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बिहार चुनाव में टिमटिमाएंगे दिल्ली के ‘सितारे, इंसाफ में सियासी नफा-नुकसान

क्रिकेटर से नेता बने पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर ने अपने एक साल के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया है। रिपोर्ट कार्ड पेश करके उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति अपनी जवाबदेही दर्शाने की कोशिश की है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 03:52 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 03:52 PM (IST)
बिहार चुनाव में टिमटिमाएंगे दिल्ली के ‘सितारे, इंसाफ में सियासी नफा-नुकसान
उदित राज तो ट्वीट करके पार्टी हाईकमान का आभार भी जता चुके हैं।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। बिहार चुनाव का शोर दिल्ली में भी जोर पकड़ रहा है। मतदान का समय नजदीक आते देख कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। इस सूची में विभिन्न राज्यों के नेताओं सहित दिल्ली से पूर्व क्रिकेटर कीर्ति और पूर्व सांसद उदित राज को मौका दिया गया है। दिल्ली में भले ही ये दोनों कुछ खास जलवा न बिखेर पा रहे हों, लेकिन पार्टी को उम्मीद है कि बिहार में इनका प्रचार पार्टी के लिए मददगार साबित हो सकता है।

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अब पार्टी को इनसे कितनी मदद मिलेगी, यह तो पता नहीं, लेकिन स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल होने से इन दोनों को अवश्य ही सुखद एहसास हो रहा है। लंबे समय से उपेक्षा के शिकार चल रहे इन दोनों नेताओं के लिए यह जिम्मेदारी संजीवनी से कम नहीं है। उदित राज तो ट्वीट करके पार्टी हाईकमान का आभार भी जता चुके हैं।

जनप्रतिनिधि दें हिसाब

क्रिकेटर से नेता बने पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर ने अपने एक साल के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया है। रिपोर्ट कार्ड पेश करके उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति अपनी जवाबदेही दर्शाने की कोशिश की है। उन्हें इसका सियासी लाभ भी मिलेगा। साथ ही उनके इस कदम से दूसरे सांसदों पर रिपोर्ट कार्ड पेश करने का निश्चित रूप से दबाव बनेगा। सिर्फ सांसद ही नहीं, सभी जनप्रतिनिधियों को अपने कामकाज का हिसाब जनता को देना चाहिए। उन्हें यह बताना चाहिए कि जनता से किए गए वादे पूरा करने की दिशा में उन्होंने क्या किया है। कुछ जनप्रतिनिधि जनता के प्रति अपने इस दायित्व को निभाते भी हैं, लेकिन अधिकतर को चुनाव के समय ही उनका दायित्व याद आता है। सभी जनप्रतिनिधियों से जनता को उम्मीद है कि वे अपने कामकाज का हिसाब देंगे।

इंसाफ में सियासी नफा-नुकसान

दिल्ली के आदर्श नगर में एक छात्र की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी जाती है कि क्योंकि उसकी दोस्ती एक किशोरी से थी और किशोरी के स्वजन इस दोस्ती के खिलाफ थे। इससे पहले पश्चिमी दिल्ली में भी एक युवक की मोबाइल चोरी के शक में हत्या कर दी गई थी। राजधानी में लगभग डेढ़ माह के अंदर दो लोगों की बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी जाती है, लेकिन इसे लेकर न तो सियासी उबाल आता है और न तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग व मानवाधिकार के नाम पर हाय तौबा मचाने वाले समाजसेवियों की आत्मा रोती है। कारण स्पष्ट है, दोनों घटनाएं किसी वोट बैंक को प्रभावित नहीं करती हैं।

इन घटनाओं से जहां राजधानी में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा होता है, वहीं यह सच्चाई भी सामने आ जाती है कि कुछ लोग इंसाफ की मांग भी सिर्फ धर्म व जाति देखकर उठाते हैं। वे सियासी नफा-नुकसान देखकर ही सड़कों पर भीड़ उतारते हैं।

हाथरस में भूले किसानों की चिंता

बिना सोचे समझे मुद्दों को लपकने में लगी कांग्रेस ‘आगे दौड़, पीछे छोड़’ की राह पर चल पड़ी है। हर मुद्दे को भुनाने की कोशिश में पार्टी कभी कुछ पीछे छोड़ देती है तो कभी कुछ। अब किसान आंदोलन को ही ले लीजिए। पार्टी हाईकमान के निर्देश पर तीनों कृषि कानूनों के विरोध में देशव्यापी आंदोलन छेड़ने का शेड्यूल बनाया गया। नौ अक्टूबर से इस पर काम शुरू होना था, लेकिन हाथरस कांड में पार्टी ऐसी उलझी कि किसान आंदोलन भूल गई।

दिलचस्प यह कि हाथरस के चक्कर में किसानों की चिंता न केवल पीछे छूटी, बल्कि इस आंदोलन की धार भी कुंद पड़ गई। ऐसे में अब शायद पार्टी को भी यह मुद्दा गले में मरा सांप डालने जैसा लग रहा है। इसीलिए इस पर कोई खास ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है। सब कुछ पाने की इस प्रवृत्ति में कहीं ऐसा न हो जाए कि पार्टी कुछ भी न हासिल कर पाए।

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