'लोकतंत्र में विकास का प्रतीक है मतभेद, मशीन का उत्पाद नहीं है मनुष्य'
लोकतंत्र में मतभेद को विकास का प्रतीक माना गया है। जब मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं तब समस्या उत्पन्न होती है। जरूरत है हम संवाद के द्वारा सह अस्तित्व के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।
नई दिल्ली [जेएनएन]। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार: भारत के धर्म एवं दर्शन' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि मनुष्य मशीन का उत्पाद नहीं है। इसलिए विचार भेद, रुचि भेद, चिंतन भेद होना स्वाभाविक है।
संवाद की जरूरत
लोकतंत्र में मतभेद को विकास का प्रतीक माना गया है। जब मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं तब समस्या उत्पन्न होती है। जरूरत है हम संवाद के द्वारा, वार्ता के द्वारा सह अस्तित्व के लिए निरंतर प्रयासरत रहें। विकास व समृद्धि के लिए समाज में शांति व सद्भावना का वातावरण जरूरी होता है। यह आयोजन कुतबी जुबली स्कॉलरशिप प्रोग्राम व जेएनयू के सेंटर ऑफ अरेबिक एंड अफ्रीकन स्टडीज के संयुक्त तत्वावधान में बृहस्पतिवार को किया गया।
इस सगोष्ठी में धार्मिक विचारधारा, इतिहास, कल्पनाशील राजनीति, नेतृत्व और शांति, वर्तमान में शांति के पूर्ववर्ती उदाहरणों में बहुलता, प्रतिस्पर्धा, जाति और समकालीन भारत में पहचान, समकालीन राजनीति और दर्शन अन्य लोगों के बीच भविष्य जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
दलाई लामा को पहला तकरीब पुरस्कार
आयोजकों ने बताया कि कुतबी जुबली स्कॉलरशिप कार्यक्रम द्वारा तकरीब पुरस्कार 10,000 अमेरिकी डॉलर का शुरू किया जा रहा है। यह पुरस्कार सैयदना ताहिर फखरूद्दीन टस के निर्देशन में उदार निधि में शुरू किया जाएगा। इस मौके पर दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रमुख सैयदना तेहर फखरूद्दीन ने दलाई लामा को पहले तकरीब पुरस्कार से सम्मानित किया।
खतरनाक है वैचारिक प्रदूषण
अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक जैन आचार्य डॉ. लोकेश मुनि ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक वैचारिक प्रदूषण है। शांतिपूर्ण सहस्तित्व भारत की बहुलतावादी संस्कृति की पहचान है। अनेकता में एकता उसकी मौलिक विशेषता है, सर्वधर्म संवाद इसका मूल मंत्र है। सर्वधर्म सद्भाव को अपने जीवन में उतारना विश्व शांति के लिए आवश्यक है। धर्म हमें जोड़ना सिखाता है तोड़ना नहीं। धर्म के क्षेत्र में हिंसा, घृणा और नफरत का कोई स्थान नहीं हो सकता। हिंसा और आतंकवाद किसी समस्या का समाधान नहीं है। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है।
अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान मुमकिन
आचार्य लोकेश ने कहा कि भगवान महावीर के दर्शन पर आधारित जैन धर्म अहिंसा, अनेकात व अपरिग्रह जैसे सिद्धातों पर आधारित है। यह सिद्धांत एक जाति व धर्म तक सीमित नहीं है। इनको समझने और जीवन में उतारने से अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान मुमकिन है। भगवान महावीर के दर्शन को अपनाने से समाज में शांति व सद्भावना स्थापित कर मानवता को पूर्ण विकास की ओर ले जा सकते हैं।
अंतरधार्मिक संवाद की आवश्यकता
सैयदना ताहिर फखरूद्दीन ने कहा कि आज न केवल भारत बल्कि समस्त विश्व हिंसा व आतंकवाद से प्रभावित है। आए दिन धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर बेगुनाहों का कत्लेआम हो रहा है। ऐसे समय में अंतरधार्मिक संवाद की बहुत आवश्यकता है।
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