Delhi: बूढ़ी दादी को दुल्हन के रूप में देख खिलखिला रहे बच्चे, दूरी बनाकर बुजुर्गों ने की मस्ती
Lockdown impact लोगों ने समय बिताने के लिए अपने पुराने एल्बम वीसीडी में कैद की गई शादी के कैसेट से बनी सीडी निकाल रहे हैं।
नई दिल्ली [सुधीर कुमार]। लगातार भागती जिंदगी में कोरोना ने ब्रेक लगा दिए हैं। यह एक ऐसा जंग हो गया है जिसमें ठहर जाने पर ही जीत हासिल हो सकती है। इससे बहुतों को बेचैनी हो रही है, वहीं कई घरों से खिलखिलाहट की गूंज सुनाई पड़ रही है जो औरों को हैरत में डाल रही है। बहुत से परिवारों ने अपने जीवन के उन पहलुओं को याद करना, यादों को समेटना शुरू कर दिया है, शायद पहले की रफ्तार में अगर जिंदगी चलती रहती है तो वह यूं ही किसी कोने में दबी रह जाती।
दरअसल लोगों ने समय बिताने के लिए अपने पुराने एल्बम, वीसीडी में कैद की गई शादी के कैसेट से बनी सीडी निकाल रहे हैं। जब सीडी चलती है तो छोटे-छोटे बच्चे हंस-हंस कर लोट-पोट हो जा रहे हैं। जिन बच्चों ने अपनी दादी व दादा को सफेद बालों में देखा है वह उन्हें दूल्हा-दुल्हन के रूप में देख रहे हैं और चौंक जा रहे हैं।
कुछ ऐसा ही नजारा आइपी एक्सटेंशन की सोसाइटियों के कई फ्लैटों में देखने को मिल रहा है। आइपैक्स महासंघ के चेयरमैन, राजधानी निकुंज सोसाइटी के संस्थापक सदस्यों में एक और व्यापारी नेता सुरेश बिंदल कहते हैं कि उन्हें कभी याद नहीं कि इस तरह पूरा परिवार एक साथ घरों में रहा हो। अधिकतर घरों से खिलखिलाहट की गूंज सुनाई पड़ रही है।
उन्होंने कई लोगों से बात की तो पता चला कि दादी को दुल्हन के रूप में देखकर बच्चे ठहाका लगा रहे हैं। क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा मौका आया ही नहीं था कि सभी साथ रहे हों। कभी किसी की छुट्टी होती थी तो किसी की नहीं। अगर सबकी छुट्टी हो भी जाए तो परिवार के आधे लोग कहीं और टूर पर निकल जाते थे। लेकिन अभी सब साथ रह रहे हैं।
कोरोना प्रोटोकॉल के साथ पुस्तकालय में मस्ती की बुजुर्गों ने
आइपी एक्सटेंशन सोसायटी के राजधानी निकुंज सोसायटी में रहने वाले अधिकतर बुजुर्ग भले ही सेवानिृवत्ति की उम्र पार कर चुके हैं लेकिन कहीं न कहीं वह व्यावसायिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं जिससे उनका भी अवकाश नहीं रहता है। कोरोना महामारी ने उनके कदम भी बाहर बढ़ने से रोक दिए हैं लेकिन वह इस समय का पूरा सदुपयोग करने में जुटे हुए हैं।
सोमवार को बुजुर्ग सोसायटी परिसर में ही बने पुस्तकालय में इकट्ठे हुए, लेकिन दूरी बनाकर कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बैठे। खूब किताबें, पत्रिकाएं भी पढ़ीं और हंसी ठिठोली भी की। कई बुजुर्गों ने बच्चों की कहानियों की पुस्तकें पढ़ीं तो किसी ने चुटकुले सुनाए। कुछ ने पहेलियों के माध्यम से सबका मनोरंजन किया।
बुजुर्ग बाल पत्रिकाओं चंपक, छोटू- लंबू और मोटू- पतलू पढ़कर अपने बचपन की ओर लौटे। लेकिन इस सारी कवायद में हमेशा कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किया गया और एक मीटर की दूरी बनाकर सब कुछ हुआ। बुजुर्गों ने कहा कि कोरोना से तब तक युद्धरत रहना है जब तक कि देश से इसका खात्मा नहीं हो जाता। पोते-पोतियों, नाती-नातिन के संग खेल रहे हैं उन्हें कहानियां सुना रहे हैं। उन्हें कोरोना से बचाव के लिए निर्देश भी बता रहे हैं। बुजुर्ग एस. जयरमण, मदन लाल मूंदड़ा, रश्मि गर्ग, सरिता गुप्ता, विनोद गर्ग, पवन अग्रवाल आदि ने पुस्तकालय में बैठकर अपने अनुभव साझा किए।