दिल्ली HC ने दिल्ली सरकार से पूछा- क्या दशहरा के बाद बनेगा रावण का पुतला
पीठ ने प्राधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि किसी को रावण का पुतला बनाना है, किसी को देवी-देवताओं की मूर्ति बनानी है, जाइए और भूमि आवंटित कीजिए।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दशहरा के दौरान रावण का पुतला व देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने के लिए दिल्ली आने वाले कारीगरों को अस्थायी भूमि आवंटित करने के मामले में लापरवाही बरतने पर हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार व दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) को फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने दोनों से पूछा, क्या दशहरा के बाद रावण का पुतला बनेगा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने नाराजगी जताते हुए एसडीएमसी के आयुक्त को सोमवार को पीठ के समक्ष पेश होने का आदेश दिया है।
पीठ ने कहा कि यह भयावह स्थिति है कि एक साल पहले हम जहां थे, आज भी वहीं हैं। एसडीएमसी एक साल बाद भी नीति निर्धारित करने व भूमि का आवंटन करने में सक्षम नहीं है। पीठ ने कहा कि यह हाल तब है जब कारीगर इसके लिए सामग्री खरीद चुके हैं।
पीठ ने जिम्मेदार प्राधिकारियों से पूछा कि कारीगर आखिर कब पुतला बनाएंगे, दशहरा बाद? पीठ ने प्राधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि किसी को रावण का पुतला बनाना है, किसी को देवी-देवताओं की मूर्ति बनानी है, जाइए और भूमि आवंटित कीजिए। इससे पहले दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि ड्राफ्ट पॉलिसी तैयार कर स्वीकृति दे दी गई है।
इस पर पीठ ने सरकार व निगम अधिकारियों को भूमि चिह्न्ति कर आवंटित करने का निर्देश दिया था। सरकार की नीति के तहत कारीगरों को काम शुरू करने से दो महीने पहले निगम में पंजीकरण कराना होगा। भूमि आवंटित होने पर दो महीने के लिए यह मान्य होगा।
पंजीकरण शुल्क के तहत उन्हें 500 रुपये प्रति आवेदन देना होगा। ज्ञात हो कि निगम की ओर से कारीगरों द्वारा बनाए गए अस्थायी आश्रयों को गिराने की खबर सामने आने के बाद कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। 25 सितंबर 2017 को हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार व एसडीएमसी को कारीगरों को अस्थायी जगह उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत फैसला लेने का आदेश दिया था।