दंगों से संबंधित मामलों की पैरवी के लिए पुलिस के वकीलों के पैनल को दिल्ली कैबिनेट ने किया खारिज
दिल्ली दंगों (Delhi Violence) से संबंधित मामलों की पैरवी के लिए दिल्ली पुलिस (Delhi Police ) के वकीलों के पैनल को दिल्ली कैबिनेट (Delhi Government) ने खारिज कर दिया है।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। उत्तरी पूर्वी दिल्ली के दंगों के मामलों की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पैरवी के लिए गठित किए जाने वाले वकीलों के पैनल को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद और बढ़ गया है। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली पुलिस के जिस पैनल को मंजूरी देने के लिए फाइल दिल्ली सरकार के पास भेजी थी, दिल्ली कैबिनेट ने दिल्ली पुलिस द्वारा गठित किए गए वकीलों के इस पैनल को मंगलवार को खारिज कर दिया। इसे लेकर शाम को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में उनके आवास पर कैबिनेट की बैठक हुई। जिसमें कैबिनेट ने निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए दिल्ली पुलिस के वकीलों के पैनल को खारिज कर दिया। दिल्ली कैबिनेट उपराज्यपाल की इस बात से जरूर सहमत थी कि यह केस बेहद महत्वपूर्ण है। इस कारण कैबिनेट ने दिल्ली सरकार के गृह विभाग को निर्देश दिया है कि दिल्ली दंगे के लिए देश के सबसे बेहतरीन वकीलों का पैनल बनाया जाए। साथ ही पैनल निष्पक्ष भी होना चाहिए। उधर जानकारों का कहना है कि पूर्व में गठित निचली अदालतों के पैनल के अनुभव को देखते हुए उपराज्यपाल अपने अधिकारों का प्रयाेग करते हुए दिल्ली पुलिस के पैनल को अनुमति दे सकते हैं।
मंगलवार शाम को हुई दिल्ली कैबिनेट की बैठक में दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव के साथ दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के सुझाव पर विचार किया गया। इस दौरान यह तय हुआ कि दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने के लिए जो भी दोषी हैं, उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए। साथ ही यह भी तय हुआ कि निर्दोष को परेशान या दंडित नहीं किया जाना चाहिए। कैबिनेट ने पुलिस के पैनल काे खारिज करने के पीछे का कारण यह बताया है कि दिल्ली पुलिस की जांच पर विभिन्न न्यायालय की ओर से पिछले दिनों सवाल उठाए गए थे। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश सुरेश कुमार ने भी दिल्ली दंगे के संबंध में दिल्ली पुलिस पर टिप्पणी की थी कि दिल्ली पुलिस न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर रही है। ऐसे में पुलिस पर संदेश है।
दिल्ली कैबिनेट का मानना है कि क्रिमिनल जस्टिस का मूल सिद्धांत है कि जांच पूरी तरह से अभियोजन से स्वतंत्र होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगों की जांच एजेंसी रही है, ऐसे में उनके वकीलों के पैनल को मंजूरी देने से निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
दिल्ली सरकार ने वकीलों के पैनल के मामले में उपराज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। कैबिनेट ने कहा है कि वकीलों के पैनल का फैसला करने के मामले में उपराज्यपाल का बार-बार हस्तक्षेप करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
क्या है विवाद का मामला
उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की तरफ से गठित पैनल पर असहमति जताते हुए कैबिनेट में निर्णय लेने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया था। दिल्ली सरकार के अनुसार सीआरपीसी के सेक्शन 24 में भी इस बात का जिक्र है कि लोक अभियोजक की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है। संविधान के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्पेशल अधिकार है कि वह दिल्ली की चुनी हुई सरकार के किसी निर्णय पर हस्तक्षेप कर सकते हैं और उसे पलट सकते है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4 जुलाई 2018 के अपने आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया है कि उपराज्यपाल इस अधिकार का इस्तेमाल दुर्लभ मामलों में ही कर सकते हैं। सरकार के अनुसार वकीलों के पैनल का दुर्लभ मामलों में नहीं आता है। इस कारण वकीलों की नियुक्ति का अधिकार पूरी तरह से दिल्ली सरकार के पास है।
एलजी ने कहा था कि दिल्ली दंगों के लिए वकीलों के पैनल पर दिल्ली सरकार स्वीकृति दे
दिल्ली पुलिस ने तुषार मेहता और अमन लेखी सहित छह वरिष्ठ वकीलों को उत्तरी पूर्वी दिल्ली और एंटी सीएए प्रोटेस्ट से जुड़े 85 मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल वकील नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव दिल्ली सरकार को भेजा था। दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस का यह प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा और उनकी टीम इन मामलों में इंसाफ़ दिलाने के लिए सक्षम है। जिस पर उपराज्यपाल ने असहमति जताई और अपने स्पेशल पावर का इस्तेमाल करते हुए इस फाइल को अपने पास मंगा लियाद। उन्होंंने दिल्ली सरकार द्वारा खारिज किए गए दिल्ली पुलिस के पैनल को सही माना। उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर दिल्ली कैबिनेट की बैठक कर इस मामले में निर्णय लेने के लिए कहा था।