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मोबाइल व इंटरनेट बच्चों को बना रहे आक्रामक, लड़कियां भी करती हैं साइबर बुलिंग

बच्चे सोशल नेटवर्क, वाट्सएप ग्रुप में भी किसी बच्चे को डराने, धमकाने व चेतावनी देने में संकोच नहीं करते। साथ ही बच्चे साइबर उत्पीड़न के शिकार भी हो रहे हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 28 Oct 2017 08:51 PM (IST)Updated: Sun, 29 Oct 2017 05:05 PM (IST)
मोबाइल व इंटरनेट बच्चों को बना रहे आक्रामक, लड़कियां भी करती हैं साइबर बुलिंग
मोबाइल व इंटरनेट बच्चों को बना रहे आक्रामक, लड़कियां भी करती हैं साइबर बुलिंग

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। मोबाइल व इंटरनेट के गलत इस्तेमाल से बच्चों पर दोहरी मार पड़ रही है। सफदरजंग अस्पताल, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज व पीजीआइ चंडीगढ़ के डॉक्टरों द्वारा दिल्ली के स्कूली बच्चों पर किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोबाइल व इंटरनेट के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण बच्चे आक्रोशित हो रहे हैं। वे सोशल नेटवर्क, वाट्सएप ग्रुप में भी किसी बच्चे को डराने, धमकाने व चेतावनी देने में संकोच नहीं करते। साथ ही बच्चे साइबर उत्पीड़न के शिकार भी हो रहे हैं। इसलिए डॉक्टर कहते हैं कि स्कूलों में बच्चों को तकनीक के बेहतर इस्तेमाल का पाठ भी पढ़ाया जाना चाहिए।

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अध्ययन समाज व सरकार की आंखें खोलने वाला है

वैसे भी ब्लू व्हेल का खेल सुर्खियों में है। अभिभावक इस गेम के खतरे का आंकलन नहीं कर सके। इस बीच सामने आया एक अध्ययन समाज व सरकार की आंखें खोलने वाला है। सफदरजंग अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि दिल्ली में दो स्कूलों के 174 बच्चों पर यह अध्ययन किया गया है। इसमें पाया गया है कि 17 फीसद बच्चे साइबर बुलिंग (गंदी भाषा या तस्वीरों से सोशल नेटवर्क पर डराना, धमकाना) के शिकार होते हैं। 16 फीसद बच्चे डराने-धमकाने, 12 फीसद झगड़ा व 17 फीसद बच्चे उत्पीड़न में शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन का मकसद यह देखना था कि बच्चों में आक्रोश का स्तर कितना है? क्या उसे समाज में सहन किया जा सकता है या उसे रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है?

लड़कियां भी साइबर बुलिंग करती हैं

अध्ययन में यह भी पाया गया कि लड़कियां भी साइबर बुलिंग करती हैं। हालांकि लड़कों में यह प्रवृत्ति अधिक देखी गई। कई लड़के वाट्सएप ग्रुप में भी डराते व धमकी देते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों में आक्रोश हमेशा रहा है पर यह किस स्तर का है यह देखने के लिए पहले कभी अध्ययन नहीं हुआ। इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना आसान नहीं है कि बच्चों में आक्रोश कितना बढ़ा। इसके लिए बड़े स्तर पर शहरी व ग्रामीण बच्चों पर अध्ययन कर तकनीक के बेहतर इस्तेमाल के लिए नीति बनाने की जरूरत है। 

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