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गोलियों की बौछार के बीच बादलों ने दिया साथ, साथी के शव लाने के लिए जवानों ने लगा दी जान की बाजी

कर्नल थापर कहते हैं कि हमारी टीम में लोग कम थे, लेकिन हौसला कम नहीं था। जज्बे में हम चीनी सैनिकों से इक्कीस थे।

By Amit MishraEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 07:07 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 09:57 PM (IST)
गोलियों की बौछार के बीच बादलों ने दिया साथ, साथी के शव लाने के लिए जवानों ने लगा दी जान की बाजी
गोलियों की बौछार के बीच बादलों ने दिया साथ, साथी के शव लाने के लिए जवानों ने लगा दी जान की बाजी

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। मुझे सन 1962 में कमीशन मिला। जब सिक्किम पहुंचा तब तक चीन के साथ लड़ाई खत्म हो चुकी थी। हमारी तोपें वापस आ रही थीं। हमारे शूरवीरों और सेना के साथ पूरा देश खड़ा था। हमारे सिपाही विषम परिस्थितियों में भी बहुत बहादुरी से लड़े थे। उनकी राइफलें कम ठीक थीं, ड्रेस भी ठीक नहीं थी। यहां तक कि युद्ध में कुछ तो बिना गर्म कपड़ों के ही पहाड़ों पर चढ़ गए थे। वे जब वापस आए तो देश को उन पर नाज था। यह कहते-कहते कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर की आवाज जोश से भर जाती है। कहते हैं कि मैं उस युद्ध में शामिल तो नहीं हुआ था, लेकिन उसे नजदीक से महसूस किया था। कर्नल थापर 1965 और 1971 की जंग में पाकिस्तानी सैनिकों के नापाक इरादों को चकनाचूर कर चुके हैं।

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मशीनगन और मोर्टार से फायर से किया फायर 

1965 की लड़ाई के समय वीएन थापर कैप्टन थे और अपनी बटालियन 17 मराठा के साथ सिक्किम में थे। जब युद्ध चरम पर था तब चीन ने पाकिस्तान को राहत देने के लिए सीमा पर अपनी गतिविधि तेज कर दी। कर्नल थापर कहते हैं कि हमने कंपनी के साथ नाथू ला, सेबु ला, याख ला पर पोस्ट बनाई। उस वक्त हमारे पास 23 लोगों की टीम थी। टीम बांटी गई और अलग-अलग पोस्ट पर तैनाती की गई। हमारे पास हथियार अच्छे नहीं थे। चीनी सेना 19 से 23 सितंबर तक मोर्चा संभाले हुए थी। चीन की पूरी एक बटालियन (लगभग एक हजार सैनिक) आ गई और नाथू ला पर हमें धमकाने लगी। उन्होंने 19 की रात मशीनगन और मोर्टार से फायर किया। सेबु ला पर जोरदार फायरिंग हुई।

हौसला कम नहीं था

कर्नल थापर कहते हैं कि हमारी टीम में लोग कम थे, लेकिन हौसला कम नहीं था। जज्बे में हम चीनी सैनिकों से इक्कीस थे। नाथू ला में करीब पंद्रह लोग थे। हमने डटकर मुकाबला किया। कमांडिंग ऑफिसर ने तीस आदमी और भेजे। जेलेप्ला ला पर बहादुरी से लड़ते हुए दो जवान शहीद हुए। ग्रेनेड का एक हिस्सा उनके कान को छूते हुए निकला।

ऐसे बनाई रणनीति

कर्नल थापर बताते हैं कि सेबु ला पर मोर्चा लेते हुए एक जवान भोसले शहीद हो गए। चीनी सैनिक गोलियों की बौछार कर रहे थे, लेकिन हमें तो उनका शव सम्मान सहित वहां से वापस लाना था। यह हमारे लिए इज्जत का सवाल था। भोसले का शव लाने के लिए बीस जवान आगे और दस उनके पीछे चले। हमें उस समय मौका मिल गया, जब वहां अचानक से खूब सारे बादल आ गए। हमारे जांबाज गोलियों की बौछार की परवाह किए बिना बादलों के बीच से भोसले का शव ले आए। उस दौरान एक जवान के हाथ में छह गोलियां भी लगीं। बाद में उसे सेना मेडल दिया गया।

अंतिम सांस तक दुश्मनों को मारेंगे

वह कहते हैं कि इस समय हम लोगों का संपर्क बाकी लोगों से कट गया था, लेकिन हमने तय कर लिया था कि अंतिम सांस तक दुश्मनों को मारेंगे। यह इत्तेफाक ही है कि चीनी सैनिक नाथू ला से वापस चले गए। कैप्टन थापर के साहस, बहादुरी, रणनीति और जज्बे की सराहना हुई। उनका नाम वीर चक्र के लिए भेजा गया। उन्हें चीफ ऑफ द आर्मी स्टॉफ की तरफ से प्रशंसा पत्र मिला।

दो महीने पिता-पुत्र सेना में साथ रहे अफसर

नोएडा के सेक्टर 29 में रह रहे कर्नल वीएन थापर 1971 की लड़ाई में मुक्ति वाहिनी के साथ कमांडो कार्रवाई में बांग्लादेश के अंदर गए। पुल, इमारतें, टेलीफोन एक्सचेंज को उड़ाने का टास्क दिया गया था। वीके सिंह की पलटन (2 राजपूत) ने परशुराम बेलोनिया में जबर्दस्त हमला किया था, जिससे पाकिस्तानी भाग गए। वीएन थापर 2 राजपूत के साथ अटैच थे और वहां कानून व्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में लोगों पर बहुत जुल्म ढाया था। कारगिल युद्ध शुरू होने से दो महीने पहले कर्नल थापर सेवानिवृत हुए। दो महीने वह और उनके बेटे विजयंत थापर सेना में एक साथ अफसर थे। विजयंत उस समय लेफ्टिनेंट थे।

सर्वोच्च शौर्य सैन्य सम्मान है परमवीर चक्र

परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य सम्मान है। दुश्मनों की उपस्थिति में अदम्य साहस, बहादुरी, त्याग के लिए यह मेडल प्रदान किया जाता है। भारतीय सेना के किसी भी अंग के अधिकारी या कर्मचारी इस पुरस्कार के पात्र होते हैं। इससे पहले जब भारतीय सेना ब्रिटिश सेना के तहत कार्य करती थी तो सेना का सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रास हुआ करता था। अब तक 21 जांबाजों को परमवीर चक्र प्रदान किए जा चुके हैं। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत 3 नवंबर 1947 को पहले परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था। वह कुमाऊं रेजीमेंट में थे। भारत माता के 14 जांबाज सपूतों को मरणोपरांत इससे अलंकृत किया गया।

जवान देश के असली नायक हैं

राव पहलाद सिंह ग्रुप के फाउंडर डायरेक्टर डॉ. ओपी यादव का कहना है कि सरहद पर तैनात रहने वाले जवान देश के असली नायक हैं। उनकी बहादुरी, उनका जज्बा और देश के प्रति उनका जुनून अनुकरणीय है। कैसी भी विषम परिस्थिति हो, उनका हौसला कभी भी नहीं डिगता है। उनकी वजह से हम सुरक्षित हैं। इन जांबाजों को हमारी तरफ से शत-शत नमन।


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