर से दूर रह कर सैनिक अपने परिवार में होने वाले बर्थ-डे, शादी समेत अन्य कार्यक्रमों की फोटो व वीडियो सोशल मीडिया से हासिल कर पाता है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने का फैसला मनमाना व अवैध है। याचिका में मिलिट्री इंटेलिजेंस महानिदेशक के अलावा सेना प्रमुख को भी पक्षकार बनाया गया है।