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मैटरनिटी लीव घोटाले में ठेकेदार और कर्मचारियों की मिलीभगत, संदेह के घेरे में ये अधिकारी

प्रारंभिक जांच के बाद विभाग के अधिकारियों ने तय कर लिया है कि वर्ष 2016 से मार्च 2019 तक के करीब 1600 मातृत्व अवकाश हित लाभ केसों की बारीकी से जांच कराई जाएगी।

By Edited By: Published: Fri, 31 May 2019 06:36 PM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 09:07 AM (IST)
मैटरनिटी लीव घोटाले में ठेकेदार और कर्मचारियों की मिलीभगत, संदेह के घेरे में ये अधिकारी
मैटरनिटी लीव घोटाले में ठेकेदार और कर्मचारियों की मिलीभगत, संदेह के घेरे में ये अधिकारी

फरीदाबाद [अनिल बेताब] । ईएसआइसी कारपोरेशन (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) में मातृत्व अवकाश हित लाभ (सवेतन) घोटाला ठेकेदार, महिला कर्मी और ईएसआइसी अधिकारी की मिलीभगत से हुआ है। ईएसआइसी अस्पताल के डॉक्टरों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। हालांकि अब तक की प्रारंभिक जांच के बाद विभाग के अधिकारियों ने तय कर लिया है कि वर्ष 2016 से मार्च 2019 तक के करीब 1600 मातृत्व अवकाश हित लाभ केसों की बारीकी से जांच कराई जाएगी।

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ईएसआइसी की ओर से करीब 8 करोड़ रुपये का महिलाओं को मातृत्व अवकाश हित लाभ दिया गया है। अधिकारियों की मानें तो कुछ एक केस सही हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में फर्जीवाड़ा है। हैरानी की बात यह है कि महिलाओं को मातृत्व अवकाश हित लाभ देने के लिए ईएसआइसी के शाखा कार्यालय की ओर से एक बैंक को केसों के हिसाब से एकमुश्त पैसा दिया जाता रहा है।

इस बैंक के माध्यम से महिला कर्मी के अलग-अलग खातों में पैसे डाल दिए जाते थे। इससे साफ है कि ठेकेदार महिला कर्मियों का जो बैंक खातों का ब्यौरा शाखा कार्यालय में जमा कराते थे, शाखा कार्यालय की ओर से उस ब्यौरे की सूची सहित राशि को बैंक में जमा करवा देते थे। ठेकेदार और ईएसआइसी के अधिकारी, कर्मचारी ने ऐसा खेल करके ही करोड़ों रुपये का चूना लगाया है।

सूत्रों से एक बात यह भी सामने आई है कि इस मामले में सेक्टर-27-28 से नहरपार, बदरपुर बार्डर व सेक्टर-23 क्षेत्र में सक्रिय ठेकेदारों ने घोटाला किया है, जिनकी ईएसआइसी के एक, दो अधिकारियों से सांठगांठ रही है। डॉक्टरों की संलिप्तता इसलिए चर्चा में है कि महिला की डिलीवरी का प्रमाण पत्र भी मातृत्व अवकाश हित लाभ देने के मामले में अनिवार्य शर्तों में से एक है।

ईएसआइसी रीजनल बोर्ड के सदस्य बेचू गिरी ने कहा कि मैंने कई बार ईएसआइसी रीजनल बोर्ड की बैठक में यह मुद्दा उठाया था कि ठेकेदार को ईएसआइसी कोड न दिया जाए। जिस कंपनी में ठेकेदार के कर्मी सेवाएं दे रहे हैं, उस कंपनी के मालिक को ही सबकोड दिया जाए। यदि ठेकेदार को कोड दिया जाता है, तो उसकी बराबर निगरानी होनी चाहिए, ताकि कोई गड़बड़ हो तो समय रहते सामने आ सके।

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