67 मौतों पर 11 साल बाद 'इंसाफ', कमजोर सुबूत से दो बरी, एक की सजा पूरी
दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में पुलिस आरोपियों के दोष साबित करने में बुरी तरह से विफल रही।
नई दिल्ली (जेएनएन)। राजधानी के सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में 29 अक्टूबर 2005 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में पुलिस आरोपियों के दोष साबित करने में बुरी तरह से विफल रही। इस वजह से घटना के 11 साल बाद पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष अदालत ने दो आरोपियों मोहम्मद हुसैन फजली व मोहम्मद रफीक शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
तीसरे आरोपी तारिक अहमद डार को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) की धारा 38 व 39 के तहत दोषी ठहराते हुए दस साल की सजा सुनाई गई है। 67 लोगों की मौत पर कोर्ट के इस फैसले से पीड़ित परिजन निराश हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। न्यायाधीश रितेश सिंह ने 140 पेज के आदेश में साफ कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के दोष साबित करने में बुरी तरह से विफल रहा।
हालांकि तारिक आतंकी संगठनों से जुड़ा था लेकिन वह दस साल की अवधि पहले ही जेल में काट चुका है। उसे अब इस मामले में छोड़ा जा सकता है। तारिक पर मनी लॉन्ड्रिंग का एक मामला भी लंबित है, जिसके चलते उसे जेल में रहना पड़ेगा।
अभियोजन पक्ष (दिल्ली पुलिस) की मानें तो तारिक ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर सीरियल बम ब्लास्ट की साजिश रची थी। इससे पूर्व मामले में फारुख अहमद बटलू व गुलाम अहमद खान को राजधानी में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए फंड जुटाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था।
सजा की अधिकतम अवधि जेल में काटने के चलते दोनों को छोड़ दिया गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तारिक ने आतंकी अबू उजेफा, अबू अल कामा, राशिद, शाजिद अली व जाहिद के साथ मिलकर दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट करने की साजिश रची थी। तारिक को छोड़कर अन्य सभी दिल्ली पुलिस के हाथ नहीं चढ़े।पुलिस को आशंका है कि ये सभी गुलाम कश्मीर में छिपे हैं।