उद्यमियों को सीलिंग के नोटिस थमा रही दिल्ली सरकार
अदालत की फटकार के बाद जैसे-तैसे वर्ष 2002 में अग्रिम राशि में भी 75 फीसद लोन मिलने के बाद प्लॉट राशि में भी सरकारी सहायता मिलने की आस लिए उद्यमियों को निराशा मिली।
नई दिल्ली (नवीन गौतम)। बवाना के उद्यमियों को दिल्ली सरकार सीलिंग के नोटिस तो थमा रही है, लेकिन 22 साल में भी इस औद्योगिक क्षेत्र के लिए एक सुगम रास्ता भी नहीं दे पाई है। सोलह हजार से ज्यादा कारखाने यहां चल रहे हैं। सरकार को यहां से मोटा राजस्व मिल रहा है। यहां न तो अंदरूनी इलाके में सड़कों की स्थिति बेहतर है, न ही उद्यमियों को पर्याप्त पानी मिलता।
कानून व्यवस्था तो ऊपर वाले के भरोसे है। ऊपर से सीलिंग के नोटिस उद्यमियों के हौसले ही तोड़ रहे हैं। इन सभी का असर यहां के उद्योग धंधों पर पड़ रहा है। बवाना औद्योगिक क्षेत्र के निर्माण की कहानी- वर्ष 1996 में मास्टर प्लान 2001 के फरमान से उजड़ रहे उद्यमियों को बसाने के लिए तत्कालीन दिल्ली सरकार की ओर से नया औद्योगिक क्षेत्र बनाने की घोषणा की गई।
आवेदन पत्र के साथ जमा होने वाली राशि का 75 फीसद बिना गारंटी के उद्यमियों को उपलब्ध कराना छोटे उद्यमियों को हीलिंग टच जैसा लगा, लेकिन 1998 से स्थितियां फिर बदलने लगीं। लाचार उद्यमियों पर मनमाने नियम थोपे जाने लगे।
अदालत की फटकार के बाद जैसे-तैसे वर्ष 2002 में अग्रिम राशि में भी 75 फीसद लोन मिलने के बाद प्लॉट राशि में भी सरकारी सहायता मिलने की आस लिए उद्यमियों को निराशा मिली। जब उद्यमी बवाना पहुंचे तो उन्हें कब्जा कागजात के साथ थमाए गए 100 मीटर के प्लॉट में 27 मीटर का वर्किंग एरिया के नक्शों ने तो उनका हौसला ही तोड़ दिया। जब उद्यमी पैसा वापस लेने पंहुचे तो ब्याज तो दूर उनके मूल से भी राशि काटकर थमाई जाने लगी।
जब डीलर, आर्किटेक्ट बने देवदूत
प्रॉपर्टी डीलर ने हताश उद्यमियों को ढांढस बंधाया और उनसे पेपर लेकर उनकी ओर से जमा की गई पूरी राशि वापस करनी शुरू कर दी। अपना उद्यम चलाने को इच्छुक नए उद्यमियों ने ये प्लॉट लेने की चाहत दिखाई।
औद्योगिक क्षेत्र को निजी कंपनी के हवाले किया : मुकेश अग्रवाल
श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंडस्ट्रियल पार्क वेलफेयर एसोसिएशन बवाना के कोषाध्यक्ष मुकेश अग्रवाल का कहना है कि विकसित हो रहे औद्योगिक क्षेत्र को नगर निगम को सौंपे बिना निजी कंपनी के हवाले कर दिया। अब बवाना के उद्यमियों का मालिकाना अधिकार दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास निगम के पास से बवाना इंफ्रा के पास आ गया।
मुकेश अग्रवाल का कहना है कि बवाना तक पहुंचने का संपर्क मार्ग, पेय और औद्योगिक उपयोग के लिए जल, सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य सुविधाएं इत्यादि कोई भी मांग करते ही नया नोटिस थमा दिया जाता है। हमें तो अब लगता है कि सरकार की तरफ से नोटिस के साथ यह संदेश दिया जा रहा है कि अपना काम बंद करके विदेशी कम्पनियों की नौकरी कर लो, नहीं तो बर्बाद कर दिए जाओगे।