कुत्ते पर भिड़े अधिकारियों ने दिए अजब-अजब तर्क, जानकर हो जाएंगे हैरान
अफसर ने तर्क दिया कि असम और नागालैंड में काफी लोग कुत्ते का मांस खाते हैं, इन कुत्तों को वहां भेजा जा सकता है।
नई दिल्ली (सुधीर कुमार)। पूर्वी दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में आवारा कुत्तों की भरमार है। लोग परेशान हैं और दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं। इसलिए निगम की स्वास्थ्य समिति की बैठक में यह मुद्दा तो उठा पर समाधान नहीं निकला। हां, अजब-गजब बयान जरूर सुनने को मिल गए।
एक पार्षद ने कहा कि इन कुत्तों को हटा नहीं सकते तो हमारे घर पर ही बांध दीजिए। तभी एक अधिकारी ने आवारा कुत्तों को इलाके का बाशिंदा बताते हुए इन्हें इधर-उधर करने से इंकार कर दिया।
वहीं ,एक अधिकारी ने तो इसे भोज्य पदार्थ तक बता डाला। उन्होंने तर्क दिया कि असम और नागालैंड में काफी लोग कुत्ते का मांस खाते हैं, इन कुत्तों को वहां भेजा जा सकता है।
पार्षद निर्मला कुमारी ने कहा कि आवारा कुत्ते लोगों के लिए आफत बन गए हैं। लोग शिकायत करते हैं तो वह अधिकारियों को फोन करती हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। इसी तरह अन्य पार्षदों ने भी इसी तरह की शिकायतें कीं।
इस पर वेटनरी विभाग के निदेशक डॉ. प्रह्लाद ने कहा कि कुत्तों की सुरक्षा के लिए कानून बना है और इसके तहत आवारा कुत्ते भी उस इलाके के बाशिंदे हैं, जहां लोग रहते हैं। इसलिए कुत्तों को पकड़कर सिर्फ बंध्याकरण किया जाता है और रेबिज का टीका लगाया जाता है।
इसके बाद उन्हीं इलाकों में छोड़ दिया जाता है, जहां से पकड़े गए थे। इस जवाब पर पार्षदों ने आपत्ति जताई। इसी बीच निगम के जनस्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एनआर दास ने कहा कि जिस तरह लोग अलग अलग इलाकों में बकरा, मुर्गा, भैंस व अन्य जीव को भोज्य सामग्री के रूप में खाते हैं।
उसी तरह नागालैंड व असम में कुत्ते का मांस खाया जाता है। इन कुत्तों से निजात पाने के लिए उन्हें असम या नागालैंड भेजा जा सकता है। इस तरह इनकी संख्या कम हो सकती है।
अपनी कमाई के लिए कुत्तों के संरक्षण पर काम करती थीं विदेशी कंपनियां
बैठक में निगम स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एनआर दास ने हैरत करने वाली जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि वर्ष 93-94 में वह निगम के जन स्वास्थ्य विभाग में नरेला जोन में तैनात थे। एक छानबीन के दौरान पता चला था कि फ्रांस व जर्मनी की कुछ कंपनियां भारत में पशु प्रेमी तैयार करते हैं। ये पशु प्रेमी कुत्तों की रक्षा करते थे।
इन कंपनियों का उद्देश्य था कि जितने आवारा कुत्ते होंगे, उतनी आमदनी बढ़ेगी। लोगों को कुत्ते काटेंगे तो उन्हें रेबिज के इंजेक्शन लगाने होंगे। इसके अलावा कुत्तों को भी इंजेक्शन लगेंगे।
रेबिज के अधिकतर इंजेक्शन फ्रांस व जर्मनी में बनते हैं। उन्होंने कहा कि अब की स्थिति का उन्हें पता नहीं, लेकिन उस समय यह बात सामने आई थी कि कंपनियां पशु प्रेमी भी तैयार करती हैं।