दैनिक जागरण से बातचीत में शास्त्रीय संगीत मर्मज्ञों ने साझा किए संस्मरण, अगले सौ साल तक कोई नहीं लेगा उनका स्थान
पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज के निधन से कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई। क्या आम क्या खास....सभी आंखें डबडबा गई। फेसबुक ट्विटर पर सोमवार दिनभर लोग श्रद्धांजलि दिए। महाराज जी की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज के निधन से कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई। क्या आम, क्या खास....सभी आंखें डबडबा गई। फेसबुक, ट्विटर पर सोमवार दिनभर लोग श्रद्धांजलि दिए। महाराज जी की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे। उन्हें संगीतमय श्रद्धांजलि दी गई। संगीत मर्मज्ञ महाराज जी के निधन की सूचना से मर्माहत हो गए।
अगले सौ साल तक उनका स्थान कोई नहीं लेगा
- महाराज जी के निधन से कला जगत में जो जगह खाली हुई है, उसे अगले सौ साल तक नहीं भरा जा सकेगा। मेरी उनसे पहली मुलाकात 1964 में हुई थी, जब मैं पहली बार दिल्ली में प्रस्तुति देने आई थी। 1967 में मैं, दिल्ली रहने के लिए आ गई। उसके बाद तो उनसे मिलना जुलना होता ही रहता था। 1983 में मेरे जन्मदिन पर वो घर आए थे। उन्होने सभी को खूब हंसाया। महाराज जी इस मामले में सौभाग्यशाली हैं कि ना केवल उनके बेेटे, बेटियां बल्कि शिष्य कथक को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां शाश्वती सेन का नाम लेना जरूरी है। जिन्होंने कला साधना में जीवन समर्पित कर दिया। पद्म विभूषण सोनल मान सिंह
ध्रुपद की बंदिश की राग खमास में प्रस्तुति
- कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज के निधन की खबर सुनकर स्तब्ध हूं। डागर परिवार से उनका पुराना नाता रहा है। सीनियर डागर बंधुओं से ध्रुपद की बंदिश ली और नृत्य किया। 'कुंजन में रचो राम, अदभूत गति लिए गोपाल' बंदिश को राग खमास में प्रस्तुत किया। उनका मेरे प्रति बहुत स्नेह था। मैं बहुत छोटा था जब मेरे ज्ञान भारती स्कूल में महाराज जी आए थे। जब उन्हें पता चला कि मेरे बारे में बताया गया तो उन्होने मुझे आर्शीवाद दिया और सीनियर डागर बंधुओं की तारीफ की। पद्मश्री उस्ताद वसीफुद्दीन डागर
महाराज जी ने कहा-बीमारी की परवाह किसे
- सामापा संगीत सम्मेलन में कई बार महाराज जी ने प्रस्तुति दी। कुछ साल पहले कार्यक्रम से ठीक पहले महाराज जी की तबियत बिगड़ गई। मैंने महाराज जी से गुजारिश की कि आधे घंटे से भी कम समय तक प्रस्तुति दें। उसके बाद शाश्वती सेन जी प्रस्तुति देंगी। लेकिन महाराज जी कहा मानने वाले थे। करीब डेढ़ घंटे तक प्रस्तुति दिए। उन्होने कहा कि बीमारी की परवाह किसे हैं। उनके निधन से कला जगत की अपूरणीय क्षति हुई है। पद्मश्री पंडित भजन सोपोरी
हंसी-हंसी में बड़ी बात कह जाते थे महाराज जी
- उनकी प्रस्तुति देखने हम जरूर जाते थे। जब प्रस्तुति देखते तो अगले दिन खुद का रियाज और कठिन बना लेते थे। महाराज जी का दर्शकों से मुखातिब होने का हुनर कमाल का था। वो बहुत ही हाजिर जवाब थे। उनके पास बैठो तो वक्त का पता ही नहीं चलता था। बातों बातों में घंटो गुजर जाते थे। वो हंसी हंसी में बड़ी बात कह देते थे। कई बार तो बाद में सोचने पर पता चलता कि महाराज जी ने कितनी बड़ी बात कही है। बहुत कम कलाकार, महान शिक्षक भी होते हैं। इन दोनों भूमिकाओं में महाराज जी सर्वश्रेष्ठ थे। पद्मश्री गीता चंद्रन
रामलीला देखने हर साल आते
- भारतीय कला केंद्र से जुड़ाव आत्मीय था। 25 साल पहले यहां कथक सिखाना किया था शुरू। चार-पांच साल कथक की दीक्षा दी। लेकिन इसके बाद भी केंद्र से जुड़ाव बना रहा। केंद्र प्रतिवर्ष रामलीला का आयोजन करता है। महारा जी हर साल रामलीला देखने आते थे। कोरोना काल में आनलाइन रामलीला देखने भी आए थेे। राम में गहरी आस्था और केंद्र की रामलीला की अनुपम प्रस्तुति के कायल थे। शोभा दीपक सिंह, निदेशक,श्रीराम भारतीय कला केंद्र
दिवाली पर हुई थी आखिरी मुलाकात
- पंडित बिरजू महाराज जी को बचपन से जानती हूं। भारतीय कला केंद्र में जब वो इंचार्ज थे तो मुझे नृत्य सिखाते थे। मैंने कई बार अपने गानों की धुन उनसे बनवाई। वो महान शिक्षक थे। वो सभी वाद्ययंत्र बजाते थे। कथक नृत्य के तो सम्राट ही थेे। कई बार कार्यक्रमों में वो गाए और मैं प्रस्तुति दी। महाराज जी जो जोक और कहानियां सुुनाना पसंद था। गजल बहुत बढ़िया गाते थेे। दिवाली पर घर आए थे। तीन चार दिन पहले फोन पर बातचीत हुई थी, जिसमें उन्होने डायलिसिस की बात बताई थी। पद्मश्री उमा शर्मा
- पंडित बिरजू महाराज के निधन से भारतीय नृत्य और कथक के एक युग का अंत हो गया। मेरे लिए यह व्यक्तिगत क्षति है। कथक में उनका योगदान ऐतिहासिक है और उन्होंने कला रूप को फिर से परिभाषित किया और इसे सभी के लिए प्रासंगिक और सुलभ बना दिया। 1958 से हमने जो लम्हा बिताया है, वो पल, हंसी-मजाक कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। पद्म विभूषण उस्ताद अमजद अली खां