हिरासत में हुई थी शख्स की मौत, उत्तर प्रदेश के 5 पुलिसकर्मियों को मिली 10 साल कैद की सजा
पिता ने आरोप लगाया था कि बेटे को मोबाइल लूट के मामले में संदिग्ध मानते हुए टॉर्चर किया गया जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने उसे लॉकअप में फांसी से लटका दिया।
नई दिल्ली, जेएनएन। पुलिस हिरासत में जिला बुलंदशहर निवासी युवक की मौत के मामले में दिल्ली की तीस हजारी की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के पांच कर्मियों को 10 साल कारावास की सजा सुनाई है। अवैध हिरासत और गैर इरादतन हत्या सहित विभिन्न धाराओं में सब इंस्पेक्टर हिंदवीर सिंह, महेश मिश्रा और सिपाही प्रदीप, पुष्पेंद्र, हरिपाल पर अदालत ने 35-35 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। साथ ही अदालत ने आदेश दिया कि हिंदवीर सिंह और महेश मिश्रा पांच-पांच लाख रुपये बतौर मुआवजा मृतक के पिता को देंगे, जबकि अन्य तीन दोषी दो-दो लाख रुपये मुआवजा देंगे। इसके अलावा वारदात में बिचौलिये कुंवर पाल को तीन साल कारावास और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई। साथ ही एक लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का आदेश दिया गया।
मामला साल 2006 का है, जिसका ट्रायल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली की अदालत में चला था। सुप्रीम कोर्ट में मृतक के पिता दलबीर सिंह की शिकायत के मुताबिक, बुलदंशहर के खुर्जा के सिकरी निवासी प्रॉपर्टी डीलर कुंवर पाल दो सितंबर 2006 को खुर्जास्थित गांव हजरतपुर स्थित उनके घर पहुंचा। उसके साथ पांच अन्य लोग भी थे। चूंकि उनका बेटा सोनू उर्फ सोमवीर भी प्रॉपर्टी डीलर का काम करता था, इसलिए उसे कहा गया कि कोई जमीन दिखाए। सोनू उन सभी के साथ उनकी गाड़ी में चला गया।
दरअसल, कुंवर पाल का सोनू के साथ पैसों की लेनदेन को लेकर विवाद था। जमीन के बहाने सोनू को नोएडा की कोतवाली सेक्टर 20 की निठारी चौकी में लाकर पीटा गया। पांच अन्य लोग जो कुंवर पाल के साथ आए थे, वे पुलिसकर्मी थे। इनमें तीन की तैनाती नोएडा पुलिस की एसओजी में थी।
पिता ने आरोप लगाया था कि सोनू को मोबाइल लूट के मामले में संदिग्ध मानते हुए टॉर्चर किया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने उसे लॉकअप में फांसी से लटका दिया। थाने के रोजनामचा में दर्ज किया गया कि सोनू ने आत्महत्या कर ली। मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उसके शरीर के कई हिस्सों पर चोट के निशान थे।
फैसला सुनाते वक्त अदालत ने कहा
कम सजा, सहानुभूति या उदारता दिखाना सामाजिक हित के खिलाफ होगा। जबकि सामाजिक हित और सजा प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है। अदालत इस तथ्य पर आंखें नहीं मूंद सकती कि एक कीमती मानव जीवन खो गया है। जबकि मृतक बगैर किसी साक्ष्य या उसके खिलाफ उचित संदेह के पुलिस की हिरासत में था। इसलिए अदालत इन हालात में, दोषियों को दस साल सश्रम कारावास की सजा सुनाती है।