ये न फटती हैं, न गलती हैं और न ही इनसे लगती है चोट... दिल्ली पुस्तक मेले में मिल रहीं कपड़े से बनीं अनोखी किताबें
भारत मंडपम में 29वें दिल्ली पुस्तक मेले में देवांशी जालान द्वारा निर्मित कपड़े की किताबें आकर्षण का केंद्र हैं। आठ साल तक के बच्चों के लिए यह नवाचार ह ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। ई-बुक्स के दौर में अगर आपको कपड़े से बनीं किताबें पढ़ने के लिए मिल जाएं तो कैसा महसूस होगा! हैरान न होएं... भारत मंडपम में चल रहे 29वें दिल्ली पुस्तक मेले में इस बार वाकई कपड़े की किताबें उपलब्ध हैं। मेले में पहुंच रहे दर्शक भी इन्हें पसंद कर रहे हैं।
हाॅल नं. 12 में यह नवाचार है युवा देवांशी जालान का। दिल्ली के ही त्रिनगर की रहने वाली देवांशी ने दो साल पहले हिन्द खिलौना उद्योग के नाम से स्टार्ट अप शुरू किया था।
उनके पिता सुधीर जालान पहले से ही फैब्रिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इसलिए अपने इस स्टार्ट अप में देवांशी ने नया प्रयोग किया। छोटे बच्चों को ध्यान में रख कपड़े और कुशन कवर की किताबें बनाने का।
देवांशी बताती हैं कि उनके पास आठ साल तक के बच्चों की किताबें हैं। इनमें क, ख, ग और ए, बी, सी, डी के साथ साथ छोटी छोटी कहानियों वाली किताबें भी हैं।
यही नहीं, लूडो और सांप सीढ़ी भी कुशन कवर वाली हैं। किताबों का आकार पाकेट साइज से लेकर छोटे तकिये तक का रखा गया है। कीमत भी अधिक नहीं है, एक सौ रुपये से लेकर 800 रुपये तक।
देवांशी ने बताया कि छोटे बच्चे अक्सर कागज की किताब फाड़ देते हैं। प्लास्टिक या मोटे गत्ते की किताब से बहुत बार अपनी नाजुक त्वचा या आंख वगैरह पर चोट लगवा बैठते हैं।
कई बार किताबों को पानी में भी फेंक देते हैं और वो खराब हो जाती हैं। लेकिन कपड़े और कुशन कवर से बनी इन किताबों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं आती। यह न फटती हैं, न गलती हैं और न ही इनसे चोट लगती है।
बच्चे चाहे इन्हें पढ़ें, चाहे इनके साथ खेलें और चाहे इन पर सिर रखकर सो ही जाएं। अगर किताब गंदी हो जाए तो उसे धो भी सकते हैं। फिर पहले जैसी हो जाएगी। उन्होंने बताया कि बच्चों के साथ साथ अभिभावकों को भी उनका यह नया प्रयोग अच्छा लग रहा है।

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