अदालत ने कहा- शाही इमाम होने का लाभ नहीं उठा सकते सैयद अहमद बुखारी
दिल्ली की एक अदालत ने जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के खिलाफ एक अपराधिक मामले को खारिज करने से इंकार करते हुए कहा कि वह मस्जिद के प्रमुख होने का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी पर फिजूल याचिका लगाकर अदालत का समय बर्बाद करने पर तीस हजारी की सत्र अदालत ने 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। वर्ष 2001 में सरकारी कर्मचारी से मारपीट और सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने के मामले में शाही इमाम ने मुकदमे को खारिज करने की याचिका लगाई थी।
याचिका में कहा गया था कि अगर इस मामले को आगे चलाया गया तो सांप्रदायिक माहौल पैदा हो सकता है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लोकेश कुमार शर्मा ने शाही इमाम द्वारा पेश किए गए तर्कों को अर्थहीन मानते हुए इन्हें हास्यास्पद करार दिया। अदालत ने कहा प्रमुख मस्जिद के शाही इमाम होने के नाते उन्हें कानून से विशेष छूट प्रदान नहीं की जा सकती है। सांप्रदायिक माहौल पैदा होने का तर्क देना काल्पनिक है, इस आधार पर उन्हें राहत नहीं दी जा सकती है।
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तस्वीर: शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी
धर्म विशेष के प्रमुख इमाम को नहीं दी सकती छूट
शाही इमाम ने अदालत के समक्ष यह भी तर्क दिया था कि उन्हें जेड-प्लस सुरक्षा मिली हुई है। इतने सुरक्षाकर्मियों के साथ अदालत में पेश होने से काफी असुविधा होगी। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता भी अदालत के समक्ष पेश हुए है। उनकी सुरक्षा को लेकर खतरा इस मामले से कहीं अधिक है, लेकिन वह शांति पूर्वक तरीके से न्यायिक प्रक्रिया का सामना करने के लिए अदालत के समक्ष पेश हुए। जब इतने वरिष्ठ नेता अदालत में सहजता के साथ पेश हो सकते हैं तो किसी धर्म विशेष के प्रमुख इमाम को इस प्रकार छूट नहीं दी जा सकती है।
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अदालत ने कहा कि सैयद अहमद बुखारी जामा मस्जिद के शाही इमाम हैं। वह एक विशेष समुदाय से जुड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन उन्हें देश के एक सामान्य नागरिक की तरह ही कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा।
प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा होगी राशि
इस तरह की व्यर्थ याचिका लगाने पर शाही इमाम पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। उन्हें यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करानी होगी। एक सीपीडब्लूडी के कर्मचारी से मारपीट के मामले में इससे पूर्व मजिस्ट्रेट अदालत ने भी शाही इमाम की याचिका को खारिज कर दिया था। जिसे उन्होंने सत्र अदालत में चुनौती दी थी।
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