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फेसबुक, ट्विटर और गूगल की याचिकाओं पर सुनवाई से एक न्यायाधीश ने खुद को किया अलग

योग गुरु बाबा रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो लिंक वैश्विक स्तर पर हटाने के एक आदेश को चुनौती देने वाली फेसबुक ट्विटर और गूगल की याचिकाओं पर सुनवाई से दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया।

By Ashish GuptaEdited By: Mangal YadavPublished: Wed, 23 Feb 2022 09:14 PM (IST)Updated: Wed, 23 Feb 2022 09:14 PM (IST)
फेसबुक, ट्विटर और गूगल की याचिकाओं पर सुनवाई से एक न्यायाधीश ने खुद को किया अलग
फेसबुक, ट्विटर और गूगल की याचिकाओं पर सुनवाई से एक न्यायाधीश ने खुद को किया अलग

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। योग गुरु बाबा रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो लिंक वैश्विक स्तर पर हटाने के एक आदेश को चुनौती देने वाली फेसबुक, ट्विटर और गूगल की याचिकाओं पर सुनवाई से दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया। यह याचिका न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी। खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति सांघी ने याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि इन्हें 21 मार्च को एक अन्य पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए भेजा जाए, जिसमें वह सदस्य नहीं हैं।

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सितंबर 2018 में हाई कोर्ट ने 'गाडमैन टू टाइकून: द अनटोल्ड स्टोरी आफ बाबा रामदेव' नामक पुस्तक के प्रकाशन और बिक्री पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि जब तक प्रकाशक रामदेव के खिलाफ लिखे गए कुछ मानहानि वाले हिस्से को हटा नहीं देते, तब तक इस पर रोक रहेगी। किसी ने इस पुस्तक के कुछ अंश शामिल कर वीडियो इंटरनेट मीडिया पर अपलोड किए थे। हाई कोर्ट की एकल पीठ के 23 अक्टूबर 2019 को फेसबुक, ट्विटर, गूगल और गूगल की अनुषंगी कंपनी यूट्यूब को रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो के लिंक वैश्विक स्तर पर हटाने, निष्क्रिय या ब्लाक करने का निर्देश दिया गया है।

एकल पीठ ने निर्णय में कहा था कि अपमानजनक सामग्री तक केवल भारतीय उपयोगकर्ताओं की पहुंच बाधित करना काफी नहीं होगा, क्योंकि यहां रहने वाले अन्य माध्यमों से उस तक पहुंच हासिल कर सकते हैं। इस कारण वैश्विक स्तर पर सामग्री को हटाना होगा। पीठ ने यह भी कहा था कि पहुंच बाधित करने को आंशिक नहीं, बल्कि पूर्ण बाधित करने के रूप में लिया जाना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा था कि प्रौद्योगिकी और कानून के बीच खरगोश और कछुए वाली दौड़ चल रही है। प्रौद्योगिकी सरपट दौड़ती है, जबकि कानून गति बनाए रखने की कोशिश करता है। ऐसे में सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रविधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए, जिससे न्यायिक आदेश प्रभावी हों। एकल पीठ के इस आदेश को फेसबुक, ट्विटर और गूगल ने चुनौती दी है।


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