दिल्ली कोर्ट का अहम फैसला, गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं आर्थिक रूप से सक्षम महिला
पति से अलग रह रही पत्नी के गुजारा भत्ता को लेकर दिल्ली की कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। पति से अलग रह रही पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता को लेकर दायर एक याचिका पर दिल्ली की कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। दिल्ली की कोर्ट ने कहा है ‘पत्नी अगर काम करने और अपनी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम है तो वह अपने पति से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती। दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला की याचिका खारिज करते हुए यह बात कही जिसने अलग हो चुके पति से अंतरिम भत्ते की मांग की थी। इसी के साथ कोर्ट ने महिला की याचिका भी खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से खुद सक्षम है और अपनी जरूरतें पूरी कर सकती है। उधर, पति की ओर से कोर्ट को बताया गया कि महिला उसके साथ सिर्फ 40 दिन रही और फिर उसे छोड़कर चली गई। पति के वकील ने कोर्ट के सामने कुछ दस्तावेज रखे जिसके मुताबिक, महिला इस तरह से पहले भी मेट्रोमॉनियल साइट पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर मासूम लोगों को फंसाती रही है। कोर्ट ने सारी दलीलों को सुनने के बाद पति के पक्ष में फैसला सुनाया।
दरअसल, याचिकाकर्ता 2016 तक कहीं पर कार्यरत थी और बाकायदा सैलरी लेती थी, लेकिन अब यह स्पष्ट नहीं है कि उसने काम करना क्यों छोड़ दिया। ऐसे में यह तय नियम है कि अगर पति की तरह पत्नी भी कार्य करती है और अपना खर्च उठाने में सक्षम है तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। यहां पर बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही अपने फैसले में कह चुका है कि गुजारा भत्ता तय करते वक्त देखना चाहिए कि पति उतना दे सकता है या नहीं, उसकी जिम्मेदारियों पर भी गौर किया जाना चाहिए।
इतना ही नहीं, अन्य फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट कह चुका है कि अलग रह रही पत्नी को गुजारा भत्ता जीवन यापन के लिए दिया जाता है और इसे तोहफे के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए और यह उसकी अर्जी की तारीख से ही देना होगा। अदालत ने एक व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया है। इस व्यक्ति ने निचली अदालत के मई 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अलग रह रही पत्नी को अर्जी दायर करने की तारीख मार्च 2014 से अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर 40,000 रूपये देने के निर्देश दिए।
इस मामले में महिला ने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत याचिका दाखिल की है, इसमें महिला ने अलग रह रहे पति ने गुजारा भत्ता की मांग की है। पीड़िता का कहना है कि उसकी शादी 11 मई, 2018 को हुई थी। कुछ समय तक को सब ठीक चला, लेकिन फिर वह पति के हाथों कई बार घरेलू हिंसा की शिकार हुई।
महिला ने कोर्ट में यह जानकारी भी दी कि वह 2016 तक 10,000 रुपये प्रति महीने की सैलरी पर किसी संस्थान में काम करती थी। महिला का कहना है कि जिस शख्स से उसकी शादी हुई वह पहले से तलाकशुदा था और वह 70000 रुपये प्रति महीने कमाता था। महिला ने बताया कि उसके पति ने उसका कई बार ब्लड टेस्ट कराया ताकि मामूली यूरिन इनफेक्शन को शादी तोड़ने की वजह बना सके। वहीं, पति ने महिला के आरोपों को गलत बताया है।
वहीं, पति के वकील प्रभजीत जौहर का कहना है कि उनका मुवक्किल 35000 रुपये महीने कमाता है, न कि 70,000 रुपये। फिलहाल याचिकाकर्ता महिला किसी नामी कंपनी में एचआर प्रोफेशनल के तौर पर काम करती है। उसने जानबूझकर यह याचिका दायर की है। शिकायत कर रही महिला फिलहाल एक प्रतिष्ठित कंपनी में एचआर प्रोफेशनल है जैसा कि उसने अपनी मैट्रिमॉनियल प्रोफाइल में लिख रखा है। वह जानबूझकर गलत जानकारी दे रही है कि वह अपना निर्वाह करने में सक्षम नहीं है।
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