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जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना बढ़ाया भारत और पाकिस्‍तान में समय से पहले हीटवेव का खतरा

Heatwaves In India Pakistan विश्लेषण के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के अनेक बड़े हिस्सों में इस साल समय से पहले अप्रत्याशित हीटवेव शुरू हो गई। यह मार्च के शुरू में प्रारंभ हुई और काफी हद तक अब भी बरकरार है।

By Jp YadavEdited By: Published: Mon, 23 May 2022 07:24 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 04:04 AM (IST)
जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना बढ़ाया भारत और पाकिस्‍तान में समय से पहले हीटवेव का खतरा
जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना बढ़ाया भारत और पाकिस्‍तान में समय से पहले हीटवेव का खतरा

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। भारत और पाकिस्तान में पिछले लंबे समय से चल रही ताप लहर (हीटवेव) की वजह से इंसानी आबादी को बड़े पैमाने पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और इसने वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति पर भी असर डाला है। दुनिया के प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किए गए रैपिड एट्रीब्यूशन विश्लेषण के मुताबिक इंसान की नुकसानदेह गतिविधियों के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी भयंकर गर्मी पड़ने की संभावना करीब 30 गुना बढ़ गई है।

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 भारत में मार्च का महीना पिछले 122 सालों में सबसे गर्म माह रहा। वहीं, पाकिस्तान में भी तापमान ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। इसके अलावा अप्रैल में ताप लहर और भी प्रचंड हो गई। मार्च का महीना बेहद सूखा रहा। इस दौरान पाकिस्तान में सामान्य से 62% कम मानसूनपूर्व बारिश हुई जबकि भारत में यह आंकड़ा 71% रहा। हीटवेव की वजह से कम से कम 90 लोगों की मौत हुई। अगर मौतों का आंकड़ा ठीक से दर्ज किया जाए तो इस संख्या में निश्चित रूप से बढ़ोत्‍तरी होगी।

हीटवेव की जल्द आमद और बारिश में कमी की वजह से भारत में गेहूं के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। नतीजतन सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी का ऐलान करना पड़ा, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं के दामों में तेजी आई। भारत ने इससे पहले रिकॉर्ड एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात की उम्मीद लगाई थी जिससे यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से पैदा हुई गेहूं की किल्लत को दूर करने में मदद मिलती।

पूरी दुनिया में आज जिस तरह की ताप लहर चल रही है उसे जलवायु परिवर्तन ने और भी ज्यादा तीव्र और जल्दी-जल्दी आने वाली आपदा में तब्दील कर दिया है। भारत और पाकिस्तान में लंबे वक्त तक अधिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन के असर को नापने के लिए वैज्ञानिकों ने पियर रिव्यूड मेथड का इस्तेमाल करके कंप्यूटर सिमुलेशन और मौसम संबंधी डाटा का विश्लेषण किया ताकि मौजूदा जलवायु की तुलना 19वीं सदी के उत्तरार्ध से 1.2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग पर, पूर्व की जलवायु से की जा सके।

यह अध्ययन मार्च और अप्रैल के दौरान गर्मी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए उत्तर पश्चिमी भारत तथा दक्षिण पूर्वी पाकिस्तान के औसत अधिकतम दैनिक तापमान पर केंद्रित है। इसके नतीजे दिखाते हैं कि लंबे समय से चल रही मौजूदा हीटवेव की संभावना अभी बहुत कम है, यानी कि इसकी संभावना हर साल मात्र 1 प्रतिशत ही है मगर इंसान की गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने इसकी संभावना को 30 गुना बढ़ा दिया है। यानी कि अगर मनुष्य की हरकतों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो यह भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता।

जब तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर पूरी तरह रोक नहीं लगती तब तक वैश्विक तापमान इसी तरह बढ़ता रहेगा और इससे संबंधित चरम मौसमी घटनाएं और भी जल्दी जल्दी होती रहेंगी। वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो ऐसी हीटवेव की संभावना हर 5 साल में एक बार होगी। यहां तक कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती की धीमी प्रक्रिया की वजह से भी ऐसी हीट वेव की संभावनाएं बरकरार रह सकती हैं।

हो सकता है कि इस अध्ययन के नतीजे इस बात को कम करके आंकें कि अब ऐसी हीटवेव कितनी सामान्य बात है और अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो यह हीटवेव और कितनी जल्दी जल्दी उत्पन्न होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौसम से संबंधित डाटा रिकॉर्ड उतने विस्तृत रूप में उपलब्ध नहीं है कि शोधकर्ता उनका सांख्यिकीय विश्लेषण कर सकें।

इस अध्ययन को 29 शोधकर्ताओं ने वर्ल्ड वेदर अटरीब्यूशन ग्रुप के तहत अंजाम दिया है। इस समूह में भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा मौसम विज्ञान संबंधी एजेंसियों से जुड़े वैज्ञानिक शामिल हैं।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस के प्रोफेसर कृष्ण अचुता राव ने कहा कि भारत और पाकिस्तान में तापमान का उच्च स्तर पर पहुंच जाना एक सामान्य सी बात है लेकिन इस बार अप्रत्याशित बात यह रही कि यह सिलसिला बहुत जल्दी शुरू हो गया और लंबे वक्त से जारी है। दोनों देशों के ज्यादातर हिस्सों में लोगों को आखिरी के हफ्तों में भीषण गर्मी से कुछ राहत मिली।

कृष्ण अचुता राव के मुताबिक, भीषण गर्मी से खासतौर पर खुले में काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों और मजदूरों को बहुत मुश्किल भरे हालात का सामना करना पड़ा। हम जानते हैं कि आने वाले वक्त में ऐसी स्थितियां बार-बार पैदा होगी क्योंकि तापमान बढ़ रहा है और हमें इससे निपटने के लिए और बेहतर तैयारी करने की जरूरत है।

वहीं, आईआईटी मुंबई के सिविल इंजीनियरिंग और क्लाइमेट स्टडीज में प्रोफेसर अर्पिता मोंडल ने बताया कि हीटवेव में जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ाने की क्षमता है। यहां तक कि इससे सूखा भी उत्पन्न हो सकता है। क्षेत्र के हजारों लोग, जिनका ग्लोबल वार्मिंग में बहुत थोड़ा सा योगदान है, वे अब इसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। उन पर यह आपदा जारी रहेगी, अगर वैश्विक स्तर पर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कटौती नहीं की गई।


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